ये संयोग और ग्रह बताते हैं, कब होगी आपकी विदेश यात्रा

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 18 मई 2017, 11:02 AM (IST)

अपने घर में रहकर सफल और संपन्न होने से बेहतर सपना और क्या हो सकता है लेकिन कुछ लोग विदेश में जाकर सफल होना चाहते हैं। कुछ लोगों की इच्छा घूमने के लिए विदेश जाने की रहती है। कुछ लोग ऐसी परदेसी यात्राओं में सुखी रहते हैं तो कई विफल और निराश हो घर लौटते हैं। कौनसे योग हमें विदेश में बेहतर भविष्य का वादा करते हैं और कौनसे ग्रह हमारी यात्राओं में बाधा बनते हैं। एक खास नजर-


यात्रा के सामान्य योग तीसरे भाव से बनते हैं। कुंडली का तीसरा भाव उन यात्राओं के लिए देखा जाता है जो आमतौर पर छोटे समय की यात्रा होती है। मूल रूप से यह भाव साहस और सहजता का है। अगर लग्न से तीसरा भाव मजबूत हो तो ही व्यक्ति सफल यात्राएं कर पाता है। इसके साथ ही बारहवां भाव घर छोडऩे में मदद करता है। विदेशी संबंधों को भी बारहवें भाव से ही देखा जाता है। यह भाव मूल रूप से क्षरण का भाव है। यह क्षरण पैसा खर्च होने के रूप में भी हो सकता है और शारीरिक क्षरण के रूप में भी।

किसी लग्न विशेष में तीसरे भाव के अधिपति और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा आने पर जातक को घर से बाहर निकलना पड़ता है। जब तक यह दशा रहती है, जातक घर से दूर रहता है। अधिकतर मामलों में दशा बीत जाने के बाद जातक फिर से घर लौट आता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में लग्न और बारहवें भाव के अधिपतियों का अंतर्संबंध होता है वे न केवल घर से दूर जाकर सफल होते हैं, बल्कि परदेस में ही बस भी जाते हैं।

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पारंपरिक भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीसरे भाव और बारहवें के अधिपति की दशा या अंतरदशा में जातक छोटी यात्राएं करता है। वहीं नौंवे और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा में लंबी यात्राओं के योग बनते हैं। छोटी और लंबी यात्रा का पैमाना सापेक्ष है। छोटी यात्रा कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक की हो सकती है तो लंबी यात्रा कुछ महीनों से सालों तक की। इसी के साथ छोटी यात्रा जन्म या पैतृक निवास से कम दूरी के स्थानों के लिए हो सकती है तो लंबी यात्राएं घर से बहुत अधिक दूरी की यात्राएं भी मानी जा सकती हैं। दक्षिण के प्रसिद्ध ज्योतिष के.एस. कृष्णामूर्ति द्वारा बनाई गई केपी पद्धति के अनुसार जब तीसरे, नौंवे और बारहवें भाव के कारक ग्रहों की दशा या अंतरदशा आती हैं, तब जातक यात्राएं करता है। कारक ग्रह का निर्धारण तीसरे, नौंवे और बारहवें भाव में मौजूद राशि के अधिपति यानी तृतीयेश, नवमेश या द्वादशेश जिन नक्षत्रों में बैठे हों उनके अधिपति के अनुसार होता है।

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लग्न के अनुसार विदेश गमन के अवसर
मेष लग्न के जातकों के लिए बुध या गुरु की दशा या अंतरदशा में विदेश जाने के योग बनते हैं। ऐसे जातकों की कुंडली में अगर शनि बेहतर स्थिति में हो तो विदेश में अच्छी सफलताएं भी अर्जित कर पाते हैं। शनि भगवान की आराधना विदेश में अच्छा लाभ अर्जित करा सकती है। बुध की दशा में जहां छोटी यात्राएं होती हैं वहीं गुरु की दशा में लंबी विदेश यात्राओं के योग भी बनते हैं।

वृष लग्न के जातकों के लिए चंद्रमा या मंगल की दशा या अंतरदशा में विदेश जाने के योग बनते हैं। इन जातकों की कुंडली में गुरु बेहतर स्थिति में होने पर विदेश में सफलताएं अर्जित करना आसान हो जाता है। गुरु का लाभ लेने के लिए विदेश में जातक को नियमित रूप से मंदिर जाना चाहिए। इस राशि में शनि की बेहतर स्थिति धार्मिक यात्राएं कराती हैं।

