14 वर्ष की उम्र में बंगाली फिल्म बालिका वधु 1967 से अपना फिल्मी करियर शुरू करने वाली मौसमी चटर्जी शर्मिला टैगोर के बाद हिन्दी सिनेमा की दूसरी ऐसी अभिनेत्री थी जिन्हें डिंपल गर्ल के नाम से जाना जाता था। इसके साथ ही सिने इतिहास की वे पहली ऐसी अभिनेत्री रही जिन्होंने शादी और संतान होने के बाद फिल्म करियर शुरू किया। सुप्रसिद्ध गायक और संगीतकार हेमन्त कुमार की पुत्रवधु मौसमी ने अनुराग 1972, के जरिए हिंदी फिल्मों में प्रवेश किया। इस फिल्म में हिंदी सिनेमा के पहले सुपर सितारे राजेश खन्ना मेहमान भूमिका अभिनीत की थी। विनोद मेहरा के साथ मौसमी का सफल प्रवेश रहा। बॉलीवुड में मौसमी चटर्जी को एक ऐसी अभिनेत्री के तौर पर शुमार किया जाता है जिन्होंने अपने जमाने में रूमानी अदाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाए रखा। आज उनका जन्मदिन है, उन्होंने अपने जीवन के 68 बसंत पूरे कर लिए है। इस खास मौके पर हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ अनजानी बाते बताने जा रहे हैं —
26 अप्रैल 1953 को कोलकाता में जन्मी मौसमी चटर्जी ने अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1967 में प्रदर्शित बंगला फिल्म बालिका वधू से की। उनकी यह फिल्म टिकट खिडक़ी पर सुपरहिट साबित हुई।
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कैसी बनी बालिका वधू
एक दिन मौसमी अपनी स्कूल से घर जा रही थी। उस वक्त
मौसमी के दोनों कंधों पर स्कूल बैग, दो लंंबी चोटी, अपनी सहेलियों के साथ
खिलखिलात मौसमी की मासूमियत भरी मुस्कान और हंसने पर बढ़ा हुआ दांत उन्हें
और मासूम बना रहा था। मशहूर बंगाली फिल्म निर्देशक तरुण मजूमदार रोज मौसमी
को देखते। उनकी निगाह में मौसमी की मासूमियत इस कदर बस गई कि, उन्होंने
सोच लिया कि मौसमी ही उनकी फिल्म में बालिका वधू बनेंगी। उस वक्त वो अपनी
फिल्म बालिका वधू बनाने की तैयारी में थे। बस वो एक स्कूली लड़की की तलाश
में थी जो उनकी फिल्म में बालिका वधू बने।
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उन्होंने जब मौसमी से
पूछा कि मेरी फिल्म में काम करोगी, तब बड़ी मासूमियत से उन्होंने कह दिया,
‘हां..करूंगी, कब से काम शुरू करना है? क्या आज से ही करना होगा? लेकिन मैं
स्कूल से छुट्टी नहीं ले सकती। मुझे बाबा (पिताजी) से पूछना पड़ेगा।’
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सेना
में नौकरी करने वाले सख्त स्वभाव वाले मौसमी के पिता प्रांतोष
चट्टोपाध्याय ने साफ मना कर दिया, ‘सवाल ही नहीं उठता। मेरी बेटी पढ़ेगी और
खूब पढ़ेगी।’ तब तरुण मजूमदार ने बाबा को मनाने की जिम्मेदारी अपनी पत्नी
संध्या राय को सौंपी जो उस समय बंगाल की लोकप्रिय कलाकार थी। हालांकि उनकी
पत्नी ने उन्हें मना लिया और ऐसे बन गई मौसमी बालिका वधू
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फिल्मी सफर
बहुत
छोटी उम्र में उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरूआत की थी। अभिनय की शुरूआत
उन्होंने बंगाली फिल्म से की। लेकिन बॉलीवुड में मौसमी ने अपने करियर की
शुरूआत वर्ष 1972 शक्ति सामंत के निर्देशन में बनी अनुराग में मौसमी
चटर्जी ने अंधी लडक़ी का किरदार निभाया था। करियर की शुरूआत में इस तरह का
किरदार किसी भी नई अभिनेत्री के लिए जोखिम भरा हो सकता था, लेकिन मौसमी ने
अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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इस फिल्म के
लिए मौसमी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित
किया गया था। वर्ष 1974 में मौसमी चटर्जी ने ‘रोटी कपड़ा और मकान’ और
‘बेनाम’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया। रोटी कपड़ा और मकान के लिए
मौसमी चटर्जी को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार
का नामांकन मिला। वर्ष 1976 में उनकी एक और सुपरहिट फिल्म ‘सबसे बड़ा
रुपया’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म में एक बार फिर से मौसमी चटर्जी और विनोद
मेहरा की जोड़ी काफी पसंद की गई।
नायिका की भूमिका निभाते-निभाते इन्होंने मां और भाभी की भूमिका निभाना शुरू कर दिया था। एक तरफ जहां वो जितेंद्र की नायिका बनकर मांग भरो सजना में नजर आ रही थी वहीं दूसरी ओर वे उनकी मां बनकर प्यासा सावन में भी नजर आई। दक्षिण के निर्देशन दासरि नारायण राव ने अपनी ज्यादातर हिंदी फिल्मों में इन्हें नायिका के तौर पर लिया।
तो अब कभी साथ नजर नहीं आएंगी ये जोड़ियां!
