इस गांव में रहने वाला हर इंसान है बौना, जानिए कैसे हुई खोज

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 26 जून 2018, 2:21 PM (IST)

बचपन में आपने गुलिवर के दिलचस्प सफर वाली कहानियां तो जरूर पढ़ी होंगी। आपको वो कहानी भी याद होगी जब गुलिवर लिलिपुट नाम के एक द्वीप पर पहुंच गया था। वहां 15 सेंटीमीटर लंबाई वाले लोगों ने उसे बंदी बना लिया था। बचपन में ये बात हैरान करने वाली लगती थी कि बौने इंसान कैसे लगते होंगे।

मन में ये सवाल भी उठता था कि इतने छोटे-छोटे इंसान होते भी हैं या फिर कहानियों में ही इनका जिक्र मिलता है। आपका सवाल एकदम जायज है, क्योंकि इतने छोटे इंसान तो होते ही नहीं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे सच से रूबरू कराएंगे, जिसके बाद बौनों को लेकर आपकी सोच एकदम बदल जाएगी।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

25 सेंटीमीटर के इंसान की ममी मिली...
अब से करीब डेढ़ सौ साल पहले ईरान के एक गांव में बौने लोग रहते थे। इस गांव का नाम है ‘माखुनिक’ जो कि ईरान-अफगानिस्तान सीमा से करीब 75 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि मौजूदा वक्त में ईरान के लोगों की जितनी औसत लंबाई है, उससे करीब 50 सेंटीमीटर कम लंबाई के लोग इस गांव में रहते थे। 2005 में खुदाई के दौरान इस गांव से एक ममी मिली थी जिसकी लंबाई सिर्फ 25 सेंटीमीटर थी। इस ममी के मिलने के बाद ये यकीन पुख्ता हो गया कि इस गांव में बहुत कम लंबाई वाले लोग रहते थे।

हालांकि कुछ जानकार मानते हैं कि ये ममी समय से पूर्व पैदा हुए किसी बच्चे की भी हो सकती है, जिसकी 400 साल पहले मौत हुई होगी। वो इस बात पर विश्वास नहीं करते कि ‘माखुनिक’ गांव के लोग बौने थे।

ये भी पढ़ें - इस पानी की बोतल की एक-एक बूंद हजारों की, पूरी बोतल की कीमत...

पूरी तरह से शाकाहारी थे इस इलाके के लोग...
दरअसल माखुनिक ईरान के दूरदराज का एक सूखा इलाका है। यहां चंद अनाज, जौ, शलजम, बेर और खजूर जैसे फल की ही खेती होती थी। इस इलाके के लोग पूरी तरह से शाकाहारी थे। शरीर के विकास के लिए जिन पौष्टिक तत्वों की जरूरत होती है वो इस इलाके के लोगों को नहीं मिल पाते थे। यही वजह थी कि यहां के लोगों का शारीरिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता था।

ये भी पढ़ें - इस रेस्त्रां में इंसान नहीं,भूत परोसते हैं खाना

घरों की ऊंचाई बहुत कम...
इस प्राचीन गांव में करीब दो सौ घर हैं, जिनमें से 70 से 80 ऐसे घर हैं जिनकी ऊंचाई बहुत ही कम है। इन घरों की ऊंचाई महज डेढ़ से दो मीटर ही है। घर की छत एक मीटर और चार सेंटीमीटर की ऊंचाई पर है। इससे साफ जाहिर होता कि कभी यहां कम लंबाई वाले लोग रहते थे।

घर में लकड़ी के दरवाजे हैं और एक ही तरफ खिड़कियां हैं। ये घर बहुत बड़े नहीं हैं। घर में एक बड़ा कमरा है। इसके अलावा यहां दस से चौदह वर्ग मीटर का एक भंडारघर है जिसे ‘कांदिक’ कहा जाता था। यहां मुख्य रूप से अनाज रखा जाता था। कोने में मिट्टी का एक चूल्हा बना होता था जिसे ‘करशक’ कहा जाता था। इसके अलावा इसी कमरे में सोने के लिए थोड़ी सी जगह होती थी।

ये भी पढ़ें - ये है "भूतिया" जंगल,जान देने आते है लोग

सडक़ें बनने के बाद हुआ विकास...
माखुनिक गांव ईरान के दीगर आबादी वाले इलाकों से बिल्कुल कटा हुआ था। कोई भी सडक़ इस गांव तक नहीं आती थी। लेकिन बीसवीं सदी के मध्य में जब इस इलाके तक सडक़ें बनाई गईं। गाडिय़ों की आवाजाही इस गांव तक पहुंची तो यहां के लोगों ने ईरान के बड़े शहरों में आकर काम करना शुरू किया। बदले में वो यहां से चावल और मुर्गे अपने गांव लेकर जाते थे।

धीरे-धीरे यहां के लोगों का खान-पान बदलने लगा। नतीजा ये हुआ कि आज इस गांव के करीब 700 लोग औसत लंबाई वाले हैं। लेकिन इस गांव में बने पुराने घर आज भी इस बात की याद दिलाते हैं कि कभी यहां बहुत कम लंबाई वाले लोग रहते थे।

ये भी पढ़ें - यह है स्वर्ग का झरना, जहां से कोई नहीं लौटा वापस