नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव के बाद तेल की कीमतें बढ़ने से लोगों की जेब पर भार बढ़ गया है। इससे मध्यम वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। इसके अलावा निवेश भी प्रभावित होता है। मौजूदा हालात में अब मोदी को पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना होगा। अगले साल होने वाले
आम चुनाव के लिए तैयार हो रही सरकार के लिए यह हालात चिंताजनक हो सकते हैं।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कारण मोदी सरकार और सरकारी तेल कंपनियों ने 19 दिन तक तेल की कीमतों को स्थिर रखा, लेकिन चुनाव होने के बाद ही कीमतें बढ़ा दी गईं। कीमतें बढ़ने का नरेंद्र मोदी के भविष्य पर असर हो सकता है। राष्ट्रीय राजधानी में रविवार को पेट्रोल की कीमतें 76.24 रुपए प्रति लीटर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं, जबकि डीजल ने उच्चतम स्तर 67.57 रुपए छुआ।
यह सीधे तौर पर सरकारी तेल कंपनियों द्वारा चार हफ्तों के बाद की गई बढ़ोतरी का ही असर है, जो लोगों को सीधे प्रभावित कर रहा है। अगर कर्नाटक चुनाव से पहले तेल की स्थिर कीमतों से राज्य में बीजेपी को मदद मिली तो चुनाव बाद कीमतें बढ़ने से निश्चित तौर पर विपक्ष के पास सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। दरअसल, लोक सभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है। ऐसे में अगर तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो बीजेपी को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि सरकार की ओर से कहा गया है कि इससे आयात बिल 50 अरब डॉलर बढ़ सकता है और इसका असर करंट अकाउंट डेफिसिट पर भी पड़ेगा। उधर, आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का कहना है कि तेल की कीमतें बढ़ने से आर्थिक तरक्की पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
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नवंबर, 2014 के बाद सबसे ज्यादा कीमतें
आपको बता दें
कि नवंबर 2014 के बाद तेल की कीमतें सबसे ज्यादा 80 डॉलर प्रति बैरल पर
पहुंच गई हैं। गर्ग ने कहा कि कीमतें बढ़ने से तेल आयात बिल 25 अरब डॉलर से
50 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। पिछले साल भारत ने 72 अरब डॉलर तेल आयात पर
खर्च किए थे।
सरकार के लिए चिंता की बात
अब लोक सभा चुनाव से एक साल पहले तेल की
कीमतें बढ़ी हैं, जिससे वित्तीय घाटे पर असर होगा। सरकार के लिए चिंता की
बात यह है कि उसे ऐसे समय में आर्थिक विकास को पटरी पर रखने के साथ-साथ
सामाजिक योजनाओं पर खर्चे को भी बढ़ाना है।
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पेट्रोलियम मंत्री
धर्मेंद्र प्रधान ने संकेत दिए हैं कि तेल की कीमतें बढ़ने के असर को कम
करने के लिए सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती कर सकती है। उन्होंने कहा कि
पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने को लेकर केंद्र काफी संवेदनशील है। कई
विकल्पों पर बात हो रही है। उम्मीद है जल्द ही कुछ परिणाम सामने आएंगे।
हालांकि पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन
देशों में तेल के कम उत्पादन की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के
दाम बढ़ गए हैं। क्रूड प्राइस में हाल की तेजी के पीछे डिमांड बढ़ना, सऊदी
अरब की अगुआई में तेल उत्पादक देशों का उत्पादन में कमी करना, वेनेजुएला
में उत्पादन में गिरावट और अमेरिका का ईरान पर प्रतिबंध लगाने का फैसला
जैसे कई कारण हैं।
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