अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के साथ-साथ व्रत
रखने को भी धर्म पालन माना गया है। क्षमा, सत्य, दया, दान, संतोष, शौच,
इन्द्रिय निग्रह, देव पूजा, हवन और चोरी न करना। व्रत के दस आवश्यक नियम
माने गए हैं।
पूर्ण विधि-विधान से व्रत रखने वालों को
चाहिए कि वे सच्चे मन, वचन और कर्म से निराहार रहकर अपने इष्ट भगवान् की
आराधना करें और अपने सम्पूर्ण शरीर के शोधन, प्रभु मिलन की आस और ईश्वर की
कृपा प्राप्त करने के लिए क्रोध, लोभ एवं मोह से अपने को सदैव दूर रखें।
व्रत का संकल्प लेने वालों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक निराहार रहना होता है।
व्रत रखने वाले दिन पवित्र भाव से स्नान आदि से शुद्ध होने के बाद पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने इष्ट देव की आराधना करनी चाहिए।
व्रत के
मध्य में बार-बार फल, चाय, दूध आदि के सेवन से व्रत खंडित माना जाता है,
लेकिन स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए वे बीच में एक बार चाय या फलों का
सेवन कर सकते हैं।
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व्रत के दौरान मौसम के अनुसार फल, केला, साबूदाना, आलू, सिंघाड़े व कूटू के आटे से बने खाद्य पदार्थ उपयुक्त माने गए हैं।
व्रत
रहने के दौरान तम्बाकू, गुटखा, पान, शराब और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन,
स्त्री संसर्ग, दिन में शयन कदापि नहीं करना चाहिए अन्यथा व्रत भंग माना
जाता है।
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व्रत के दौरान अपने आप को विषय-वासनाओं से मुक्त ही
रखना चाहिए। महिलाओं को रजोदर्शन होने पर व्रत नहीं रखना चाहिए। परन्तु
व्रत काल में यदि रजोदर्शन हो जाए तो व्रत खंडित नहीं माना जाता है। इस
स्थिति में महिलाओं को पूजा आदि नहीं करनी चाहिए व किसी अन्य व्यक्ति से
व्रत का भोजन बनवाकर व्रत का परायण करना चाहिए।
बीमारी की दशा
में भी व्रत रखने से बचना चाहिए बल्कि उस स्थिति में पूर्ण श्रद्धा भाव से
ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। उपरोक्त नियमों को ध्यान में रखकर व्रत करने
शीघ्र लाभ मिलने लग जाते हैं।
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