सुधीर कुमार शर्मा
जयपुर। राजस्थान में बीजेपी एकजुट है और वसुंधरा राजे ही एकमात्र सर्व मान्य नेता हैं। चौंकिएगा नहीं यह पढ़कर, क्योंकि एक नेता जो जनता के प्रतिनिधित्व करता है वह समाज की धुरी होता है। समाज के उत्थान का दायित्व जनता इन्हीं हाथों को सौंप देती है। जनहित के कार्यों की बदौलत मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का कद इतना बढ़ चुका है जो प्रदेशव्यापी स्वीकार्य है। यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व को भी बार-बार वसुंधरा राजे के आगे झुकना पड़ा है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मेहनत उनके द्वारा अब तक किए गए कार्यों में ही झलकती है। खास बात यह है कि राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के बाद ऐसा कोई नेता सामने नहीं आया जो प्रदेश में अपनी साफ-सुथरी छवि बना सका हो। इसके चलते वसुंधरा के सामने बीजेपी के पास कोई विकल्प नहीं है। भामाशाह योजना, मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान, ग्रामीण गौरव पथ योजना तथा अन्नपूर्णा स्टोर्स जैसी कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने का श्रेय वसुंधरा राजे को जाता है।
उपचुनाव में जीत नहीं मिली तो लगने लगे कयास
अजमेर व अलवर की लोकसभा सीटों और मांडलगढ़ की विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस के बाजी मार लेने पर राजनीतिक गलियारे में वसुंधरा राजे से केंद्रीय नेतृत्व के नाराज होने और उनके स्थान पर मुख्यमंत्री पद के लिए ओमप्रकाश माथुर, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अर्जुन मेघवाल, सुनील बंसल, गुलाबचंद कटारिया और अरुण चतुर्वेदी जैसे नामों के सामने आने की चर्चा होने लगी। इन सभी चर्चाओं पर केंद्रीय नेतृत्व ने विराम लगा दिया और वसुंधरा राजे पर भरोसा जमाए रखा।
इसके अलावा जोधपुर से भाजपा सांसद और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री राजेन्द्र राठौड़, गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया, भारत वाहिनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी जमीन से जुड़े होने के बावजूद प्रदेश स्तर पर जनमानस पर पूरी तरह पकड़ नहीं बना पाए हैं। इसके पीछे कारण यह है कि ये अपने क्षेत्र तक ही सिमटे रहे हैं। इस कारण जननेता नहीं बन पाए।
बगावती तेवर
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प्रदेश में जनमानस में अपनी छवि बना चुकी वसुंधरा राजे से बगावत कर पार्टी
के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी बीजेपी छोड़ दीनदयाल वाहिनी नामक पार्टी का
गठन कर लिया। उनके नई पार्टी का ऐलान करने के साथ ही राजनीतिक गलियारे में
चर्चा होने लगी कि वसुंधरा की जगह कोई और नाम आगे आ सकता है, लेकिन ऐसा
हुआ नहीं। अब केंद्रीय नेतृत्व में वसुंधरा राजे के रूप में अपनी मंशा
जाहिर कर चुका है।
अमित शाह भी कर चुके हैं ये ऐलानहाल
ही जयपुर में बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक के समापन सत्र
में आए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी राजस्थान में आने वाला
विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ने का ऐलान
कर चुके हैं। वे भी विश्वास जता चुके हैं कि राजस्थान में एक बार बीजेपी और
एक बार कांग्रेस की परंपरा इस बार टूट जाएगी और वसुंधरा राजे प्रचंड बहुमत
के साथ वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगी। वे वसुंधरा राजे सरकार की जमकर
तारीफ कर चुके हैं। वे सार्वजनिक रूप से ऐलान कर चुके हैं कि नवंबर में
होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा वसुंधरा राजे ही होंगी
और वे ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगी।
राजनीतिक गलियारे में चली चर्चाएं
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राजनीतिक
गलियारे में चर्चा थी कि बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे के अलावा
किसी दूसरे चेहरे पर दांव खेल सकता है, लेकिन जयपुर आकर अमित शाह ने ऐसे
सभी कयासों पर ब्रेक लगा दिया। इसके पीछे कारण यह है कि केंद्रीय नेतृत्व
के पास वसुंधरा राजे के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है। हालांकि बीजेपी के
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के त्यागपत्र देने के बाद वसुंधरा और
बीजेपी आलाकमान के बीच संबंधों में खटास होने की चर्चाएं आम होने लगीं,
लेकिन विरोधियों को यहां भी मुंह की खानी पड़ी। हुआ यह था कि बीजेपी ने
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम राजस्थान अध्यक्ष के लिए आगे
बढ़ाया या तो वसुंधरा राजे ने इसका विरोध किया। इस कशमकश के बीच क़रीब 74
दिन तक राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष का पद खाली ही रहा, आखिर में जीत वसुंधरा
राजे की हुई और गजेंद्र सिंह की जगह मदन लाल सैनी अध्यक्ष बन गए।
PM मोदी भी कर चुके तारीफजयपुर में 7 जुलाई को लाभार्थी जनसंवाद में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वसुंधरा राजे की तारीफ कर चुके हैं।
केन्द्रीय नेतृत्व के भरोसे पर खरी उतरीं वसुंधरा राजे
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बीजेपी ने वर्ष 2003, 2008 और 2013 के
विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे पर भरोसा जताया था। केंद्रीय नेतृत्व के
भरोसे पर राजे खरी उतरी थीं। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में वसुंधरा के
नेतृत्व में 163 सीट मिली थीं, जबकि कांग्रेस 21 सीट पर अटक गई। वर्ष 2008
में भी वसुंधरा के नेतृत्व में ही बीजेपी ने चुनाव लड़ा। उस समय कांग्रेस को
96 सीट और बीजेपी को 78 सीटें मिली थीं, लेकिन वर्ष 2003 में वसुंधरा के
नेतृत्व में बीजेपी ने 120 सीटों पर कब्जा जमा लिया और कांग्रेस को सिर्फ
56 सीटों पर ही समेट दिया।
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