नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में से तीन जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को संसद में तीन तलाक पर कानून बनाने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से तीन तलाक पीडित महिलाओं को राहत मिली है। तीन तलाक पीडित कई महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन इनमें से तीन महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने इस मामले में अहम भूमिका निभाई और सुप्रीम कोर्ट में हुई तीन तलाक की बहस को नया रूप दिया। आइए जानते हैं इन तीन महिलाओं के बारे में।
सायरा बानो:
उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली तीन तलाक पीडिता सायरा बानो ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 15 वर्ष तक शादी के बंधन में बंधे रहने के बाद सायरा के पति ने उसे वर्ष 2015 में तीन तलाक बोलकर रिश्ता खत्म कर लिया था। इस पर सायरा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। सायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका में कहा कि तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला को संविधान के मौलिक अधिकारों के आधार पर गैरकानूनी घोषित कर देना चाहिए। सायरा के शौहर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए इन तीनों बिंदुओं का विरोध किया. सायरा उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली हैं.
इशरत जहां:
पश्चिम बंगाल के हावडा निवासी इशरत जहां को उसके पति ने दुबई से फोन पर ही तीन तलाक बोल दिया था। इसके बाद इशरत जहां ने भी अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इशरत जहां ने अपनी याचिका में कहा कि उसका निकाह वर्ष 2001 में हुआ था। इशरत के 4 बच्चे भी हैं। तीन तलाक के बाद उसके पति ने बच्चों को जबरन अपने पास रख लिया। इशरत जहां ने कोर्ट से गुहार लगाई कि उसे उसके वापस दिलाए जाएं और साथ में पुलिस सुरक्षा दिलाने की भी मांग की। याचिका में इशरत जहां ने कहा कि ट्रिपल तलाक गैरकानूनी है और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है।
जाकिया सोमन:
ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जाकिया सोमन ने ट्रिपल तलाक से लडाई के मामले में काफी अहम भूमिका निभाई
है। जाकिया सोमन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की संस्थापक हैं। यह संस्था
पिछले 11 वर्षों से मुस्लिम महिलाओं के बीच काम कर रही है। जाकिया सोमन के
संगठन ने लगभग 50 हजार मुस्लिम महिलाओं के हस्ताक्षर वाला एक ज्ञापन पीएम
मोदी को सौंपा था। इस ज्ञापन में तीन तलाक को गैर कानूनी बताते हुए इस पर
कानून बनाने की मांग की गई।
मुस्लिम महिलाओं के अलावा इस ज्ञापन पर मुस्लिम
समाज के कई मर्दों ने भी हस्ताक्षर किए थे। साथ ही इस संस्था ने देश के 10
राज्यों में करीब 4700 मुस्लिम महिलाओं पर एक सर्वे किया था। वर्ष 2012
में संस्था ने दिल्ली में पहली पब्लिक मीटिंग की, जिसमें देशभर से करीब 100
महिलाएं ऐसी आईं जो तीन तलाक से पीडित थीं।
ये भी पढ़ें - यहां नागमणि से होता है सर्प दंश का इलाज!