अभिषेक मिश्रा, लखनऊ। कैंट सीट का चुनाव अब और भी दिलचस्प हो गया
है। कैंट के चुनावी अखाड़े में मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव के उतरने से
मुकाबला काफी रोचक हो गया है। चुनावी दंगल में अपर्णा के सामने बीजेपी की तरफ से
पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा हैं। वहीं बहुजन समाज
पार्टी ने इसी सीट से योगेश दीक्षित को खड़ा किया है। अपर्णा यादव राजधानी की नौ
सीटों के अन्य उम्मीदवारों में सबसे अधिक रईस उम्मीदवार हैं। खास बात ये है कि अब
तक हुए चुनाव प्रचार में भी अपर्णा ने सबसे अधिक पैसे खर्च किए हैं।
अपर्णा यादव
पहली बार राजनीति में अपनी किस्मत आजमा रही हैं। वह राजनीति विज्ञान की छात्रा रही
हैं। मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी से उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राजनीति में
पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। इस बार यूपी में लखनऊ कैंट की सीट पर सबकी नजर भी है। इस
सीट पर कांग्रेस से विधायक रीता बहुगुणा ने अब कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन
थाम लिया है और अपनी जीती हुई सीट से बीजेपी की उम्मीदवार हैं। रीता बहुगुणा के
सामने समाजवादी पार्टी ने अपर्णा यादव ही प्रमुख प्रतिद्वंदी हैं।
1996 से भाजपा के सुरेश चंद्र तिवारी लगातार
लखनऊ कैंट की सीट से जीतते आए लेकिन भाजपा के विजय रथ को ब्रेक लगाया रीता बहुगुणा
ने। साल 2012 में रीता बहुगुणा चुनाव जीतीं जो कांग्रेस के लिए बड़ी
कामयाबी थी। कैंट विधानसभा सीट की हार जीत का फैसला हमेशा से यहां के ब्राह्मण
वोटर करते आए हैं। यही वजह है कि पार्टियां यहां से सवर्ण उम्मीदवार पर दांव चलती
हैं। कैंट क्षेत्र में 2012 में मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख पन्द्रह हजार थी।
सबसे ज्यादा एक लाख से अधिक ब्राह्मण, 50 हजार दलित, 40 हजार वैश्य, 30 हजार
पिछड़े, 25 हजार क्षत्रिय और 25 हजार मुस्लिम हैं। 2017 में कुल 367590 वोटर
हैं, जिसमें से 200191 पुरुष और 167399 महिला वोटर हैं। कैंट
की सीट से कांग्रेस के टिकट पर रीता बहुगुणा जोशी ने 2012 में
भाजपा के उम्मीदवार सुरेश तिवारी को हराया था।
सुरेश तिवारी तीन बार से लखनऊ कैंट सीट लगातार जीत
रहे थे। कैंट की सीट सपा के लिए कभी लकी नहीं रही है, सपा कभी भी इस सीट को
नहीं जीत पाई है।
[@ प्रत्याशियों की पत्नियों के पास है कुबेर का खजाना, पढ़कर रह जाएंगे हैरान]
एक समय था जब लखनऊ कैंट की सीट कांग्रेस के गढ़ के नाम से मशहूर थी। 1957 में पहली बार कांग्रेस के श्याम मनोहर मिश्रा यहां से विधायक बने थे। साल 1974 में चौधरी चरण सिंह इसी सीट से कांग्रेस के विधायक बने थे।
1991 में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर कब्जा किया था और सतीश भाटिया यहां से चुनाव जीते थे, इसके बाद वो दूसरा चुनाव भी 1993 में जीते थे।