सभी ग्रहों में सूर्य पुत्र भगवान शनिदेव को सबसे कू्र ग्रह माना गया है।
भगवान शनिदेव हर राशि में विचरण करते हैं। किसी राशि में शनिदेव ढाई वर्ष
तो किसी राशि साढे सात वर्ष तक रहते हैं। भगवान शनिदेव को कर्मो के अनुसार
दण्ड देने का प्रतीक माना जाता है। जो जैसा कार्य करता है भगवान शनिदेव उसे
वैसा ही दण्ड देते हैं। जिस किसी भी कुण्डली में शनिदेव विराजमान होते हैं
वे इंसान हमेशा परेशान रहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार कुछ उपाय करने से शनिदेव शांत रहते हैं और उस इंसान को
शनिदेव कम परेशान करते हैं। शनिवार के दिन काले घो़डे की नाल या समुद्री
नाव की कील से लोहे की अंगूठी बनवाएं। उसे तिल्ली के तेल में 7 दिन शनिवार
से शनिवार तक रखें तथा उस पर शनि मंत्र के 23,000 जाप करें। शनिवार के
दिन शाम के समय इसे धारण करें। यह अंगूठी मध्यमा (शनि की अंगुली) में ही
पहनें तथा इसके लिए पुष्य, अनुराधा, उत्तरा, भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र
सर्वश्रेष्ठ हैं।
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शनिवार या शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्त्रान आदि से निवृत्त होकर कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें व उसकी पंचोपचार से विधिवत पूजन करें। पूजन के बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे किसी एक मंत्र की कम से कम 5 माला जप करें तथा शनिदेव से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें। यदि प्रत्येक शनिवार को इस मंत्र का इसी विधि से जप करेंगे तो शीघ्र लाभ होगा।
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मंत्र पौराणिक शनि मंत्र :
ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
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प्रत्येक शनिवार को शाम के समय ब़ड (बरगद) और पीपल के पे़ड के नीचे सूर्योदय से पहले स्त्रान आदि करने के बाद क़डवे तेल का दीपक लगाएं और दूध एवं धूप आदि अर्पित करें।
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