एक दिन के लिए खाली हो जाता है पूरा गांव, जो रुका हो जाती है मौत!

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 11 मई 2018, 2:50 PM (IST)

भारत में बहुत सी परम्पराए हैं और अक्सर हमे ऐसी ही कोई परम्पराए सुनने को मिल जाती है, जो बड़ी अटपटी सी लगती है। ऐसी ही एक परंपरा उत्तरप्रदेश में है जहां दिन निकलने से पहले ही पूरा गांव खाली हो जाता है और दिन ढलने के साथ ही नियमानुसार पूजा पाठ करने के बाद भी गांव के लोग अपने घरों में वापस जाते हैं।

यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है जिसे आज भी गांव के लोग चाहे हिंदू हो या मुस्लिम, किसी भी धर्म के हो सभी लोग एक साथ मिलकर इस परंपरा को कायम किए हुए हैं, जिसे लोग परावन के नाम से जानते हैं। उत्तरप्रदेश के सिसवा बाजार से पश्चिम की तरफ 2 किलोमीटर दूर ग्रामसभा बेलवा चौधरी गांव में पिछले सैकड़ों सालों से यह परावन की परंपरा हर तीसरे साल बुद्ध पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।

सूर्य निकलने से पहले ही गांव के हर घरों में ताले लग जाते हैं और सभी लोग गांव से बाहर निकल पड़ते हैं और खेतों व बगीचों में अपना पड़ाव डालकर पूरे दिन वहीं रहते हैं। अगर किसी घर में एक दिन पहले नई नवेली दुल्हन आई है वह भी घर से बाहर चली जाती है। इस दौरान पशुओ को भी लोग अपने साथ रखते हैं। गांव की गलियां पूरी तरह सुनी हो जाती है। गांव में रहने वाले हिंदू मुस्लिम छोटे बड़े सभी एक साथ गांव को छोड़ कर बाहर निकल जाते हैं और इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। यह परंपरा सरको सालों से चली आ रही है।

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ये है कहानी...
इस परावन के पीछे जो दंतकथा है उसके अनुसार कुछ साधु गांव में आए हुए थे और लोगों से खाना बनाने के लिए लकडिय़ां मांगी, लेकिन किसी ने उन्हें लकडिय़ां नहीं उपलब्ध कराई। ऐसे में वह फसलों की मड़ाई करने वाली मेह को जलाकर भोजन बनाने लगे। गांव वालों ने जब इसका विरोध किया तो साधुओं ने कहा कि आज के बाद इस गांव में मड़ाई के लिए मेह की जरूरत नहीं पड़ेगी तभी से इस गांव में मड़ाई करते समय बालों को मेह की आवश्यकता नहीं पड़ती है और बैल स्वयं गोल गोल घूमते रहते हैं।

इस के साथ साधुओं ने यह भी कहा कि हर तीसरे साल बुद्ध पूर्णिमा के रोज आप लोग गांव खाली कर दीजिएगा, नहीं खाली करने पर अनहोनी हो सकती है। इसी परंपरा का निर्वहन आज भी गांव के लोग करते चले आ रहे हैं। वहीं कुछ युवा पीढ़ी के लोगों का मानना है कि पहले प्लेग जैसी तमाम बीमारियां होती थी कि गांव का गांव इसकी चपेट में आ जाता था। ऐसे में उन बीमारियों से बचने के लिए गांव खाली करने की परंपरा रही होगी जो आज भी परावन के रूप में जारी है।

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