निर्जला एकादशी: पूजन के बाद प्रभु की आरती करना श्रेष्ठ

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 05 जून 2017, 12:38 PM (IST)

आज निर्जला एकादशी है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। माना जाता है कि ज्येष्ठ महीने की निर्जला एकादशी बड़ी एकादशी होती है। इस व्रत में जल से भरा घड़ा, पंखा, मौसमी फल आदि का दान बहुत ही पुण्यदायी होता है। इस व्रत को पूरे विधि विधान से करने पर भगवान विष्णु की कृपा हमेशा उस व्यक्ति पर बनी रहती है। इसलिए आज हमने अपने पिछले लेख में आपको इस व्रत की पूजा विधि,​ व्रत कथा और इसके महत्व को बताया है। इस लेख में हम आपको भगवान विष्णु जी की आरती भी बता रहे हैं।

भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता हैं और इनकी साधना करने से मनुष्य का जीवन सरल और सफल हो जाता है। इनका नाम मात्र लेने से ये अपने भक्तों का बेड़ा पर लगाते हैं। इनके पूजन के बाद प्रभु की आरती करना श्रेष्ठ माना गया है।


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इस दिन अगर आप जल से भरा कलश, वस्त्र, पंखा, फल का दान करके भी इस व्रत के पुण्य को प्राप्त कर सकते हैं। एक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है।


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विष्णु जी की आरती
भगवान श्री हरि विष्णु जी की आरती जय जगदीश हरे , प्रभु! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ जय जगदीश हरे
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ जय जगदीश हरे
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ जय जगदीश हरे
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ जय जगदीश हरे
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ जय जगदीश हरे
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमती॥ जय जगदीश हरे दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ जय जगदीश हरे
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ जय जगदीश हरे
जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय जगदीश हरे
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय जगदीश हरे
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय जगदीश हरे
विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय जगदीश हरे
माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय जगदीश हरे
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय जगदीश हरे
राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय जगदीश हरे
सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय जगदीश हरे
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय जगदीश हरे

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