सियोल। दक्षिण कोरिया की एक अदालत ने शुक्रवार को राष्ट्रपति पार्क ग्युन-हे के खिलाफ संसद से पारित महाभियोग प्रस्ताव को बरकरार रखा है। इसी के साथ देश में पिछले 92 दिनों से चल रहे नेतृत्व संकट का समाधान हो गया है। संवैधानिक अदालत की कार्यवाहक जज ली जुंग मी ने यह फैसला सुनाया, जिसका सीधा प्रसारण टेलीविजन पर किया गया। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति की गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव व परिणाम बेहद गंभीर हैं और उन्हें पद से हटाना व्यापक हित में है।’
समाचार एजेंसी योनहाप के मुताबिक, पार्क देश की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई पहली ऐसी नेता हैं, जिन्हें पद से हटा गया है। अदालत के आठ जजों ने सर्वसम्मति से महाभियोग के पक्ष में फैसला दिया। संसद ने पार्क के खिलाफ 9 दिसंबर को महाभियोग प्रस्ताव पारित किया था, जिसे उन्होंने देश की सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी थी।
उन पर सरकारी मामलों में अपनी करीबी दोस्त को सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने देने, उनसे मिलकर एक खास कंपनी समूह से धन उगाही करने, सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति में पद के दुरुपयोग तथा 2014 में नौका दुर्घटना के दौरान अपनी जवाबदेहियों की उपेक्षा के आरोप थे, जिसमें 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
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अदालत ने माना कि पार्क ने अपनी करीबी व विश्वसनीय मित्र चोई सून-सिल को
सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप की अनुमति देकर गैर-कानूनी कार्य किया।
हालांकि, अदालत ने सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति में अपने पद के दुरुपयोग
से संबंधित पार्क के खिलाफ लगे अन्य आरोपों को सबूतों के अभाव में खारिज कर
दिया।
पार्क पर 2014 में नौका डूबने की घटना के दौरान कथित रूप से
लापरवाही बरतने के आरोप पर न्यायाधीश ने कहा कि ये आरोप अदालत में विचारणीय
नहीं हैं। अदालत ने कहा कि पार्क के स्थान पर नए राष्ट्रपति का चुनाव 60
दिनों के भीतर करना होगा। अदालत के बाहर बड़ी संख्या में पार्क के समर्थक
और विद्रोही जुटे थे। किसी भी तरह के झगड़े की आशंका को टालने को के लिए
यहां बड़ी संख्या में पुलिस बलों व बसों की तैनाती की गई थी। पार्क देश की
पहली महिला राष्ट्रपति थीं। उन्होंने 25 फरवरी, 2013 को पद संभाला था।