मिसाइलमैन डॉ. कलाम के 10 अनसुने किस्से

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 15 अक्टूबर 2017, 8:13 PM (IST)

नई दिल्ली। देश के महान कर्मयोगी, भारतरत्न, मिसाइलमैन के नाम से लोकप्रिय पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के मध्यमवर्गीय परिवर में हुआ था। डॉ. कलाम एक ऐसे राष्ट्रपति बने जिनके जीवन का सफर झोपड़ी से प्ररम्भ हुआ और भारत को सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं में आत्मनिर्भर बनाते हुए विकास के नए मिशन को देश की जनता के सामने प्रस्तुत किया। अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति के रूप में देश की पांच साल तक सेवा करने के बाद कलाम शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने जीवन में लौट आए। उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चुका है।
पेश है राष्ट्रपति कलाम साहब के कुछ अनकहे किस्सें।

जब जूता बनाने वाला और ढाबा मालिक बने मेहमान-

2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद डॉक्टर पहली बार केरल गए थे। उस वक्त केरल राजभवन में राष्ट्रपति के मेहमान के तौर पर दो लोगों को न्योता भेजा गया। पहला था जूते-चप्पल की मरम्मत करने वाला.. और दूसरा एक ढाबा मालिक तिरुवनंतपुरम में रहने के दौरान इन दोनों से उनकी मुलाकात हुई थी।

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ट्रस्ट को दान कर देते थे पूरा वेतन
डॉ कलाम ने कभी अपने या परिवार के लिए कुछ बचाकर नहीं रखा। राष्ट्रपति पद पर रहते ही उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी और मिलने वाली तनख्वाह एक ट्रस्ट के नाम कर दी। उन्होंने कहा था कि चूंकि मैं देश का राष्ट्रपति बन गया हूं, इसलिए जबतक जिंदा रहूंगा सरकार मेरा ध्यान आगे भी रखेगी ही। तो फिर मुझे तनख्वाह और जमापूंजी बचाने की क्या जरूरत।

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जूनियर वैज्ञानिक व्यस्त था तो उसके बच्चे को खुद प्रदर्शनी ले गए
डॉ कलाम जब डीआरडीओ के डायरेक्टर थे तो उसी दौरान एक दिन एक जूनियर वैज्ञानिक ने डॉ कलाम से आकर कहा कि मैंने अपने बच्चों से वादा किया है कि उन्हें प्रदर्शनी घुमाने ले जाऊंगा। इसलिए आज थोड़ा पहले मुझे छुट्टी दे दीजिए। कलाम ने खुशी-खुशी हामी भर दी। लेकिन काम में मशगूल वैज्ञानिक ये बात भूल गया.. जब वो रात को घर पहुंचा तो ये जानकर हैरान रह गया कि डॉ कलाम वक्त पर उसके घर पहुंच गए और बच्चों को प्रदर्शनी घुमाने ले गए।

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मंच पर बड़ी कुर्सी पर बैठने से मना किया
मौका था साल 2013 में आईआईटी वाराणसी में दीक्षांत समारोह का, बतौर मुख्य अतिथि वहां पहुंचे डॉक्टर कलाम ने कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया.. क्योंकि वो वहां मौजूद बाकी कुर्सियों से बड़ी थी, कलाम बैठने के लिए तभी राजी हुए जब आयोजकों ने बड़ी कुर्सी हटाकर बाकी कुर्सियों के बराबर की कुर्सी मंगवाई।

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डीआरडीओ की दीवारों पर कांच लगाने से मना किया
डॉ कलाम कितने संवेदनशील थे इसका वाकया डीआरडीओ में उनके साथ काम कर चुके लोग बताते हैं। 1982 में वो डीआरडीओ यानी भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में डायरेक्टर बनकर आए थे। डीआरडीओ की सुरक्षा को और पुख्ता करने की बात उठी। उसकी चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगाने का प्रस्ताव भी आया। लेकिन कलाम ने इसकी सहमति नहीं दी। उनका कहना था कि चारदीवारी पर कांच के टुकड़े लगे..तो उस पर पक्षी नहीं बैठ पाएंगे और उनके घायल होने की आशंका भी बढ़ जाएगी। उनकी इस सोच का नतीजा था कि डीआरडीओ की दीवारों पर कांच के टुकड़े नहीं लगे।

