रावणरूपी नोटबंदी और जीएसटी का अहंकार अब भी कर रहा है अट्‌टहास

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 01 अक्टूबर 2017, 11:44 AM (IST)

सुधीर कुमार शर्मा
जयपुर। विजयादशमी पर्व पर रावण दहन के साथ असत्य पर सत्य की जीत हो गई। भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके उसके अहंकार को समूल रूप से नष्ट कर दिया था, लेकिन भगवान श्रीराम द्वारा एक बार वध करने के बावजूद रावण का अहंकार आज तक जिंदा रहता आया है और उसे खत्म करने के लिए हर बार भगवान श्रीराम को उसका वध करना पड़ रहा है। इस बार भी भगवान श्रीराम ने रावण के पुतले को फूंक कर उसके अहंकार का दमन किया, लेकिन रावण का अहंकार आज भी हमारे सामने मुंह खोले खड़ा है।

कई वर्षों से कर रहे हैं काम, पहली बार पूरी तरह रहे घाटे में

टोंक फाटक इलाके में रावण बेचने ब्यावर से आए किशन का कहना है कि वे दो माह पहले अपने परिवार के साथ यहां आकर रावण बनाने में जुट गए थे। लेकिन इस बार का रावण हमें कर्जदार बना गया। जैसे-तैसे करके करीब डेढ़ लाख की लागत से रावण के पुतले तैयार किए थे। विजयदशमी के दिन तक करीब 50 हजार रुपए के रावण के पुतले ही बिक सके। इस बार पूरा एक लाख रुपए का घाटा लगा है। कई वर्षों से यहां रावण के पुतले बेचते आए हैं। ऐसा कभी नहीं हुआ। इस बार पहली बार ऐसा हुआ है कि हमें लाख रुपए का घाटा उठाना पड़ रहा है। यह सब सरकार की ओर से की गई नोटबंदी और जीएसटी लागू करने का परिणाम है। इस बार तो लोगों ने भी रावण के पुतले खरीदने में भी रुचि नहीं दिखाई। हाल यह हो गया कि खर्चा निकालना तो दूर परिवार का पेट भरना तक मुश्किल हो गया।

जलाने पड़ गए पुतले

किशन ने बताया कि उन्होंने 25 फुट से लेकर 2-3 फुट तक के रावण के पुतले तैयार किए थे। आधे से ज्यादा पुतले बच गए हैं। उनसे जब शेष बचे पुतलों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने एक तरफ इशारा करते हुए बताया कि छोटे आकार के सभी पुतले तो उन्होंने खुद ने ही जला दिए। बड़े आकार के पुतलों को जलाने में थोड़ी परेशानी थी। क्योंकि यहां आसपास पेड़-पौधे जलने का डर है। साथ ही आसपास बिल्डिंग भी हैं। इस कारण ये पुतले नहीं जलाए। अब इन पुतलों को यहीं छोड़ दिया जाएगा। कोई इन्हें उठाकर ले जाना चाहे तो ले जा सकता है। हमारे तो ये अब किसी काम के नहीं। इस बार सरकार का जीएसटी और नोटबंदी के फैसले से उन्हें बर्बाद कर दिया। रावण बनाने वाले सभी लोगों का यही हाल है।

12000 का रावण 1100 रुपये तक में बेचना पड़ा





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किशन का कहना है कि ग्राहकी नहीं होने पर उन्हें परिवार का पेट भरने के लिए मजबूरीवश 25 फुट के 12000 की कीमत के रावण को 1100 रुपए में बेचना पड़ गया। इतने कम दाम पर बेचने के बारे में कभी सोचा ही नहीं था, पर हालत ऐसी हो जाएगी यह भी नहीं सोचा था। शेष रहे पुतलों को भी कम दामों पर बेचने का निर्णय किया, लेकिन ये भी नहीं बिक पाए।

तीन भाइयों के परिवार को पड़े रोटी के लाले




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टोंक रोड पर बी-2 बाईपास चौराहे पर जालोर जिले के भीनमाल से आए कन्हैयालाल के रावण के पुतले भी उनके लिए घाटे का सौदा रहा। अच्छे मुनाफे की उम्मीद लिए उन्होंने कई पुतले तैयार किए, लेकिन उन्हें भी बहुत घाटा लगा है। कन्हैयालाल के साथ उनके दो भाइयों मांगीलाल व शंकर महाराज ने भी पुतले बनाए थे। इस काम के लिए वे 15 से 20 की संख्या में लेबर भी साथ लाए थे। मुनाफा तो दूर लेबर को पैसा देना तक भारी पड़ गया है। उनके सामने परिवार को खिलाने तक के लाले पड़ गए हैं।


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कन्हैयालाल की आंखें यह सब बताते हुए नम हो गईं। उनका कहना था कि ऐसा लगता है कि इस बार महंगाई के रावण का अहंकार टूटा नहीं है, बल्कि और बढ़ गया है। जीएसटी और नोटबंदी ने कमर तोड़ दी है। तीनों भाइयों का परिवार यहां रोज-रोटी का जुगाड़ भी नहीं होने के कारण काफी परेशान है। भारी मन से उन्होंने भी कई पुतलों को आग के हवाले कर दिया।


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