जल भराव और लवणीय मृदा भूमि के लिए सब सरफेस ड्रेनेज परियोजनाएं लागू

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 25 जून 2018, 8:00 PM (IST)

चंडीगढ़ । हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने जल भराव तथा लवणीय भूमि के सुधार के लिए प्रदेश में जल भराव और लवणीय मृदा की 10844 हैक्टेयर भूमि में सब सरफेस ड्रेनेज परियोजनाएं लागू की हैं।

विभाग के एक प्रवक्ता ने यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि सब सरफेस डे्रेनेज परियोजना हरियाणा ऑपरेशनल पायलट प्रोजैक्ट (एचओपीपी) द्वारा केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के तकनीकी सहयोग से लागू की गई है।

उन्होंने बताया कि हरियाणा जल भराव तथा लवणीय भूमि के सुधार हेतु एसएसडी प्रणाली लागू करने में अग्रणी है। जल भराव की समस्या से, समस्या की प्रकृति और इसके विस्तार पर निर्भर सरफेस ड्रेनेज, वर्टिकल ड्रेनेज, बायो ड्रेनेज और सब सरफेस ड्रेनेज के माध्यम से निपटा जा सकता है। हालांकि जहां लवणता और जल भराव दोनों हैं, वहां सब सरफेस डे्रेनेज प्रणाली बिछाना सबसे प्रभावी तकनीक है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक के माध्यम से दो-तीन वर्ष के अन्दर प्रभावित क्षेत्र का सुधार किया जा सकता है तथा इस तकनीक के तहत प्रणाली की औसत लागत लगभग 80,000 रुपये प्रति हैक्टेयर है।

सब सरफेस डे्रेनेज परियोजना स्थलों के चयन हेतु मानदण्डों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि एसएसडी प्रोजैक्ट के लिए स्थान का चयन सेलाइन एफ्लुएंट के निपटान हेतु खुली सरफेस ड्रेन, साल्ट की लीचिंग हेतु प्रभावित क्षेत्र में पर्याप्त नहरी पानी की आपूर्ति, मई-जून के माह में चार-पांच वर्षों के लिए निरंतर वाटर टेबल गहराई 0-1.5 मीटर तथा किसान ड्रेनेज समितियां बनाने की किसानों की इच्छा और परियोजना पूर्ण होने के बाद पम्पिंग की लागत हिस्सेदारी पर निर्भर करता है।

उन्होंने बताया कि इस प्रणाली में 2.5-3.0 मीटर की गहराई पर सिंथैटिक फिल्टर मैटीरियल से ढके परफोरेटिड कोरूगेटिड पीवीसी पाइप बिछाए जाते हैं, जबकि लेटरल पाइप लेजर कन्ट्रोल टें्रचर मशीनों के साथ 1.5-2.0 मीटर की गहराई पर बिछाए जाते हैं। इस प्रकार, क्षेत्र का लवणीय जल पम्प में गुरुत्वाकर्षण द्वारा सम्प में एकत्रित किया जाता है और उसके बाद साथ लगते सरफेस ड्रेन में डाला जाता है। इस प्रकार, प्रभावित क्षेत्र में दो-तीन वर्ष में सुधार लाकर फसल पैदावार और उत्पादकता को सुधारा जाता है। उन्होंने बताया कि यह पानी आगे सिंचाई उद्देश्य के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि एसएसडी को जल भराव और लवणीय मृदा के सुधार के लिए एक प्रभावी तकनीक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बताया कि अब तक 10,844 हैक्टेयर भूमि का सुधार किया जा चुका है, जिससे 7677 लाभार्थियों को लाभ हुआ है। इस प्रौद्योगिकी के तहत कार्य उस समय किया जाता है, जब खेत बंजर होते हैं अर्थात अप्रैल से जून तक गर्मी के महीनों में और खरीफ फसलों की कटाई के बाद थोड़े समय के लिए तथा अक्तूबर-नवम्बर में रबी फसलों की बुआई से पहले।

प्रवक्ता ने बताया कि एसएसडी परियोजनाओं में सिंचाई विभाग का सहयोग आवश्यक और अति वांछित है, क्योंकि सब सरफेस डे्रेनेज परियोजनाओं के सफलतापूर्वक चयन और परिचालन के लिए ओपन सरफेस डे्रेन और नहरी पानी पहली आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, सिंचाई विभाग सब सरफेस डे्रेनेज के पानी के निपटान हेतु इस्तेमाल की जाने वाली सरफेस ड्रेनों की गाद निकालने और सफाई के कार्य में मदद करता है और सरफेस ड्रेन न होेने पर परियोजना क्षेत्र से गुजरने वाली नहर और डिस्ट्रीब्यूटरी में सेलाइन वाटर छोड़ने की अनुमति भी देता है।

उन्होंने कहा कि हरियाणा ऑपरेशनल पायलट प्रोजैक्ट (एचओपीपी) कार्यालय की इस समय जिला रोहतक के लाखन माजरा में, जिला जींद के सफीदों में और जिला सोनीपत के घडवाल में कार्यशालाएं कार्य कर रही हैं। सभी परियोजनाएं इन कार्यशालाओं से उपयुक्ता पर आधारित मशीनों से ले रही हैं। उन्होंने कहा कि इस समय घडवाल कार्यशाला के तहत 65 हैक्टेयर क्षेत्र मेंकोहला गांव में सोनीपत-2 सब सरफेस डे्रनेज प्रोजैक्ट का कार्य पूरा किया जा चुका है और 200 हैक्टेयर क्षेत्र मेंकान्ही गांव में दूसरी सोनीपत-3 एसएसडी प्रोजैक्ट का कार्य प्रगति पर है और शीघ्र ही पूरा हो जाएगा। आज तक 90 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है। इसके अतिरिक्त, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में लगभग 45 हैक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती के उत्कृष्ठता केन्द्र में कार्य प्रगति अधीन है।

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