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वीआईपी तामझाम छोड़ रात में ही छात्रों के बीच पहुंचे
एक बार डॉ कलाम को एक कॉलेज के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शरीक होना था। उस वक्त तक वो राष्ट्रपति तो नहीं बने थे लेकिन डीआरडीओ में एक बड़े पद पर थे और सरकार के सलाहकार भी थे। कार्यक्रम से एक दिन पहले रात में ही कलाम को कार्यक्रम की तैयारी देखने का इच्छा हुई। वो बिना सुरक्षा लिए ही जीप में सवार होकर कार्यक्रम की जगह पहुंच गए और वहां मौजूद छात्रों से बात की। वीआईपी तामझाम से उलट डॉ कलाम के इस अंदाज ने छात्रों का दिल जीत लिया।

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बिजली गुल हुई तो छात्रों के बीच जाकर भाषण दिया
साल 2002 की बात है। डॉ कलाम का नाम अगले राष्ट्रपति के रूप में तय हो चुका था। उसी दौरान एक स्कूल ने उनसे छात्रों को संबोधित करने की गुजारिश की। बिना सुरक्षा तामझाम के डॉ कलाम उस कार्यक्रम में शरीक हुए। 400 छात्रों के सामने वो भाषण देने के लिए खड़े हुए ही थे कि बिजली गुल हो गई। आयोजक जबतक कुछ सोचते, डॉ कलाम छात्रों के बीच पहुंच गए और बिना माइक के अपनी बात रखी और छात्रों के सवालों का जवाब दिया।

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जब कलाम ने हाथ से बनाकर भेजा ग्रीटिंग कार्ड
डॉ कलाम दूसरों की मेहनत और खूबियों को तहेदिल से सराहते थे और अपने हाथों से थैंक्यू कार्ड बनाकर ऐसे लोगों को भेजा करते थे। डॉ कलाम जब राष्ट्रपति थे। उस दौरान नमन नारायण नाम के एक कलाकार ने उनका स्केच बनाया और उन्हें भेजा। नमन के पास जब राष्ट्रपति डॉ कलाम का हाथ से बना थैंक्यू कार्ड और संदेश पहुंचा तो वो भौंचक्के थे। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि देश के महामहिम इस तरह दोस्ताना अंदाज में उन्हें शाबासी देंगे।

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आईआईएम अहमदाबाद की कहानी
डॉ कलाम में एक बड़ी खूबी ये थी कि वो अपने किसी प्रशंसक को नाराज नहीं करते थे। डॉ कलाम आईआईएम अहमदाबाद के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर गए। कार्यक्रम से पहले छात्रों ने डॉ कलाम के साथ लंच किया और छात्रों की गुजारिश पर उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने लगे। कार्यक्रम में देरी होता देख आयोजकों ने छात्रों को तस्वीरें लेने से मना किया। इस पर कलाम ने छात्रों से कहा कि कार्यक्रम के बाद मैं तबतक यहां से नहीं जाऊंगा जबतक आप सबों के साथ मेरी तस्वीर न हो जाए। ऐसे थे डॉक्टर कलाम।

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मां की जली रोटी पर पिता के व्यवहार ने दी सीख
मिलने आने वाले बच्चों को डा. कलाम अक्सर अपने बचपन का एक किस्सा बताया करते थे। किस्सा तब का है जब डॉ कलाम करीब आठ-नौ साल के थे। एक शाम उनके पिता काम से घर लौटने के बाद खाना खा रहे थे। थाली में एक रोटी जली हुई थी। रात में बालक कलाम ने अपनी मां को पिता से जली रोटी के लिए माफी मांगते सुना। तब पिता ने बड़े प्यार से जवाब दिया- मुझे जली रोटियां भी पसंद हैं। कलाम ने इस बारे में पिता से पूछा तो उन्होंने कहा- जली रोटियां किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, कड़वे शब्द जरूर नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए रिश्तों में एक दूसरे की गलतियों को प्यार से लो और जो तुम्हें नापसंद करते हैं, उनके लिए संवेदना रखो।

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