अगर आप खुद की फेवरेट हैं तो जरूर देखें ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्खा’ फिल्म

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 20 जुलाई 2017, 11:45 AM (IST)

हम चाहे जितना चीख चीख कर चिल्ला लें कि हमारा समाज बदला रहा है लेकिन जनाब आज भी कुछ मामले में हमारा समाज रूढ़िवादी है। खास तौर से जब महिलाओं की बात आती हैं तो सोच अब भी 50 साल पीछे चली जाती है। अक्सर महिलाओं को अपनी ही स्वतंत्रता के लिए समाज से जूझझा पड़ता है लड़ना पड़ता। कुछ ऐसी ही लड़ाई आज काफी लंबे समय से प्रकाश झा की फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ लड़ रही थी। हालांकि जीत हमारी ही हुई है। इस साल की सबसे ज्यादा कॉन्ट्रोवर्शियल फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ है।

फिल्म की कहानी चार महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमती है, जो खुलकर जीना चाहती हैं। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया था। हर जगह वाहवाही बटोरने के बाद भी सेंसर बोर्ड यह फिल्म रिलीज करने के तैयार नहीं था। फिलहाल काफी मशक्कत के बाद आखिरकार यह फिल्म कल शुक्रवार को रिलीज हो रही है।


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श्रीवास्तव ने एक बयान में कहा, ‘ज्यादातर काम साहित्य पुरुषों के नजरिए से लिखे गए हैं। ये कभी-कभार ही महिलाओं के नजरिए से लिखे गए, लेकिन सेक्स की कहानियों का अभिप्राय सिर्फ पुरुषों से होना अनुचित है।’

श्रीवास्तव का मानना है कि महिलाओं को अपने तरीके से रोमांस करना चाहिए, जो उन्हें संतोष व सुकून दे।


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फिल्म की कहानी काफी सिंपल सी है और एक उपन्यास ‘लिपस्टिक वाले सपने’ के इर्द गिर्द ही घूमती है जो पूरे समय आप रत्ना पाठक शाह के किरदार के हाथ में देखते हैं, और फिल्म का मिजाज इस्मत चुगताई की कहानियों की याद भी दिलाता है।


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फिल्म के दौरान समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे रूढ़िवादी व्यवहार की तरफ एक बड़ा कटाक्ष किया गया है, जैसे कि महिलाएं काम ना करें, वो सिर्फ बच्चे ही पालें, पर्दे में रहें।


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फिल्म की कहानी बहुत ही सिंपल है और उपन्यास इस फिल्म में सूत्रधार की भूमिका निभाता है और उसके इर्द-गिर्द ही फिल्म की कहानी घूमती रहती है। इस पूरी बात को अलंकृता ने बड़े ही अच्छे अंदाज में पर्दे पर उतारा है।


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जिंदगी के ऐसे छोटे-छोटे पलों को भी फिल्म में शामिल करने की कोशिश की गई है जो रोजमर्रा की जिंदगी में आप देख पाते हैं और यही कारण है कि‍ फिल्म से आम आदमी कनेक्ट कर सकेगा।

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