आजादी के 70 साल: क्या हम अपने उन महान सपूतों के आदर्शों पर चल पाए हैं?

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 13 अगस्त 2017, 3:32 PM (IST)

हमारा देश इस साल 15 अगस्त, 2017 को अपनी आजादी की 70 वीं साल गिरह मना रहा है। जब हम ब्रिटिशों के गुलाम थे, तो हमारे विकास के सारे मार्ग अवरुद्ध थे। लेकिन जब हमने अनगिनत कुर्बानियां देकर अपनी आज़ादी पाई तो सवाल उठता है कि क्या हम अपने उन महान सपूतों के आदर्शों पर चल? क्या हमने उनके द्वारा देखे गए सपनों को पूरा किया ? क्या हमने अपने देश के लोगों के लिए रोटी-कपड़ा और मकान की व्यवस्था कर पाए, क्या देश के सब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा का प्रबंध देश और राज्य की सरकारें कर पायी, क्या देश के सभी नागरिकों को हम विश्व स्तर की सरकारी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करा पायें हैं, क्या हम अपने देश के नौजवानों के लिए रोजगार का प्रबंध कर पाए हैं, क्या हमारी आर्थिक नीतियां समाजवादी और लोक कल्याणकारी हैं, क्या हम सामाजिक और आर्थिक न्याय की अवधारणा को मजबूती से स्थापित कर पाए हैं, क्या हमारे देश में विधि और न्यायपालिका के समक्ष व्यावहारिक तौर पर सभी नागरिक समान हैं।

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क्या हम एक समता-स्वतंत्रता और बंधुत्व से युक्त लोकतांत्रिक समाज बना पाए हैं, क्या हम अपने देश में धर्म निरपेक्षता का वातावरण बनाने में सफल हो पाए हैं, क्या हम भारतीय अपने जीवन से जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न खत्म कर पायें हैं, क्या हमने अपनी महिलाओं, युवतियों और बच्चियों के लिए भयमुक्त वातावरण और मर्यादित समाज का स्वरुप दिया है, क्या हम अपनी युवा पीढ़ी और अपने छोटे बच्चों को यह बताने और अहसास कराने में सफल हो पाए हैं कि यह आजादी हमने कितनी कुर्बानियों को देकर प्राप्त की है?

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ऐसे बहुत सारे सवाल हैं। और उनमें से कुछ के उत्तर भी सकारात्मक मिल सकते हैं। लेकिन 70 साल समय कोई छोटा समय नहीं होता है। यह एक पीढ़ी के अवसान का समय होता है। यह बात सही कि आजादी के वक्त देश को जिस हालत में अंग्रेज छोड़कर गए थे, वह हालात बहुत ही बुरे थे। लेकिन उसके बाद हमको एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर राष्ट्र निर्माण में लगन से लगना चाहिए था। हमारे देश व राज्यों की सरकारों को पूर्ण मनोयोग से जो करना चाहिए था, वह उन्होंने बहुत ही प्रतिबद्धता से नहीं किया? देश में कई तरह के विकास व सुधार के प्रयास आरम्भ किए गए, देश में पहली बार जवाहरलाल नेहरु सरकार जिस तरह से सभी दलों के लोगों को लेकर बनी, वह फिर बाद में आपसी खींचतान और अंतर्विरोधों में घिर गयी।

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