वास्तु् शास्त्र में ब्रह्म स्थान और ब्रह्म स्थल का खासा
महत्व है। कहते हैं कि घर में ब्रह्म स्थान को महत्व देते हुए काम किए
जाएं तो भवन मालिक के वारे-न्यारे हो सकते हैं। कभी भी ब्रह्म स्थान को
ढककर रखना मुसीबतों को न्योता देना माना जाता है-
पौराणिक दृष्टिकोण से भी देखें तो ब्रह्म स्थान, यानी
ब्रह्मा का स्थल। ब्रह्मा के चार सिर हैं और उसी प्रकार किसी भी स्थान का
ब्रह्म स्थल मध्य में स्थित रह कर ब्रह्मा की तरह उस स्थान के चतुर्दिक
देखता है। किसी भी दिशा के दोषपूर्ण होने पर अगर उस दिशा से प्राप्य ऊर्जा
अगर ब्रह्मस्थल तक नहीं पहुंचती हैं तो स्वभावत: ब्रह्मस्थल की लाभकारी
दृष्टि से वह दिशा वंचित रह जाती है।
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ब्रह्मा जी का प्रकोप
फलत: वहाँ नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त होकर वहाँ के निवासियों के जीवन को अपने
स्वाभावानुसार प्रभावित करके कष्ट एवं दु:ख का कारण न जाती है। साधारण सी
बात है। किसी भी देश, राज्य, शहर का संचालन वहाँ का केन्द्र ही करता
है।किसी भी घर में ब्रह्म स्थान बड़ा महत्व रखता है। ये घर का बिलकुल बीच
वाला स्थान होता है. इसी स्थान से ऊर्जा पुरे घर में प्रवाहित होती है.
वास्तु शास्त्र में इसे सूर्य का स्थान माना जाता है।
किसी भी घर/भवन/मकान में घर में ब्रह्मस्थान एक तरह से
हमारे पेट की तरह होता है। खाना हम खाते तो मुँह से है लेकिन वितरण का काम
पेट का है इसी तरह से ऊर्जा उत्पन्न उत्तर-पूर्व यानि के ईशान से होती है
लेकिन प्रवाह ब्रह्मस्थान से ही होता है।
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ब्रह्म स्थान को खुला, साफ तथा हवादार रखना चाहिए। गृह
निर्माण में 81 पद वाले वास्तु चक्र में 9 स्थान ब्रह्म स्थान के लिए नियत
किए गये हैं। ब्रह्म स्थल यह केन्द्र बिन्दु अत्यन्त सूक्ष्म परन्तु
सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। प्रकृति के पंचतत्वों की ऊर्जा विभिन्न
दिशाओं से आकर किसी भी स्थल के केन्द्र विन्दु पर ही एकत्रित होती है एवं
वहीं से अपने निर्दिष्ट स्थान को प्रभावित करती है। वास्तु मे यह केन्द्र
बिन्दु ब्रह्मस्थान कहलाता है।
प्रत्येक स्थान, जहाँ हम
निवास अथवा कार्य करते हैं, वहां के ब्रह्मस्थान को स्वच्छ एवं सुरक्षित
रखना परम आवश्यक होता है।
ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे
का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि
मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने
सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जाएंगे।
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वास्तु शास्त्र में मकान आँगन रखने पर जोर दिया जाता है। वास्तु के अनुसार, मकान का प्रारूप इस प्रकार रखना चाहिए कि आँगन मध्य में अवश्य हो। अगर स्थानाभाव है, तो मकान में खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखें, जिससे सूर्य का प्रकाश व ताप मकान में अधिकाधिक प्रवेश कर सके।
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