हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाई महावीर जयंती, बही भक्ति की बयार

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 29 मार्च 2018, 1:08 PM (IST)

(श्री महावीरजी) करौली। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्मोत्सव जिले के महावीरजी धाम में हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाया गया। सुबह से रात्रि तक चले भक्तिमय कार्यक्रमों में श्रद्धालुओं ने जमकर डुबकी लगाई।

श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी में चल रहे वार्षिक मेले में महावीर जयंती के मौके पर रंगारंग कार्यक्रम हुए पंडित मुकेश जैन शास्त्री ने बताया कि सवेरे 6:00 बजे भगवान जिनेंद्र का प्रक्षाल पूजन विधान शांतिधारा पाठ का आयोजन हुआ 7:00 बजे मंदि से प्रभात फेरी निकाली गई।जो कस्बे के सभी गली-मोहल्लों होती हुई वापस मंदिर परिसर पहुंची। तत्पश्चात मन्दिर परिसर स्थित मानस्तंभ पर समाज सेवी टीकमचंद लोहाडीया व उनकी धर्मपत्नी शकुंतला देवी सुमेर चंद पाटोदी श्रीमती सरोज देवी ने ध्वजारोहण किया।


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कार्यक्रम की शुरुआत में महिला महाविद्यालय की छात्राओं ने मंगलाचरण गीत की प्रस्तुति दी। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुधांशु कासलीवाल ने मंदिर कमेटी ट्रस्ट की ओर से क्षेत्र के विकास की जानकारी दी। मुनि चिन्मयानंद ने प्रवचन दिए। भगवान महावीर के बताए मार्ग पर चलने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने जियो और जीने दो का संदेश देकर सहकार की भावना का मार्ग प्रशस्त किया। कार्यक्रम में मंदिर कमेटी के प्रबंधक नेमी कुमार पाटनी समेत सभी पदाधिकारी व दिल्ली जयपुर मुंबई व अन्य जगहों से आए श्रद्धालु उपस्थित थे। गाजे-बाजे से निकली कलश यात्रा महावीर जयंती पर सुबह 8:00 बजे गंभीर नदी तट पर स्थित बाग तक जलयात्रा गाजे बाजे के साथ निकाली गई।


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मंदिर कमेटी के प्रबंधक नेमी कुमार पाटनी ने बताया कि मुख्य मन्दिर से कलश यात्रा रवाना हुई जिसमें यात्रा के आगे धर्म चक्र ले कर जैनेतर चल रहे थे। वही 21 केसरिया पताकाओ के साथ बच्चे आगे आगे बढ़ रहे थे। इनके पीछे मंगल गीत गाती महिलाएं सिर पर कलश रखकर चल रही थी। जुलूस में चल रहे जैनोत्तर भगवान महावीर के जयकारे लगाते आगे बढ़ रहे थे। जिससे क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय गुंजायमान हो उठा। जलयात्रा गंभीर नदी तट पर सभा में परिवर्तित हुई। जहां रजत कंलशो की बोली लगाई गई। इसके बाद जुलूस के मुख्य मंदिर पहुंचने पर पंडित मुकेश शास्त्री ने सभी को वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ कटला परिसर के पश्चिमी पंडाल में स्थापित करवाया।

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