भगवान के दर्शन मात्र से ही कई जन्मों के पापों का प्रभाव नष्ट हो जाता है।
इसी वजह से घर में भी देवी-देवताओं की मूर्तियां रखने की परंपरा है। इस
कारण घर में छोटा मंदिर होता है और उस मंदिर में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं
रखी जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से वास्तुशास्त्र के प्रति लोगों का
आकर्षण बहुत बढा है। आजकल लगभग सभी अखबारों व पत्रिकाओ में वास्तुशास्त्र
पर लेख छपते रहते हैं। वास्तुशास्त्र पर कई किताबें भी बाजार में उपलब्ध
हैं। लगभग सभी में यह छपा होता है कि पूजा का स्थान भवन के ईशान कोण में
होना चाहिए। यदि किसी घर में पूजा का स्थान ईशान कोण में न हो और परिवार
में रहने वालों के साथ कोई परेशानी हो तो उनके मस्तिष्क में एक ही बात
उठती है कि परिवार की समस्या का कारण पूजा के स्थान का गलत जगह पर होना
है।
ज्यादातर वास्तुशास्त्री पूजा घर को भवन के उश्रर व पूर्व दिशाओं के मध्य
भाग ईशान कोण में स्थानान्तरित करने की सलाह देते है और जरूरत प़डने पर
बहुत तो़ड-फो़ड भी कराते हैं। यह सही है कि ईशान कोण में पूजा का स्थान
होना अत्यंत शुभ होता है क्योंकि ईशान कोण का स्वामी ग्रह गुरू है। यहां घर
की किस दिशा में पूजा के स्थान का क्या प्रभाव प़डता है इसका विवरण यहा
प्रस्तुत है।
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ईशान कोण: ईशान कोण में पूजा का स्थान होने से परिवार के
सदस्य सात्विक विचारों के होते हैं। उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी
आयु बढ़ती है।
पूर्व दिशा : इस दिशा में पूजा का स्थान होने पर घर का
मुखिया सात्विक विचारों वाला होता है और समाज में इज्जत और प्रसिद्धि पाता
है।
आग्नेय: इस कोण में पूजा का स्थान होने पर घर के मुखिया को खून की
खराबी की शिकायत होती है। वह बहुत ही गुस्से वाला होता है किंतु उसमे
निर्भीकता होती है। वह हर कार्य का निर्णय स्वयं लेता है।
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दक्षिण दिशा : इस दिशा में पूजाघर होने पर उसमें सोने वाला
पुरूष जिद्दी, गुस्से वाला और भावना प्रधान होता है।
र्नैत्य कोण: जिन
घरों में र्नैत्य कोण में पूजा का स्थान होता है उनमें रहने वालों को पेट
संबंधी कष्ट रहते हैं। साथ ही वे अत्यधिक लालची स्वभाव के होते हैं।
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पश्चिम दिशा: इस दिशा में पूजाघर होने पर घर का मुखिया
धर्म के उपदेश तो देता है परंतु धर्म की अवमानना भी करता है। वह बहुत लालची
होता है और गैस से पीडित रहता है।
वायव्य कोण: इस कोण में पूजाघर हो तो
घर का मुखिया यात्रा का शौकीन होता है। उसका मन अशांत रहता है और किसी पर
स्त्री के साथ संबंधों के कारण बदनामी भी होती है।
उतर दिशा: इस दिशा में पूजाघर हो तो घर के मुखिया के
सबसे छोटा भाई, बहन, बेटा या बेटी कई विषयों की विद्वान होती है।
ब्रह्म
स्थल: घर के मध्य में पूजा का स्थान होना शुभ होता है। इससे पूरे घर में
सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।
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