चेन्नई। मुथुवल करुणानिधि द्रविड़ अभियान से जुड़े उन अंतिम लोगों में से
एक थे, जो तमिलनाडु में पांच दशक पहले सामाजिक न्याय के आधार पर राजनीति
में पिछड़े वर्ग के उत्थान और कांग्रेस शासन की समाप्ति के अगुवा बनकर उभरे
थे।
94 वर्षीय करुणानिधि तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहे,
जिन्होंने यहां एक शलाका पुरुष की तरह अपने सार्वजनिक जीवन को जीया।
उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब
उन्होंने 1971 में इंदिरा गांधी का साथ दिया और इसका चुनावों में उन्हें
फायदा मिला।
लेकिन उन्होंने 1975-77 के आपातकाल का कड़ा विरोध किया
था, जिस दौरान उनकी सरकार को भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया
था।
करुणानिधि के नेतृत्व में द्रमुक को 2004 और 2009 में संयुक्त
प्रगतिशील गठबंधन सरकार में बेहतर स्थिति हासिल थी। इससे पहले अटल बिहारी
वाजपेयी की अगुवाई में राजग सरकार में भी उनकी पार्टी को अच्छी स्थिति
हासिल थी।
ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
वह अपने पथ प्रदर्शक सी.एन. अन्नादुरई या अन्ना के स्थान
पर 1969 में मुख्यमंत्री बने थे और पार्टी व सरकार पर अपनी मजबूत पकड़
बनाई। वह लगभग 50 वर्षों तक द्रमुक के अध्यक्ष बने रहे।
वर्ष 2016 में उनकी प्रतिद्वंद्वी जे.जयललिता के निधन, और अब मंगलवार को उनके निधन के बाद तमिलनाडु में एक शून्य पैदा हो गया है।
करुणानिधि
का जन्म तीन जून, 1924 को तंजावुर जिले में हुआ था। वह बहुमुखी प्रतिभा के
धनी थे। उन्होंने पत्रकार, नाटककार और पटकथा लेखक के तौर पर भी काम किया।
ये भी पढ़ें - इस मंदिर में सोने से गर्भवती हो जाती है महिलाएं!
वह समाज सुधारक ‘पेरियार’ ई.वी. रामास्वामी और अन्ना के प्रभाव में आकर द्रविड़ अभियान से जुड़े।
कलैगनार के रूप में विख्यात करुणानिधि को कला, साहित्य, फैशन, रंगमंच और सिनेमा में भी दक्षता हासिल थी।
करुणानिधि
के राजनीतिक भाग्य का निर्माण तब हुआ, जब अन्ना ने डीके से अलग होकर 1949
में द्रमुक की स्थापना की। तमिल फिल्म ‘पाराशक्ति’ के हिट हो जाने और
तिरुचिरापल्ली के समीप काल्लाकुडी में रेल रोको अभियान ने उन्हें पूरे
राज्य में पहचान दिलाने में मदद की। फिल्म में उन्होंने पटकथा लेखन किया
था।
ये भी पढ़ें - माता का चमत्कार: आपस में लड पडे थे पाक सैनिक....
अन्नादुरई के निधन के बाद वह 1969 में राज्य के मुख्यमंत्री बने।
एक
गरीब ईसाई वेल्लालर(एक पिछड़ी जाति) में जन्मे करुणानिधि का नाम उनके
माता-पिता अंजुगम और मुथुलवल ने दक्षिणमूर्ति रखा था। बाद में उन्होंने
अपना नाम बदलकर करुणानिधि रख लिया।
उन्होंने 1937-40 के दौरान हिंदी
विरोधी प्रदर्शन में भी भाग लिया था और एक हस्तलिखित अखबार ‘मानवर
नेसान(छात्रों का साथी)’ भी प्रकाशित किया था।
करुणानिधि ने मासिक
‘मुरासोली’ का भी प्रकाश किया था, जो बाद में साप्ताहिक हो गया और द्रमुक
का अधिकारिक दैनिक पत्र बन गया। गत वर्ष इस पत्रिका ने हीरक जयंती मनाई थी।
उन्होंने
1957 में कुलिथालाई से सफलतापूर्वक अपना पहला चुनाव लड़ा था और उसके बाद
से उन्होंने 13 चुनावों में से एक में भी हार का सामना नहीं किया।
--आईएएनएस
ये भी पढ़ें - Beas Tragedy : अब तक सबक नहीं सीख पाया Himachal