रक्षाबंधन: वैदिक राखी है असली रक्षासूत्र, यहां है बनाने की विधि

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 06 अगस्त 2017, 2:13 PM (IST)

रक्षाबंधन यानि राखी, इस त्यौहार को लेकर पूरे भारतवर्ष में विशेषकर हिंदूओं में पूरा उल्लास दिखाई देता है। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक बन चुका यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वर्तमान में बाजार ने हमारे लगभग हर रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार को मनाने के मापदंड लगभग बदल दिये हैं। चकाचौंध में इन त्यौहारों के वास्तविक मूल्य भी लुप्त होते जा रहे हैं। रक्षाबंधन से लगभग एक महीने पहले ही बाजारों में रौनक शुरु हो जाती है। दुकानें सजाई जाने लगती हैं। रंग-बिरंगी राखियों के स्टॉल भी लगाये जाने लगते हैं। रेशम के धागों से लेकर बनावटी फूलों की राखियां सजी होती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं वैदिक परंपरा के अनुसार जो राखियां आप बाजार से खरीदते हैं उनका महत्व केवल प्रतीकात्मक रूप से त्यौहार को मनाने जितना ही है। शास्त्रानुसार रक्षाबंधन के दिन बहनों को भाई की कलाई पर वैदिक विधि से बनी राखी जिसे असल में रक्षासूत्र कहा जाता है बांधी जानी चाहिये। इसे बांधने की विधि भी शास्त्रसम्मत होनी चाहिये।



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ऐसे बनाए वैदिक रक्षासूत्र
वैदिक राखी बनाने के लिये आपको किसी ऐसी दुर्लभ चीज की आवश्यकता नहीं है जिसे प्राप्त करना आपके लिये कठिन हो बल्कि इसके लिये बहुत ही सरल लगभग घर में इस्तेमाल होने वाली चीजों की ही आवश्यकता होती है। वैदिक राखी के लिये दुर्वा यानि कि दूब जिसे आप घास भी कह सकते हैं चाहिये, अक्षत यानि चावल, चंदन, सरसों और केसर, ये पांच चीजें चाहिये। हां एक रेशम का कपड़ा भी चाहिये क्योंकि उसी में तो इन्हें डालना है। दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा। इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है। रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें। आपकी राखी तैयार हो जायेगी।



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वैदिक राखी का महत्व
दोनों ही राखियों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का विशेष महत्व माना जाता है। कच्चे सूत व हल्दी से बना रक्षासूत्र शुद्ध व शुभ माना जाता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है।

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