ग्लोबल वॉर्मिंग: कहीं कड़ाके की ठंड, कहीं भीषण गर्मी, जानें-भारत पर कितना असर

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 09 जनवरी 2018, 1:34 PM (IST)

नई दिल्ली। वर्तमान में ग्लोबल वॉर्मिंग का असर दुनियाभर में साफ नजर आ रहा है। एक ओर जहां पूरा उत्तर भारत ठंड और शीतलहर की चपेट में है। वहीं अमेरिका, चीन और कनाडा जैसे देशों में भीषण सर्दी पड़ रही है। लेकिन, ऑस्ट्रेलिया 79 साल की सबसे भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। ऑस्टे्रलिया सबसे गर्म है और ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में 79 साल बाद 47.5 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया। सिडनी में 1939 में 47.8 डिग्री तापमान दर्ज किया गया था। अमेरिका में 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित न्यू हैंपशायर पहाड़ी में पारा रिकॉर्ड माइनस 73 डिग्री रिकॉर्ड किया गया। यह 85 साल में सबसे कम है।

इससे पहले 1934 में माइनस 57 डिग्री दर्ज किया गया था। इधर, चीन में भारी बर्फबारी के चलते जनजीवन प्रभावित है। बर्फबारी के चलते यहां अब तक 21 लोगों की मौत हो चुकी है और 700 से ज्यादा मकान ढह गए है। जानकारी के मुताबिक कुल एक लाख लोग प्रभावित हुए है और करीब 2800 मकानों को नुकसान हुआ है। वहीं, अफ्रीका के द्वीपीय देश मेडागास्कर में आए तूफान एवा से 29 लोगों की मौत हो चुकी है। अभी भी 22 लोग लापता हैं जबकि 17,170 लोग विस्थापित हो गए हैं। राजधानी मेडागास्कर में 3,191 हेक्टेयर धान के खेतों में बाढ़ आ गई है।

क्या है जलवायु परिवर्तन

ग्लोबल वार्मिंग यानी जलवायु परिवर्तन का मतलब है हमारी धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होना। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से गरम होती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरते हुए पृथ्वी की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर धरती के ऊपर एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस तरह धरती को गरम बनाए रखता है। इंसानों, दूसरे प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी मोटा होता जाता है। माना जाता है कि पिछली शताब्दी में यानी सन 1900 से 2000 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1 डिग्री फैरेनहाइट बढ़ गया है। सन 1970 के मुकाबले वर्तमान में पृथ्वी 3 गुणा तेजी से गर्म हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 से 8 डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। विश्व के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जाएँगी, समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा।

जलवायु परिवर्तन का भारत में कितना असर



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-भारत के कई राज्यों में पानी की काफी कमी आ चुकी है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के कारण धीरे-धीरे पानी की बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी।

-पानी की कमी के चलते खेती पर काफी बुरा असर पड़ेगा। इसके चलते खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ सकती है।

- बाढ़, तूफ़ान, सूखा और गर्म हवाएं चलने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

-इंसान ही नहीं, जीव जंतुओं की जिंदगी पर भी असर पड़ेगा। अलग-अलग मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा।

-जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में हर वर्ष 1 लाख 40 हजार लोगों की मौत होती है। ऐसे में भारत में भी जलवायु परिवर्तन के कारण मरने वालों की संख्या बढ़ जाएगी।

-जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा है। इसी का असर है कि जहां कभी भूंकप नहीं आते थे, वहां भूकंप आ रहे है। भारत के कई राज्यों में कही तेज गर्मी पड़ती है तो कई राज्यों में भारी बारिश के चलते बाढ़ का खतरा बना रहता है।

जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ?


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जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मनुष्य ही है। सामान्यत: जलवायु में परिवर्तन कई वर्षों में धीरे धीरे होता है। लेकिन मनुष्य के द्वारा पेड़ पौधों की लगातार कटाई और जंगल को खेती या मकान बनाने के लिए उपयोग करने के कारण इसका प्रभाव जलवायु में भी पडऩे लगा है। कारखानों को सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला माना जाता है, क्योंकि इसके आसपास रहने से साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा प्रदूषण फैलाने वालों में वाहनों को लिया जाता है। यह सभी वायु प्रदूषण फैलाने में अपना योगदान देते हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे उदाहरण है, जो वायु प्रदूषण के कारक बनते हैं। वायु प्रदूषण से गर्मी बढ़ जाती है और गर्मी बढऩे से जलवायु में भी परिवर्तन होने लगता है।

प्राकृतिक असर

इनमें वे कारण है, जो प्राकृतिक रूप से अपने आप ही हो जाते हैं। जैसे भूकंप, ज्वालामुखी का फटना, आदि। ज्वालामुखी फटने से उसमें से जो लावा निकलता है, उसके किसी जल स्रोत में जाने या कहीं भी जाने से वहाँ प्रदूषण फैल जाता है और जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण भी प्रदूषण ही है। जहाँ अधिक गर्मी होती है, वहाँ का दाब कम होने लगता है और उसके आसपास के क्षेत्र का दाब उस क्षेत्र से अधिक हो जाने के कारण जिस क्षेत्र में अधिक गर्मी है वहाँ तेजी से हवा आने लगता है। कई बार यह तूफान का रूप में धारण कर लेता है। यदि आसपास के क्षेत्र में वर्षा का बादल हो तो वह भी हवा के साथ साथ तेजी से उस क्षेत्र में आने लगता है। इस तरह के बारिश में तेज हवा चलती है और ओले भी गिरने लगते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल 1 लाख 40 हजार लोगों की मौत



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विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि हर वर्ष 1 लाख 40 हजार लोगों की मौत जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रही है। जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा मौतें अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में हो रही है। दुनिया में जलवायु परिवर्त के बुरे प्रभावों से बचने के लिए तमाम सरकारों को हर वर्ष कम से कम 6 लाख 35 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन ने जलवायु परिर्वतन के मुद्दे पर आज से 82 वर्ष बाद तक का अनुमान लगाया है। ओईसीडी के मुताबिक वर्ष 1960 के मुकाबले वर्ष 2100 में तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। अगर ये अनुमान सही साबित हुआ तो दुनिया की अर्थव्यवस्था पर 2 से 10 प्रतिशत तक का बुरा असर पड़ सकता है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2050 तक अर्थव्यवस्था में बिना कार्बन वाले ऊर्जा के स्त्रोतों के लिए करीब 2,815 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। जो दुनिया के सालाना जीडीपी का 58 प्रतिशत है।

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