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मिथुन लग्न के जातक सूर्य की दशा या अंतरदशा में छोटी यात्राएं करते हैं और शुक्र की दशा या अंतरदशा में लंबी दूरी या अधिक समय तक घर से दूर रहने वाली यात्राएं करते हैं। इन जातकों को शनि की शुभ स्थिति धार्मिक यात्राएं कराती हैं। विदेश में अच्छा लाभ अर्जित करने के लिए इन जातकों को हनुमान या मुरुगन देवता की आराधना करनी चाहिए।

कर्क लग्न के जातक बुध की दशा या अंतरदशा में विदेश यात्रा का सुख लेते हैं। कुंडली में शुक्र मजबूत स्थिति में होने पर ये जातक यात्रा भी विलासितापूर्ण अंदाज में करते हैं। ऐसे जातकों को यात्रा के दौरान थोड़ी भी असुविधा परेशान कर देती है। आमतौर पर ये लोग यात्राओं को तब तक टालने का प्रयास करते हैं जब तक कि इन्हें पूरा भरोसा न हो जाए कि यात्रा की सभी व्यवस्थाएं पूर्ण हो चुकी हैं।

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सिंह लग्न के जातक शुक्र की दशा या अंतरदशा में छोटी यात्राएं करते हैं और चंद्रमा की अंतरदशा में विदेश प्रस्थान करते हैं। परदेस की इनकी सफलता का आधार बुध की स्थिति है। अगर इनकी कुंडली में बुध बेहतर स्थिति में भी है तो बुध के वक्री, मार्गी, अस्त और उदय होने से इनका लाभ प्रभावित होते रहते हैं।

कन्या लग्न के जातकों को मंगल की दशा या अंतरदशा में घर से कुछ समय के लिए बाहर रहने का मौका मिलता है। सूर्य की दशा में ये लोग विदेश यात्राएं भी कर पाते हैं। शुक्र की बेहतर स्थिति इन जातकों को धार्मिक यात्राएं कराती हैं। विदेश में कितने सफल होंगे, यह इन जातकों की चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है। शिव आराधना इन जातकों को विदेश में भी बेहतर सफलता दिला सकती है।

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तुला लग्न के जातकों को गुरु की दशा या अंतरदशा में यात्रा करने का मौका मिलता है। बुध की अंतरदशा में ये जातक घर से अधिक दूरी की यात्राएं कर पाते हैं। विदेश में लाभ हासिल करने के लिए ऐसे जातकों की कुंडली में सूर्य बेहतर स्थिति में होना चाहिए।

वृश्चिक लग्न के जातकों को शनि की दशा या अंतरदशा में छोटी यात्राएं करनी पड़ती हैं। शनि की दशा में ये जातक कई बार यात्राएं कर वापस घर लौटते हैं। शुक्र की दशा या अंतरदशा में इन्हें घर से दूर रहने का मौका मिलता है। ऐसे जातकों की कुंडली में बुध की स्थिति बेहतर होने पर विदेश में सफल होने की स्थिति बनती है।

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धनु लग्न के जातक शनि की दशा या अंतरदशा में घर से बाहर निकलते हैं। इस दशा में जातक छोटी यात्राएं करता है और लंबी यात्राएं करने या अधिक समय तक विदेश में टिकने के लिए इन जातकों को मंगल का सहयोग लेना पड़ता है। अगर कुंडली में शुक्र बेहतर स्थिति में हो तो जातक विदेश जाकर अच्छा धन कमा पाता है और सफलताएं अर्जित करता है।

मकर लग्न के जातक गुरु की दशा में विदेश यात्रा करते हैं। गुरु की दशा या अंतरदशा में ये जातक छोटी या लंबी दूरी दोनों तरह की यात्राएं कर पाते हैं। ऐसे जातकों की कुंडली में मंगल की बेहतर स्थिति विदेश में लाभ का वादा करती है। हनुमानजी की आराधना करना इन जातकों के लिए विदेश में सफलता दिलाने वाली सिद्ध हो सकती है।

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कुंभ लग्न के जातक मंगल की दशा या अंतरदशा आने पर छोटी यात्राएं करते हैं। वहीं शनि की दशा या अंतरदशा इन जातकों को लंबी दूरी की यात्राएं कराती है। विदेश में इन जातकों को कितना लाभ होगा, यह गुरु की स्थिति पर निर्भर करता है। विष्णु की आराधना इन जातकों को विदेश में अच्छा लाभ दिला सकती है।

मीन लग्न के जातक शुक्र की दशा या अंतरदशा में छोटी यात्राएं करते हैं और शनि की दशा या अंतरदशा में विदेश यात्रा करते हैं। अगर शनि बेहतर स्थिति में बैठा हो और शुभ हो तो जातक न केवल लंबी विदेश यात्रा करता है बल्कि अच्छी सफलताएं भी अर्जित करता है।

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