ईश्वर के चरणों में रहे, वो भक्त भाग्यशाली हैं -पूज्य नागरजी

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 07 दिसम्बर 2017, 3:14 PM (IST)

बारां। बड़ा के बालाजी धाम में बुधवार को हजारों श्रद्धालुओं ने आसमान से बरसती बूंदों में भीगते हुए श्रीमद् भागवत कथामृत का भावपूर्ण रसपान किया। दिव्य गौसेवक संत पूज्य पं. कमलकिशोर ‘नागरजी’ ने कहा कि बिछिया असली हो या नकली, वह महिला के पैर में अच्छी लगती है, किसी डिब्बी में नहीं। नारी के पैर में भले ही नकली बिछिया क्यों न हो, वह सौभाग्यवती कहलाती है। इसी तरह,जो भक्त ईष्वर के चरणों में रहता है, वो भाग्यषाली रहता है। कोई धनाड्य होकर बंगलों में डिब्बी की तरह बंद रहते हैं, लेकिन कोई कथा-सत्संग से जाकर प्रभू के चरणों में भक्ति करते हैं, वहां वह कृपा वर्शा अवष्य करता है। जिस पर उसने दया दृश्टि डाल दी, वो तर गए। वर्शा में भीगना और सर्दी को सहना भी तप है। आप भक्ति में भीगे हो, इसलिए प्रभू के चरणों में हो। जहां मिले रोज यह चरणामृत लेते रहो।

उन्होंने कहा कि जीवन में तीन अमृत हमेषा लेना। पहला, चरणामृत, जो मंदिरों में प्रभू दर्षन करने से मिलेगा। दूसरा, वचनामृत,जो कथा-सत्संग में अच्छी वाणी से मिलता है। तीसरा, अधरामृत, जो केवल मां की गोद में दुग्धपान से मिलता है। अधरामृत न धरती पर मिलता है, न आसमान में। यह केवल मां की गोद में मिल पाता है। पांडाल में ‘भजन करो, गोविंद नहीं है दूर, गोविंद मिलेगा जरूर..’ गंूजा तो उन्होंने कहा कि यह चैथा अमृत प्राकृत दया के रूप में उपर से किसानों पर बरसा है। वो आपके खेत में वर्शा कर आगे की हरियाली की व्यवस्था कर रहा है।


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हर गांव-द्वार वृंदावन बने

पूज्य नागरजी ने कहा कि जिस घर के द्वार या गांव में ठाकुरजी की दया व कृृपा हो, समझ लेना आप वृंदावन में है। अपने घर-गांव को वृंदावन बनाने के लिए तुलसी क्यारा (वृंदा), देषी षहद (मधुवन), मोरपंख, कदम का पेड़ एवं गाय अवष्य हो, तभी वह वृंदावन का रूप लेगा। वहां कलियुग या असमय यमदूत का प्रवेष नहीं हो सकता।

पाप की धारा से हटो, पुण्य की धारा से जुड़ो़


उन्होंने कहा कि आजकल केष (धन) से केस दब जाता है। अपराध करके मुलजिम पैसों से धारा बदलवा देते हैं, बरी हो जाते हैं। आप पैसों से केवल दोशमुक्त हो सकते हो। आज न चाहते हुए भी हमसे कहीं न कहीं पाप हो रहे हैं। भजन-दर्षन-सत्संग की धारा से जुड़कर आप पापमुक्त हो जाओ। षरीर के दोशों को भजन से दूर कर लो। भक्ति की धारा से हमेषा जुड़े रहो।


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तृतीय सोपान सूत्र-

निंदा पाठ हम रोज कर रहे हैं, गीता पाठ करना भूल रहे हैं।

संसार नहीं है यहां रहने को, यहां कश्ट ही कश्ट हैं सहने को। बस, भक्ति से जुड़े रहो।

बरसात हो या ठंड हमें भजन सुनना है। यही भक्ति का तप है।

निंदा पाठ हम रोज कर रहे हैं, गीता पाठ करना भूल रहे हैं।

ज्ञानवाणी से अपने अज्ञान को राख की तरह ढक दें।

कथा व ष्मषान दोनों जगह हम बिना बुलाए जाते हैं।

मन भटकता है लेकिन बुद्धि चाहे तो एक क्षण में ईष्वर से मिला दे।

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