विनोद मेहरा के साथ हिट थी जोड़ी
मौसमी
चटर्जी ने विनोद मेहरा के साथ कई फिल्मों में काम किया। जिसमें उनकी जोड़ी
का दर्शाकों ने खूब सराहा। दोनों की आॅनस्क्रीन केमिस्ट्री को दर्शाकों ने
खूब सराहा था। शायद यही कारण है कि दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया।
विनोद और मौसमी ने अनुराग, सबसे बड़ा रूपया, जिंदगी, उस पार, कहानी एक चोर
की, उमर कैद, दो झूठ, स्वर्ग नरक जैसी फिल्मों में साथ काम किया। इसके
अलावा उन्होंने संजीव कुमार, जीतेन्द्र, राजेश खन्ना, शशि कपूर, अमिताभ
बच्चन जैसे सुपर सितारों के साथ भी काम किया। उन्होंने हिंदी फिल्मों के
अलावा कई बंगला फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया है।
प्रियंका एक पोशाक के कारण फिर सुर्खियों मे ....
सुपरहिट फिल्में
उनकी
कुछ अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में कच्चे धागे, जहरीला इंसान, स्वर्ग नरक,
फूल खिले है गुलशन गुलशन, मांग भरो सजना, ज्योति बने ज्वाला, प्यासा सावन, दासी, अंगूर,
घर एक मंदिर, घायल, संतान, जल्लाद, करीब, जिंदगी रॉक्स आदि शामिल है।
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सच में रोती थी मौसमी
मौसमी
चटर्जी अपनी फिल्मों में सच में रोती थी, उन्हें रोने वाले सीन करने के
लिए ग्लीसरीन की जरूर नहीं पड़ती थी। इस बारें में एक बार जब मौसमी से एक
बातचीत के दौरान जब पूछा गया बताया कि, ‘हां ये सच है। ये भी ऊपरवाले का
दिया हुआ एक वरदान है।’ उन्होंने आगे बताया कि, ‘जब किसी दृश्य में मुझे
रोना होता था तो मैं सोचती थी कि ये मेरे साथ सच में हो रहा है और मैं रो
पड़ती थी।’
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लाइफ टाइम एचिवमेंट पुरस्कार से सम्मानित
मौसमी को
तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। 2012 में बंगाल की
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मौसमी को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए लाइफ
टाइम एचिवमेंट पुरस्कार से नवाजा। पुरस्कार मिलने के बाद मौसमी ने कहा,
‘अपने राज्य के लोगों से पुरस्कार पाकर खुश हूं और साथ ही ममता के हाथ से
पाकर।’
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उन्होंने कहा, ‘मुझे बंगाली फिल्म उद्योग बहुत पसंद है। कई युवा बच्चे बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और मैं आशा करती हूं कि वह जल्दी ही और बेहतर करेंगे। कोलकाता सांस्कृतिक राजधानी है और एक दिन फिल्मों की दुनिया में पहले स्थान पर होगी।’
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