नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस में बुधवार को भाजपा और
विहिप के बड़े नेताओं को तगड़ा झटका दिया है। सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया
है कि अयोध्या में बाबरी ढांचा के विध्वंस मामले में बीजेपी के बड़े नेताओं
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत बाकी आरोपियों पर
आपराधिक साजिश (धारा 120बी) के तहत मामला चलाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने
बुधवार को यह फैसला देते हुए कहा कि मामला ट्रायल जल्द पूरा किया जाए तथा
डे-टु-डे सुनवाई की जाए। हालांकि राजस्थान का राज्यपाल होने के कारण कल्याण
सिंह पर यह मुकदमा नहीं चल पाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस केस में चल
रहे दो अलग-अलग मामलों को क्लब कर दिया जाए और रायबरेली में चल रहे केस को
लखनऊ में ही चलाया जाए।
सर्वोच्च अदालत के इस फैसले का राजनीतिक असर भी
देखने को मिल सकता है। यह फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब जल्द ही
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाला है। आडवाणी और जोशी, दोनों ही
राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, जिन पर इस फैसले का गाज
गिरना तय हो गई है। जहां तक कल्याण सिंह का सवाल है, चूंकि वह गवर्नर हैं,
इसलिए उन पर मुकदमा नहीं चल सकता। हालांकि, कल्याण सिंह और केंद्रीय मंत्री
उमा भारती पर पद छोडऩे का नैतिक दबाव बन सकता है। फैसला आने के बाद
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने उमा भारती और कल्याण सिंह के पद छोडऩे की
मांग कर डाली है।
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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पीके घोष व आरएफ नरीमन की पीठ ने फैसले में
कहा कि इस मामले में रायबरेली में चल रहे ट्रायल को लखनऊ सेशन कोर्ट में चल
रहे ट्रायल के साथ जोड़ दिया जाए। कोर्ट ने अपना आदेश पढ़ते हुए कहा कि वह
सीबीआई की अपील को स्वीकार कर रहे हैं। सीबीआई ने कोर्ट से मांग की थी कि
बीजेपी नेताओं समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश का मामला जोड़ा
जाए। कोर्ट ने कहा है कि मामले की डे टु डे सुनवाई हो और पूरी प्रक्रिया दो
साल में पूरी कर ली जाए। इससे पहले 6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सभी
पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। इस मामले में
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में 2010
में अपील की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में इन सभी नेताओं को साजिश से बरी
कर दिया था।
अप्रैल में हुई सुनवाई में शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि इस तरह
के मामले में इंसाफ के लिए हमें दखल देना होगा। यह देखते हुए कि तकनीकी
कारणों से आडवाणी सहित इन नेताओं पर लगे आपराधिक षडय़ंत्र के आरोप हटाए गए
थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 142
(सुप्रीम कोर्ट को असाधारण अधिकार) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। शीर्ष
अदालत ने यह भी सवाल किया था कि इस मामले में एक ही षडय़ंत्र है, तो इसके
लिए दो अलग-अलग ट्रयाल क्यों? बता दें कि आडवाणी सहित अन्य नेताओं पर
रायबरेली की अदालत में भीड़ को उकसाने का मामला चल रहा है जबकि लखनऊ की
विशेष अदालत में कारसेवकों पर षडय़ंत्र और विवादित ढांचे को ढहाने का मुकदमा
चल रहा है। सीबीआई की ओर से दलील दी गई थी कि इन 13 नेताओं के खिलाफ
आपराधिक षडय़ंत्र का मुकदमा चलना चाहिए, वहीं आडवाणी और जोशी की ओर से
वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने संयुक्त ट्रायल के विचार का विरोध किया था।
उनका कहना था कि सीआरपीसी के तहत ऐसा नहीं किया जा सकता। इस तरह के मामलेे
में सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल भी नहीं कर सकता, क्योंकि यह
आरोपियों के जीवन जीने और व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला
है।
क्या है मामला
यहां मुस्लिम है देवी मां का पुजारी, मां की अप्रसन्नता पर पानी हो जाता है लाल
1992 में बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने को लेकर दो मामले दर्ज किए गए थे।
एक मामला (केस नंबर 197) कार सेवकों के खिलाफ था जबकि दूसरा मामला (केस
नंबर 198) मंच पर मौजूद नेताओं के खिलाफ। केस नंबर 197 के लिए हाईकोर्ट के
चीफ जस्टिस से इजाजत लेकर ट्रायल के लिए लखनऊ में दो स्पेशल कोर्ट बनाए गए
जबकि 198 का मामला रायबरेली में चलाया गया। केस नंबर 197 की जांच सीबीआई को
दी गई जबकि 198 की जांच यूपी सीआईडी ने की थी। केस नंबर 198 के तहत
रायबरेली में चल रहे मामले में नेताओं पर धारा 120 बी नहीं लगाई गई थी
लेकिन बाद में आपराधिक साजिश की धारा जोडऩे की कोर्ट में अर्जी लगाई। कोर्ट
ने इसकी इजाजत दे दी।
सीबीआई ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया
कि रायबरेली केस को भी लखनऊ लाया जाए। हाईकोर्ट ने मना कर दिया और कहा कि
यह केस ट्रांसफर नहीं हो सकता, क्योंकि नियम के तहत 198 के लिए चीफ जस्टिस
से मंजूरी नहीं ली गई। इसके बाद रायबरेली में चल रहे मामले में आडवाणी समेत
अन्य नेताओं पर साजिश का आरोप हटा दिया गया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 20 मई
2010 के आदेश में ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। इस फैसले को सीबीआई
ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। चुनौती देने में आठ महीने की
देरी की गई।
गौरतलब है कि तकनीकी आधार पर इनके खिलाफ साजिश का केस रद्द
किया गया था जिसके बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। लखनऊ में
कारसेवकों के खिलाफ केस लंबित है जबकि रायबरेली में बीजेपी नेताओं के खिलाफ
चल रहा है।
और घर का मुखिया बन जाता है घर का नौकर...