आगामी 21 सितम्बर से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं। जो
लोग अभी तक किसी कारण से कोई अनुष्ठान अथवा पुरश्चरण नहीं कर सके हैं
उन्हें 21 तारीख से अवश्य शुरू कर देना चाहिए। यह जरुरी नहीं है कि नवरात्र
में केवल मां दुर्गा की ही उपासना की जाती है बल्कि इस समय आप किसी भी
इष्ट देवता के मंत्रो का अनुष्ठान कर सकते हैं।
नवरात्र
के पहले दिन अपने गुरु देव से मंत्र दीक्षा लेकर, उसका अनुष्ठान करना
चाहिए। कुछ साधको के मन में एक प्रश्न रहता है कि क्या नवरात्र में शरू
किया गया अनुष्ठान नवरात्र में ही पूर्ण करना जरुरी है , नहीं ऐसा बिल्कुल
नहीं है। ये अनुष्ठान आप 21 अथवा 40 दिन में भी पूर्ण कर सकते हैं लेकिन
यदि हो सके तो अंतिम नवरात्र तक पूर्ण कर लेना चाहिए।
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यदि किसी
कारण से अनुष्ठान करना सम्भव नहीं है तो नवरात्र में जितना अधिक जप हो सके
उतना ही अच्छा है।
नवरात्र में अपने इष्ट देव के सहस्रनाम से अर्चन करना चाहिए। सहस्त्रनाम
में देवी या देवता के एक हजार नाम होते हैं। इसमें उनके गुण व कार्य के
अनुसार नाम दिए गए हैं। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन
करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना
जाता है।
सहस्र नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी
की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी
सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर देवी की प्रिय
वस्तु चढ़ाना चाहिए।
जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार से अधिक
संख्या में होनी चाहिए।
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अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या
कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की
पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को
प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक
व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। अर्चन की
सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करनी चाहिए।
अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य देवी या देवता को अर्पित करना
चाहिए। दीपक पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहना चाहिए।
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वैसे तो गीता में कहा गया है- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन अर्थात आपको केवल कर्म करते रहना चाहिए फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। फिर भी प्रयोजनम् अनुदिश्य मन्दो अपि न प्रवर्तते सिद्धांतानुसार विना कारण मुर्ख भी कोई कार्य नहीं करता है तो भक्त कारण शून्य कैसे हो सकता है। माता सर्व्यापिनी तथा सब कुछ जानने वाली है एतदर्थ मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा भक्त कभी रोगी नहीं होता अर्थात निरोगी हो जाता है।
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