ताउम्र फिल्मों के प्राण बने रहे ‘प्राण’

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 12 फ़रवरी 2017, 10:24 AM (IST)

हिन्दी सिनेमा के गुजश्ते जमाने पर नजर दौडाने पर एक ऐसा अदाकार आँखों के सामने आता है जिसने अपनी अदाकारी से सिर्फ परदे पर ही नहीं बल्कि दर्शकों के मन में भी दहशत बैठाने में सफलता प्राप्त की थी। वैसे तो हिन्दी सिनेमा में कई दिग्गज खलनायकों को हमने देखा है लेकिन इनमें सबसे अव्वल रहे हैं प्राण कृष्ण सिकंद, जिन्हें ‘प्राण’ के नाम से जाना जाता है। फिल्मों में प्राण को अपने किरदारों को जीवंत करने में महारत हासिल थी। अपनी कमाल की अदाकारी से दर्शकों के दिलों-दिमाग पर छाप छोडने वाले अभिनेता प्राण के कई संवाद आज भी याद किए जाते हैं। भले ही अब वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपनी खलनायकी और रौबदार अंदाज के लिए आज भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने 1940 से 1990 के दशक तक दर्शकों को अपने दमदार अभिनय का मुरीद बना दिया।


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प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था और उनका जन्म 12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। प्राण के पिता लाला कृष्ण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे, जो आमतौर पर सडक़ और पुल का निर्माण करते थे। प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर में हुई। वह बचपन से ही पढाई में काफी होशियार थे। दर्शकों के बीच दमदार अभिनय की छाप छोडने वाले प्राण के बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि वह अभिनेता नहीं, बल्कि एक फोटोग्राफर बनना चाहते थे, लेकिन भाग्य ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। प्राण की फिल्मों में आने की कोई योजना नहीं थी। हुआ यूं कि एक बार लेखक मोहम्मद वली ने प्राण को एक पान की दुकान पर खडे देखा, उस समय वह पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ के निर्माण की योजना बना रहे थे। पहली ही नजर में वली ने यह तय कर लिया कि वह अपनी इस फिल्म में प्राण को लेंगे। फिर क्या था, उन्होंने प्राण को फिल्म के लिए राजी कर लिया।

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फिल्म ‘यमला जट’ 1940 में प्रदर्शित हुई और काफी हिट भी रही और इसके बाद तो प्राण ने फिर कभी पलटकर नहीं देखा। इसके बाद प्राण ने कई और पंजाबी फिल्मों में काम किया और लाहौर फिल्म जगत में सफल खलनायक के रूप में स्थापित हो गए। लाहौर फिल्म उद्योग में एक नकारात्मक अभिनेता की छवि बनाने में कामयाब हो चुके प्राण को हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक 1942 में फिल्म ‘खानदान’ से मिला। इस फिल्म की हीरोइन नूरजहां थीं। देश के बंटवारे के बाद प्राण ने लाहौर छोड दिया और मुंबई आ गए। लाहौर में प्राण तब तक फिल्म जगत का एक प्रतिष्ठित नाम बन चुके थे और नामचीन खलनायकों में शुमार हो गए थे, लेकिन हिंदी फिल्म जगत में उनकी शुरुआत आसान नहीं रही। मुंबई में उन्हें भी किसी नवोदित कलाकार की तरह ही संघर्ष करना पडा। प्राण ने 1948 से 2007 तक सहायक अभिनेता के तौर पर काम किया, वह बॉलीवुड के ऐसे अभिनेता हैं, जिन्हें मुख्यत: खलनायक की भूमिका के लिए जाना जाता है। प्राण ने शुरूआत में 1940 से 1947 तक नायक के रूप में फिल्मों में अभिनय किया। इसके अलावा खलनायक की भूमिका 1942 से 1991 तक जारी रखी।

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वह फिल्म जंजीर (1973) के लिए काफी लोकप्रिय हुए। इसमें उन्होंने नकारात्मक भूमिका निभाई और उनका गीत ‘यारी है ईमान मेरा’ काफी लोकप्रिय रहा, जिसे आज भी लोग गुनगुनाते नजर आते हैं। अमिताभ बच्चन के साथ जंजीर से शुरू हुआ उनका यह सफर उनके द्वारा निर्मित तेरे मेरे सपने तक जारी रहा। एक वक्त था जब उन्होंने लगातार अमिताभ बच्चन के साथ कई फिल्मों में काम किया, जिनमें वे उनके पिता, दोस्त, दुश्मन सभी चरित्रों में नजर आए। पिता के रूप में अमिताभ बच्चन के साथ उनकी फिल्म ‘शराबी’ अविस्मरणीय फिल्म है। हास्य अभिनेता किशोर कुमार और महमूद के साथ वाली उनकी कई फिल्में भी काफी पसंद की गईं। किशोर कुमार के साथ फिल्म नया अंदाज, आशा, बेवकूफ, हाफ टिकट, मनमौजी, एक राज, जालसाज जैसी यादगार फिल्में हैं तो महमूद के साथ साधु और शैतान व लाखों में एक काफी चर्चित रहीं। नब्बे दशक की शुरूआत से वह फिल्मों में अभिनय के प्रस्ताव को बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य के चलते अस्वीकार करने लगे, लेकिन वह करीबी अमिताभ बच्चन के घरेलू बैनर की फिल्म मृत्युदाता और तेरे मेरे सपने में नजर आए। प्राण अकेले ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने कपूर खानदान की हर पीढी के साथ काम किया। चाहे वह पृथ्वीराज कपूर हो, राजकपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर, रणधीर कपूर, ऋषि कपूर राजीव कपूर, करिश्मा कपूर, करीना कपूर।

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सदी के खलनायक प्राण की जीवनी भी लिखी जा चुकी है। उसका शीर्षक ‘प्राण एंड प्राण’ रखा गया है। पुस्तक का यह शीर्षक इसलिए रखा गया है कि प्राण की ज्यादातर फिल्मों में उनका नाम सभी कलाकारों के पीछे लिखा हुआ आता था। कभी-कभी उनके नाम को इस तरह पेश किया जाता था ‘अबव ऑल प्राण’। प्राण सिकंद को वर्ष 2001 में भारत सरकार ने कला क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया। प्राण ने उपकार (1967), आंसू बन गए फूल (1969) और बेईमान (1972) के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था। मनोज पहले ऐसे निर्माता निर्देशक थे जिन्होंने प्राण को खलनायकी के चोले से बाहर निकाला था। उनके द्वारा निर्मित निर्देशित ‘उपकार’ पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें प्राण चरित्र भूमिका में नजर आए थे। ‘मलंग बाबा’ का वो किरदार प्राण की अभिनय यात्रा में मील का पत्थर साबित हुआ। इस फिल्म में मन्ना डे की आवाज में गाया गीत ‘कस्मे वादे प्यार वफा सब वादे हैं वादों का क्या. . .’ को आज भी याद किया जाता है। 1997 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से भी नवाजा गया। वर्ष 2013 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के सम्मान भी प्रदान किया गया।

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जीवन के आखिरी सालों में प्राण व्हील चेयर पर आ गए थे। वर्ष 1998 में प्राण को दिल का दौरा पडा था। उस समय वह 78 साल के थे, फिर भी मौत को उन्होंने पटकनी दे दी थी, लेकिन 12 जुलाई, 2013 को सभी को हमेशा के लिए अलविदा कहकर दूर चले गए। प्राण भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपने दमदार अभिनय के कारण वह हमेशा हम सबके दिल में बसे रहेंगे।

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