आगामी 5 सिंतबर को पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है। विष्णु
पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध तथा तर्पण से तृप्त होकर पितृगण समस्त
कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं। श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के
द्वारा ही होती है अत: श्राद्ध के अवसर पर दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु तिथि
को निमंत्रण देकर ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान देकर
श्राद्ध कर्म करना चाहिए। पितरों को मनाने और पितृदोष को दूर करने के आसान
उपाय आपको बताए जा रहे हैं-
कुंडली में उपस्थित भिन्न प्रकार के दोषों के
निवारण के लिए की जाने वाली पूजाओं को लेकर बहुत सी भ्रांतियां तथा
अनिश्चितताएं बनीं हुईं हैं तथा एक आम जातक के लिए यह निर्णय लेना बहुत
कठिन हो जाता है कि किसी दोष विशेष के लिए की जाने वाली पूजा की विधि क्या
होनी चाहिए।
पितृ दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा को लेकर
बहुत अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है जिसके कारण जातक को दुविधा का सामना
करना पड़ता है। पित्र दोष के निवारण के लिए धार्मिक स्थानों पर की जाने
वाली पूजा के महत्व के बारे में पितृ दोष के निवारण के लिए की जाने वाली
पूजा है क्या।
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पितृ दोष का कारण
जातक ने अपने पूर्वजों
के मृत्योपरांत किये जाने वाले संस्कार तथा श्राद्ध आदि उचित प्रकार से
नहीं किये होते जिसके चलते जातक के पूर्वज उसे शाप देते हैं जो पितृ दोष
बनकर जातक की कुंडली में उपस्थित हो जाता है, उसके जीवन के विभिन्न
क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न करता है। ऐसे पित्र दोष के निवारण के लिए
पित्रों के श्राद्ध कर्म आदि करने, पिंड दान करने तथा नारायण पूजा आदि का
सुझाव देते हैं, निवारण के लिए जातक को नवग्रहों में से किसी ग्रह विशेष के
कार्य क्षेत्र में आने वाले शुभ कर्मों को करना पड़ता है जिनमें से उस
ग्रह के वेद मंत्र के साथ की जाने वाली पूजा भी एक उपाय है जिसे पितृ दोष
निवारण पूजा भी कहा जाता है।
दोष के निवारण के लिए की जाने
वाली पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है दोष के निवारण के लिए
निश्चित किये गए मंत्र होती है। पूजा के आरंभ वाले दिन पांच या सात पंडित
पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक के साथ भगवान शिव के शिवलिंग के समक्ष
बैठते हैं तथा शिव परिवार की विधिवत पूजा करने के पश्चात मुख्य पंडित यह
संकल्प लेता है कि वह और उसके सहायक पंडित उपस्थित यजमान के लिए पित्र दोष
के निवारण मंत्र जाप एक निश्चित अवधि में करेंगे तथा इस जाप के पूरा हो
जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि करेंगे।
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संकल्प के समय मंत्र का जाप करने वाली सभी पंडितों का नाम
तथा उनका गोत्र बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का
नाम, उसके पिता का नाम तथा उसका गोत्र भी बोला जाता है पितृ दोष के निवारण
मंत्र के इस जाप से पित्र दोष का निवारण होता है।
समापन पूजा के चलते नवग्रहों से कुछ विशेष ग्रहों से
संबंधित विशेष वस्तुओं का दान किया जाता है जो जातकों के लिए भिन्न हो सकता
है तथा इन वस्तुओं में चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, तेल, सफेद तिल,
काले तिल, जौं तथा कंबल का दान किया जाता है। हवन की प्रक्रिया शुरू की
जाती है जो जातक तथा पूजा का फल प्रदान करने वाले देवी देवताओं अथवा ग्रहों
के मध्य एक सीधा तथा शक्तिशाली संबंध स्थापित करती है।
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विधियों के साथ हवन अग्नि प्रज्जवल्लित करने के पश्चात तथा हवन शुरू करने के पश्चात पित्र दोष के निवारण मंत्र का जाप पुन: प्रारंभ किया जाता है, इस मंत्र का जाप पूरा होने पर स्वाहा: का स्वर उच्चारण किया जाता है जिसके साथ ही हवन कुंड की अग्नि में एक विशेष विधि से हवन सामग्री डाली जाती है।
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