यहां पैसे होने पर भी कोई दुकानदार नहीं देता है सामान

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 20 जून 2017, 12:57 PM (IST)

बीजापुर। जब भी आप बाजार से सामान खरीदते हैं, तो उसकी कीमत अदा करते हैं। यह कीमत आप नकद देते हैं या फिर क्रेडिट कार्ड से भुगतान करते हैं, लेकिन अपने देश में एक जगह ऐसी भी है, जहां जेब में रुपए होने पर भी कोई दुकानदार सामान नहीं देता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के एक गांव की।

जिला मुख्यालय से महज 50 किमी दूर बासगुड़ा में शुक्रवार को लगने वाले बाजार में रुपए नहीं चलते। यहां आज भी सामान के बदले सामान ही मिलता है। इसके कारण यहां के आदिवासी ही घाटे में रहते हैं, क्योंकि 20 रुपए किलो बिकने वाले महुआ के बदले आदिवासी 10 रुपए में बिक रहा आलू लेने को मज़बूर हैं। जिले में वनोपज के लिए दो बड़े बाजार गंगालूर और बासगुड़ा में लगते हैं। नक्सल प्रभावित बासगुड़ा गांव और यहां का बाजार अक्सर चर्चा में रहता है।

आपको बता दें कि आजादी के पहले से इन गांवों में सामान से सामान बदलने का चलन था, जो आज भी जारी है। तिखुर, शहद, चिरौंजी और बहुमूल्य जड़ी-बूटियों के लिए जाने जाना वाला यह गांव सन 2005 में वीरान हो गया था। यहां के बाजारों और बस्तियों में नक्सलियों का खौफ नजर आता है। 13 साल बाद यह वीरान गांव धीरे-धीरे बसने लगा और बाजार भी लगने लगे। पूर्व में पुलिस और नक्सलियों के बीच संघर्ष में ग्रामीण आदिवासी मारे गए और आज वनोपज में ग्रामीण आदिवासियों का भरपूर शोषण हो रहा है।

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बताया जाता है कि तालपेरू नदी के पास शुक्रवार को सालों से बाजार लगता है। सलवा जुडूम के बाद यहां 10 सालों तक रौनक नहीं थी। इस साल बाजार पहले जैसा तो हो गया, लेकिन आज भी सेलर्स मार्केट नहीं बन पाया है और शोषण का दौर जारी है। लोगों का कहना है कि जब तक जागरूकता नहीं आएगी, तब तक यह बायर्स मार्केट बना रहेगा।

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गांव से बासगुड़ा आए आदिवासी किसान लखमू लेकाम का कहना है कि राशन की दुकान में अमृत नमक मिलता है, लेकिन उनके गांव में इसका चलन नहीं है। गांव के लोग खड़े नमक का इस्तेमाल करते हैं और वे इसे बासगुड़ा बाजार से लाते हैं। व्यापारी 2 किलो नमक देकर एक किलो महुआ लेते हैं। इन दिनों 10 रुपए किलो की दर पर बिक रहे आलू या प्याज के बदले व्यापारी 20 रुपए किलो का महुआ ले रहे हैं।

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