नई दिल्ली। सिक्किम के डोकलाम क्षेत्र में जारी तनातनी के बीच चीन लगातार भारत को सेना हटाने और युद्ध की धमकी दे रहा है। लेकिन, चीन की धमकी को नजर अंदाज कर भारत अपने रुख पर कायम है। भारत ने एक बार फिर दोहराया है कि सीमाई इलाकों में शांति दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए एक अहम शर्त है। डोकलाम पर चीन सरकार के एक दस्तावेज पर आधिकारिक जवाब देते हुए भारत ने कहा कि डोकलाम मुद्दे पर 30 जून को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में नई दिल्ली का रुख साफ कर दिया गया था। 30 जून को जारी प्रेस रिलीज में कहा गया था, भारत चीन की हाल की कार्रवाई से बेहद चिंतित है। भारत ने डोकला में सडक़ निर्माण के मसले पर चीनी सरकार को अपनी चिंता से अवगत कराया था। इस निर्माण से यथास्थिति में बदलाव आएगा और यह भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।
मौजूदा समय में सभी पक्ष द्विपक्षीय सहमतियों को माने और एकतरफा तरीके से यथास्थिति को नहीं बदलें। सरकार ने साफ किया कि डोकलाम मुद्दे पर पिछले डेढ़ महीने से जारी विवाद पर भारत का रुख पहले वाला ही है। सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है और सेना को हटाने से भी इंकार कर दिया है। अपने 15 पन्नों के दस्तावेज में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि डोकलाम में इस गतिरोध के शुरू होने के बाद से भारतीय सैनिकों की संख्या जुलाई के अंत तक 270 से घटकर 40 हो गई है। जिसके जवाब में भारत ने चीन के दावे को झूठा करार दिया है। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि पहले दिन से जितने भारतीय सैनिक वहां हैं, अब भी उतनी है तैनाती है। किसी सैनिक को हटाया नहीं गया है।
इससे पहले अपने 15 पन्नों के दस्तावेज में चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन ने पहले ही कहा है कि वह भारत से तब तक बात नहीं करेगा, जब तक कि वह अपने सैनिकों को यहां से नहीं हटाता। साथ ही चीन ने संकेत दिया कि सीमा के सिक्किम सेक्टर में विवाद को हल करने के लिए दोनों पक्ष संपर्क में हैं। डोकलाम में 16 जून को चीनी सेना द्वारा सडक़ निर्माण को लेकर भारतीय व चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध शुरू हुआ था। डोकलाम पर स्वामित्व पर कोई फैसला न होने का हवाला देते हुए भारतीय सैनिकों ने चीन द्वारा सडक़ निर्माण को रोक दिया था। डोकलाम पर चीन व भूटान दोनों ही दावा करता है। भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है।
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मंत्रालय ने कहा, चीन द्वारा अपने क्षेत्र में सडक़ निर्माण का उद्देश्य
स्थानीय परिवहन में सुधार लाना है, जो पूरी तरह से वैध और न्यायसंगत है।
चीन ने सडक़ निर्माण में सीमा का उल्लंघन नहीं किया और इस काम में चीन की
अच्छी मंशा से भारत को पहले ही अवगत करा दिया गया था। दस्तावेज में चीन ने
भारत के उन दावों को खारिज कर दिया है जिसमें भारत ने कहा है कि चीन सडक़
निर्माण के जरिए सीमा क्षेत्र की यथा स्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है।
दस्तावेज
में कहा गया कि भारतीय सैनिकों की चीनी क्षेत्र में घुसपैठ सीमा की
यथास्थिति को बदलने का वास्तविक प्रयास है और इसने चीन-भारत सीमा क्षेत्र
में शांति व सौहार्द को कमजोर किया है। दस्तावेज में चीन ने भारत के इस
तर्क को खारिज कर दिया कि भारत, चीन और भूटान की त्रिसीमा (जहां तीनों
देशों की सीमाएं मिलती हैं) पर सडक़ निर्माण नई दिल्ली की सुरक्षा के लिए
गंभीर खतरा है।
भारत सडक़ को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है,
क्योंकि यह उसके बेहद महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी गलियारे के करीब है, जो शेष
भारत को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। दस्तावेज के अनुसार, तथाकथित
सुरक्षा चिंताओं के आधार पर किसी भी तरह की गतिविधियों के लिए पड़ोसी देश
के क्षेत्र में प्रवेश करना अंतर्राष्ट्रीय कानून के बुनियादी सिद्धांतों
और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी मानकों के खिलाफ है। किसी भी
संप्रभु राष्ट्र द्वारा इस तरह के प्रयास को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इसलिए भारत व चीन को दो पड़ोसी देशों के तौर पर इस विवाद को सामान्य तरीके
से सुलझाना चाहिए।
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