अलगाव की बात में सुख नहीं : RSS प्रमुख भागवत

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 15 जनवरी 2018, 11:37 PM (IST)

रायपुर। अलग होने की बात या अलगाव की बात में सुख नहीं है। जोडऩे वाली बात में भारत की संस्कृति है। भारत को जोडऩे वाले हमारे पूर्वज हैं। ये बातें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सोमवार को स्वयं सेवकों को संबोधित करते हुए कही। संघ की ओर से उनका उद्बोधन कार्यक्रम राजधानी रायपुर में साइंस कॉलेज मैदान में हुआ। उन्होंने कहा किए सत्ता कृत्रिम है और सत्ता की मुद्रा सुख के बाजार में चलना बंद हो जाती है। स्वत्व की सुरक्षा के लिए समूह बनते हैं। धर्म सबका एक हो ही नहीं सकता, क्योंकि रुचि सबकी अलग-अलग है।

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘हम भारत के लोग हैं। यदि भारत ही नहीं रहेगा तो हम-आप रह नहीं सकते, भारत को एक रहना पड़ेगा। भारत की एकता व अखंडता एकात्मता की आड़ आने वाली कोई चीज हमारे सुख का कारण नहीं बनेगी। वह हमारे दुख का कारण बनेगी। अभी तक ऐसा ही होता आया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जब तक हम भारत के नाते जी रहे थे, उद्यम कर रहे थे। अपने वैभव के लिए अपनी सुरक्षा प्रतिष्ठा के लिए लड़ रहे थे। भारत के नाते तब तक हमारी कभी पराजय नहीं हुई। हमको लूटने-खसोटने के लिए देश की सीमाओं के अंदर कोई प्रवेश नहीं कर सका। जिस दिन हमने अलग-अलग सोचना शुरू किया, अपने आपको अलग मानना शुरू किया, अपने स्वार्थ को बाकी लोगों के स्वार्थ से ऊपर माना, देश के स्वार्थ के ऊपर माना, तब हमारा देश टूट गया।’’

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘सम्पूर्ण विश्व के अर्थकारण का पहले नंबर का देश कर्जा लेने वाला देश हो गया। इतिहास में जब भी हमने भारत के लिए एक होकर अपनी स्वतंत्रता के लिए प्रयास किया, तब हम जीत गए।’’ भागवत ने कहा कि अफगानिस्तान से बर्मा तक और तिब्बत की चीन की धरा से श्रीलंका के दक्षिण तक जितना जनसमूह रहता है, उनके पूर्वज समान हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर बड़ा काम करना चाहते हो, तो उसके लायक बनो। मनुष्य बुद्धि के बल पर राजा बनता है। समूह के सुख के लिए व्यक्तिगत सुख को छोडऩा पड़ेगा। मनुष्य खुद पर विश्वास रखता है। याद रखो, जिसका संख्याबल ज्यादा होता, उसकी चलती है।’’ भागवत से कहा कि संघ के माध्यम से आदिवासियों को बचाने के लिए बस्तर में प्रयास करने की आवश्यकता है।

इस दौरान छत्तीसगढ़ गोंड समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष मोहन सिंह टेकाम ने कहा कि आज समाज में जागृत समरसता की आवश्यकता है। आदिवासी समाज को तोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। आदिवासियों ने राष्ट्रहित के लिए बलिदान दिया है। देश को संभालने की आवश्यकता है। कुछ लोग धर्म परिवर्तन का प्रयास कर रहे हैं।

--आईएएनएस

ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे