कृषि विश्वविद्यालय हिसार अपने अनुसंधान को अमेरिका के विश्वविद्यालयों के सहयोग से मजबूत बनाएगा

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 06 दिसम्बर 2017, 3:09 PM (IST)

चण्डीगढ़/ हिसार। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार अपने अनुसंधान और शिक्षण कार्यों को अमेरिका के विश्वविद्यालयों के सहयोग से और सुदृढ़ बनाएगा। विश्वविद्यालय ने इसके लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइ, वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी और मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के साथ अनुबंध किए हैं।

कुलपति प्रो. के.पी. सिंह की उपस्थिति में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हकृवि) की ओर से मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. अश्वनी कुमार, यूनिवर्सिटी ऑफ इलीनोइ से केंट डी रोश व डॉ. विजय सिंह ने, मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से लॉऊ एना साइमन तथा वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी से प्रो. कुलविन्द्र गिल ने अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।कुलपति प्रो. के.पी. सिंह के अनुसार हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय इन अमेरिकन विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर भविष्य की कृषि पर काम करेगा जिससे न्यूनतम संसाधनों के प्रयोग से कृषि उत्पादन बढ़ाने के अलावा किसानों की आय को दोगुणा करने में मदद मिलेगी।

उन्होंने बताया कि इन द्विपक्षीय समझौतों के तहत हकृवि फैकल्टी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक सहायता तथा पेटैंट प्राप्त करने, फैकल्टी, विद्यार्थियों व प्रगतिशील किसानों का आदान-प्रदान, प्रौद्योगिकी विकास व विस्तार तथा सैंटर ऑफ एक्सेलैंस स्थापित करने की दिशा में कार्य किया जाएगा। इस सहयोग से विकसित की गई प्रौद्योगिकी का एशियाई और अफ्रीकी देशों में भी विस्तार किया जाएगा। संयुक्त अनुसंधान कार्य को अंतिम रूप देने के लिए हकृवि के वैज्ञानिक अगले वर्ष मध्य जनवरी में स्काइप के जरिए वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के साथ विचार-विमर्श करेंगे।उन्होंने बताया कि फिलहाल हकृवि वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. कुलविन्द्र गिल के साथ मिलकर गर्मी को सहन करने में सक्षम गेहूं की किस्म के विकास पर कार्य कर रहा है। इस किस्म के विकास से भविष्य में बढ़ते तापमान से गेहूं की पैदावार पर हो रहे कुप्रभाव से निजात मिल सकेगी क्योंकि एक डिग्री सैल्सियस ताप बढऩे से उपज में 5 प्रतिशत की कमी आ जाती है। उन्होंने बताया कि ये दोनों विश्वविद्यालय चावल की सुगंधित व गैर-सुगंधित किस्मों में सीलिका की मात्रा कम करने पर भी शोध कार्य करेंगे। इससे धान के अवशेषों को पशुओं के चारे के रूप में उपयोग किया जा सकेगा। धान की ऐसी सुगन्धित किस्मों के विकास पर कार्य किया जाएगा जिससे धान की यूरोपियन मार्केट में मांग बढ़े ताकि किसानों को अधिक मुनाफा हो सके।

प्रो. के.पी. सिंह ने बताया कि कुवैत इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च के डॉ. कृष्णा सुगुमारन के साथ हुए समझौते के तहत सब्जियों को एलइडी रोशनी में मिट्टी के बगैर संरक्षित ग्रीन हाऊस में पैदा करने पर कार्य किया जाएगा। इस विधि में कम पानी व कम खाद तथा रसायनों के प्रयोग के बिना परम्परागत विधि से 10 गुणा कम स्थान में उतनी ही पैदावार ली जा सकती है। इस विधि से सब्जियों की गुणवत्ता में भी सुधार आता है। एलईडी रोशनी के प्रयोग से कीटों के आक्रमण से भी बचा जा सकता है। यह विधि भविष्य में सब्जियों की फैक्टरी के रूप में कारगर सिद्ध हो सकेगी। उन्होंने बताया कि यूनिवर्सिटी ऑफ इलीनोइ से केंट डी रोश तथा डॉ. विजय सिंह के साथ हुए समझौते के तहत विज्ञान एवं इंजीनियरिंग तकनीकों पर खाद, बायो फ्यूल व बायो प्रोडक्ट्स पर नवीनतम तकनीक पर ध्यान दिया जाएगा। इसमें मक्का व दूसरे पौधों से प्राकृतिक रंग निकालकर फूड इंडस्ट्रीज़ की जरूरतों को पूरा किया जाएगा। इसके अलावा, रंगाई व दूसरे औद्योगिक कार्यों में भी इनका सदुपयोग होगा। इसमें धान की पराली से बायो फ्यूल की तकनीक को उन्नत किया जाएगा जिससे पराल का समुचित प्रबंधन हो सके व वातावरण को दूषित होने से बचाया जा सके। उन्होंने बताया कि गन्ना व चारा की दूसरी फसलों से इथनोल व बायो फ्यूल निकालने की विधि को विकसित करने की दिशा में काम किया जाएगा जिससे भविष्य की ईंधन की मांग की पूर्ति हो सके। इसमें सस्य वैज्ञानिक, पौध प्रजनक एवं इंजीनियजऱ् मिलकर कार्य करेंगे।

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