महापुरूषों का जीवन नई पीढ़ी के लिए प्रकाशस्तंभ की तरह मार्गदर्शक-सीएम

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017, 6:59 PM (IST)

चंडीगढ़।महापुरूषों का जीवन नई पीढ़ी के लिए प्रकाशस्तंभ की तरह मार्गदर्शक होता है इसलिए उनका जीवन, कार्यों, सिद्धांतों और आदर्शों को किसी न किसी रूप में आने वाली पीढि़यों तक पहुंचाने की परम्परा बनी रहनी चाहिए। ऐसा होने पर ही हम उनके सपनों का भारत बनाने में सफल रहेंगे।
ये उदगार हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आज अपने निवास पर महान स्वतंत्रता सेनानी व गांधीवादी नेता बाबू मूलचन्द जैन के जीवन पर लिखी पुस्तक ‘राजनीति के संत-स्वतंत्रता सेनानी बाबू मूलचन्द जैन’ का लोकार्पण करने के बाद आपने सम्बोधन में व्यक्त किए। पुस्तक का लेखन बाबू मूलचन्द जैन की बेटी डॉ. स्वतन्त्र जैन ने किया है। इस अवसर पर हरियाणा के विधानसभा अध्यक्ष कंवर पाल, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री कृष्ण कुमार बेदी, हरियाणा भाजपा के मीडिया इंचार्ज राजीव जैन के अलावा स्वर्गीय मूलचन्द जैन के परिजन भी उपस्थित थे।

पुस्तक के लोकार्पण अवसर पर लेखिका डॉ. स्वतन्त्र जैन और उनके परिजनों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे गर्व है कि आज मेरी कर्मभूमि करनाल है जो बाबू मूलचन्द जैन जैसे कर्मयोद्धा की कर्मभूमि भी रही है। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय जैन मौलिक विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने आजादी के आन्दोलन में और उसके बाद की राजनीति में भी कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और कभी भी गलत काम को सहन नहीं किया। वे आम आदमी की आवाज थे और सामाजिक व आर्थिक समानता के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। इसके लिए भूदान आन्दोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसी प्रकार 1986 में न्याययुद्ध के दौरान चौ. देवीलाल और डॉ. मंगलसेन के साथ मिलकर उन्होंने हरियाणा की राजनीति को नई दिशा दी। आजादी के आन्दोलन के दौरान 1939 में आसौदा सत्याग्रह में तो उन्हें इतना मारा गया था कि वे मरते-मरते बचे।
इससे पहले पुस्तक की लेखिका डॉ. स्वतन्त्र जैन ने पुस्तक के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान हरियाणा के हालात का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसमें आजादी के बाद के राजनीतिक घटनाफ्म का भी रोचक वर्णन है। बाबू मूलचन्द जैन अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले नेता थे, इसलिए सिद्धांतों की खातिर समकालीन नेताओं और राजनीतिक दलों से उनकी बड़ी खींचतान रही।

उन्होंने कहा कि बाबू मूलचन्द जैन भारत मां के उन सपूतों में से एक थे जिन्होंने अंगे्रजी साम्राज्य को समाप्त करने के लिए अनेक कष्ट और यातनाएं सहीं। यही नहीं देश की आजादी के लिए जेलों की यातनाएं सहने वाले उस महान स्वतंत्रता सेनानी को आजाद भारत में भी आपातकाल के दौरान अपने सिद्धांतों की खातिर 19 माह जेल की काल कोठरी में बिताने पडे़। इससे पहले उन्हें पद, कुर्सी आदि का लालच देकर तोड़ने की कोशिश की गई लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। पुस्तक एक राजनेता की अपेक्षा बाबू मूलचंद जैन को एक सिद्धांतवादी और गांधीवादी संत के जीवन, कर्म और चरित को पाठकों के सामने अधिक प्रस्तुत करती है।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे