संभल। हमारे समाज में जहां बेटा-बेटी में भेदभाव की तमाम कहानियां सामने आती रहती हैं। वहीं एक बेटे ने अपनी मां को ही अपने घर से निकाल दिया तो बेटी ही उसका सहारा बनी और उसकी मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार भी किया। ऐसे में एक बेटी ने ऐसे अभिभावकों को सोचने पर विवश कर दिया है जो बेटा-बेटी में भेदभाव करते हैं।
उत्तर प्रदेश के संभल के सरायतरीन के एक मोहल्ले में जीवित रहने पर मां को जब उसके बेटे ने घर से निकाल दिया तो मां को अपने पास रख देखभाल करने वाली बेटी ने ही मां की मृत्यु के बाद भी अंतिम यात्रा में कंधा भी दिया और मां को मुखाग्नि भी दी।
यह सिर्फ एक खबर नहीं है बल्कि एक उदाहरण है और उनके मुंह पर तमाचा है जो बहू-बेटियों को पैरों की धूल समझते हैं। इस मामले में जहां जन्म देने वाली मां को बेटे ने दरकिनार किया, वहीं एक बेटी ने एक बेटे का फर्ज निभाया है। साथ ही अंतिम संस्कार कर उस बेटी ने ये साबित कर दिया है कि जरूरी नहीं है कि पुरूष ही आगे रहेंगे, महिला भी किसी से कम नहीं है।
दरअसल संभल के सरायतरीन के एक मोहल्ला नवाब खेल निवासी बसंती पत्नी नन्हें अपनी विधवा बेटी प्रेमवती के साथ अलग मकान में रहती थी, जबकि बेटा अलग मकान में रहता था। जिसने माँ को उम्र के अंतिम पड़ाव पर घर से बाहर निकाल दिया था, माँ को घर से निकाल दिए जाने के बाद बेटी ने माँ को अपने पास रखा और बेटी ही मां की सेवा करती रही। बीती 14 अप्रैल को बसंती की मौत हो गई। मौत की जानकारी पर इलाके के लोगो ने प्रेमवती के भाई को खबर दी। अंतिम समय में मां को घर से निकाल देने वाले भाई के पहुंचने पर उसकी बहन ने उसे नजरंदाज कर दिया।
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प्रेमवती ने अपनी मां का अंतिम संस्कार खुद ही करने की ठानी, अंतिम संस्कार के लिए सामान मंगा लिया। इलाके के लोगों ने किसी पुरुष को अंतिम संस्कार करने की बात कही, जिस पर प्रेमवती ने इनकार करते हुए खुद ही अपनी मां के अंतिम संस्कार करने की बात कह डाली, जिस पर रिश्तेदारों ने विरोध किया तो बिना परवाह करते हुए अंतिम यात्रा में मां के शव को बेटी ने कंधा दिया और अंतिम संस्कार की हर रस्म पूरी की।
वहीं बेटे द्वारा मां को निकाल दिए जाने के बाद बेटी द्वारा देखभाल करने और अंतिम समय में उसका अंतिम संस्कार किए जाने की खूब चर्चा हो रही है। लोग इस बेटी की मिसाल पेश कर रहे हैं।
-आईएएनएस