पूजा के साथ शिवरात्रि के कारज,राजमाधव की जलेब से होगी मेले की शुरूआत

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017, 6:32 PM (IST)

मंडी(बीरबल शर्मा)। बाबा भूतनाथ और राजदेवता माधोराय के मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ ही मंडी शिवरात्रि मेलों के कारज शुरू हो गए हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला कमेटी के अध्यक्ष उपायुक्त मंडी संदीप कदम ने राजदेवता माधोराय और मंडी शहर के अधिष्ठाता बाबा भूतनाथ के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की।
परंपरा के अनुसार बाबा भूतनाथ के मंदिर तक मेला कमेटी के अध्यक्ष होमगार्डस के बैंड की धुन पर परेड करती पुलिस, होमगार्डस पुरूष एवं महिला जवानों की टुकड़ी के साथ चौहटा बाजार तक आए। जिसमें पुलिस के घुड़सवार रसाले आगे-आगे चल रहे थे। उसी के साथ रियासतकालीन देवता बदार क्षेत्र के थट्टा के शुकदेव ऋषि और घाटीहाड़ के देवता के रथ भी ढोल-नगाड़ों के साथ चौहटा बाजार में पहुंचे। उपायुक्त ने सपरिवार भूतनाथ और माधोराय के मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर नगर परिषद अध्यक्ष नीलम शर्मा, पार्षदगण और अन्य गणमान्य लोग उनके साथ मौजूद थे। मेले की विधिवत शुरूआत शनिवार को राजमाधव की जलेब (शोभायात्रा) से होगी, जिसमें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी भाग लेंगे।
22 साल बाद पुहंचे देव पराशर ऋषि
मंडी राज घराने में विशेष स्थान रखने वाले उत्तरशाल क्षेत्र के प्रमुख देवता ऋषि पराशर जो राजा मंडी के कुल देवता भी हैं 22 साल के लंबे अंतराल के बाद शुक्रवार को मंडी शिवरात्रि में भाग लेने के लिए पहुंच गए हैं। शिवरात्रि मेला कमेटी की ओर से भ्यूली पुल के पास देव पराशर का स्वागत किया गया। देवता की अगवानी के लिए राजदेवता माधोराय की छड़ी भेजी गई थी।
पडडल मैदान में किया विश्राम
देवता पराशर सबसे पहले पडडल स्थित देवसमागम स्थल पर पहुंचे जहां 22 सालों के बाद पीपल के थड़े पर विश्राम किया। इससे पूर्व देवताओं के रथ उनके सम्मान झुके और उनका अभिवादन किया। इसके पश्चात दोपहर बाद देव पराशर ढोल नगाड़ों के साथ राज देवता माधोराय के मंदिर में पहुंचे। राजदेवता के समक्ष शीश नवाने के पश्चात देव पराशर भवानी पैलेस में चले गए जहां वे मेलों के दौरान प्रवास करेंगे। देव पराशर हर रोज लगने वाले देव समागम में शिरकत नहीं करते।
अंतिम मेले की पूर्व संध्या पर होगी जाग
शिवरात्रि के अंतिम मेले की पूर्व संध्या पर देव पराशर की जाग भवानी पैलेस के प्रांगण में आयोजित की जाएगी। जिसमें देवता का गुर अलाव की परिक्रमा करते हुए देव नृत्य करेगा। इससे पूर्व यह रस्म शुकदेव ऋषि के गुर द्वारा निभाई जाती थी।

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