पंजाब में बड़े घरानों की प्रतिष्ठा दांव पर, चुनावी जंग में फंसे बडे नेता

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 30 जनवरी 2017, 7:04 PM (IST)

बलवंत तक्षक
चंडीगढ़ । पंजाब में प्रतिष्ठा की सीटों पर घमासान जारी है। आमतौर पर अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच होने वाली चुनावी लड़ाई को इस बार आप ने तिकाने संघर्ष में बदल दिया है। अपनी-अपनी जीत के दावों के बीच राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी लड़ाई जीतने के लिए हर दाव आजमा रहे हैं। कहीं किसी के काफिले पर पथराव हो रहा है तो कहीं किसी पर जूते उछाले जा रहे हैं। कोई रोड शो के जरिये अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है तो कोई अश्लील सीडी जारी कर लड़ाई को अपनी तरफ मोड़ने की कोशिशों में जुटा है।
पंजाब की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल हैं। बादल को इस बार अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरफ से मिली है। अपनी राजनीतिक जिंदगी की आखिरी लड़ाई में उतरे कैप्टन ने निश्चित तौर पर बादल की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कैप्टन के आ जाने से लंबी विधानसभा क्षेत्र से लगातार जीतते रहे बादल को कड़े संघर्ष से गुजरना पड़ रहा है। दिल्ली से आप के विधायक जरनैल सिंह ने लंबी में मुकाबले को तिकोना बना दिया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंक कर चर्चा में आये जरनैल सिंह अब लंबी से लड़ रहे हैं। राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी बादल के लिए इससे बड़ी तकलीफ की बात क्या हो सकती है कि उन्हीं के क्षेत्र में एक सभा के दौरान उन पर जूता फेंक दिया गया। दस साल से मुख्यमंत्री चले आ रहे बादल को इन दिनों सत्ता विरोधी रुख का सामना करना पड़ रहा है।
बादल के बेटे उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल भी जलालाबाद क्षेत्र में कड़े संघर्ष में उल­ो हैं।

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जलालाबाद से अच्छे खासे वोट के अंतर से जीतते रहे जूनियर बादल को आप के सांसद भगवंत मान और कांग्रेस के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने घेरा हुआ है। सुखबीर के काफिले पर हुए पथराव से यह साफ हो चुका है कि अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के प्रति लोगों में नाराजगी है और चुनावी समर जीतने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हास्य कलाकार से राजनीति में कदम रखने वाले मान को सुनने के लिए जुटने वाली भीड़ ने जहां बादल की परेशानियां बढ़ाई हुई हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के परिवार से ताल्लुक रखने वाले बिट्टू के भी मजबूती से आ डटने ने उन्हें मुश्किल में डाला हुआ है। जलालाबाद क्षेत्र में बड़ा प्रभाव रखने वाले फिरोजपुर के अकाली सांसद शेरसिंह घुबाया के बेटे दविंदर सिंह घुबाया के कांग्रेस के टिकट पर फाजिल्का क्षेत्र से चुनाव लड़ना भी सुखबीर बादल के लिए ठीक नहीं रहा।
सांसद घुबाया भले ही अभी अकाली दल में हैं, लेकिन उनके परिवार का कांग्रेस में शामिल होना अकाली दल को पसंद नहीं आया है। चुनाव प्रचार के दौरान घुबाया का एक सेक्स वीडियो वायरल होना भी इस नाराजगी को जाहिर करता है। घुबाया ने सेक्स वीडियो वायरल होने के पीछे उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की साजिश करार दिया है। जाहिर है कि घुबाया की फाजिल्का व जालालाबाद के अलावा आसपास के इलाकों में राय सिख बिरादरी पर मजबूत पकड़ है। घुबाया परिवार का कांग्रेस में जाना सुखबीर को मंहगा पड़ सकता है। फाजिल्का से आप ने समरवीर सिंह को टिकट दिया है, जो लड़ाई को तिकोना बनाने के प्रयास कर रहे हैं।

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कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अमरिंदर सिंह लंबी के अलावा अपने पुराने चुनाव क्षेत्र पटियाला से भी किस्मत आजमा रहे हैं। कैप्टन पटियाला से लगातार जीतते रहे हैं। उनकी पत्नी परणीत कौर भी विधानसभा में पटियाला क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। अकाली दल ने जनरल जेजे सिंह को मैदान में उतार कर कैप्टन को चुनौती देने की कोशिश की है। आप ने डॉ. बलबीर सिंह को किस्मत आजमाने का मौका दिया है और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पटियाला में उनके पक्ष में रोड शो करके उन्हें मजबूती दी है। जरनल जेजे सिंह की कोशिश कैप्टन को उन्हीं के पिच पर मात देने की है, लेकिन अकाली-भाजपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुख के कारण उन्हीं के रास्ते में बाधाएं पैदा हो रही हैं।

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मजीठा इन दिनों सर्दी के मौसम में सबसे गर्म क्षेत्र के तौर पर उभरा है। सुखबीर बादल के साले और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर के भाई लोक संपर्क मंत्री विक्रम सिंह मजीठिया यहां अकाली दल के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने सुखजिंदर राज सिंह लाली और आप ने हिम्मत सिंह शेरगिल को टिकट दिया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तो पंजाब में चुनाव अभियान की शुरुआत ही मजीठा से की है, जबकि केजरीवाल कह चुके हैं कि आप के सत्ता में आने के बाद मजीठिया 15 अप्रैल तक जेल भेज दिए जाएंगे। आप के उम्मीदवार शेरगिल को गुजरात की बंजर जमीन को अपनी मेहनत से उपजाऊ जमीन में तब्दील करने वाले पंजाब के किसानों को मालिकाना हक दिलाने की लड़ाई लड़ने वाले जु­ाारू हीरो के तौर पर देखा जाता है। पंजाब में बढ़ते नशे को ले कर कांग्रेस और आप की तरफ से मजीठिया को लगातार कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
देखने वाली बात यह होगी कि लगातार दो बार मजीठा क्षेत्र से जीत चुके मजीठिया हैट्रिक लगा पाते हैं या नहीं क्रिकेट की दुनिया में नाम कमाने के बाद राजनीति में आये नवजोत सिंह सिद्धू की भूमिका इस बार बदल गई है। अमृतसर से चार बार भाजपा के सांसद रहे सिद्धू ने राज्यसभा की सीट से इस्तीफा दे कर कांग्रेस का हाथ थामा है। सिद्धू पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं और खुद को कैप्टन अमरिंदर सिंह का सिपाही करार दे रहे हैं। अमृतसर ईस्ट से चुनाव लड़ रहे सिद्धू के मुकाबले भाजपा के राजेश हनी और आप के सरवजोत सिंह धंजल मैदान में हैं। भाषणकला में प्रवीण सिद्धू अपनी जीत के प्रति इतने आश्वस्त हैं कि वे कांग्रस उम्मीदवारों के पक्ष में पंजाब भर में करीब 70 सभाएं करेंगे। सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू ने चुनाव की कमान संभाली हुई है। सिद्धू के खिलाफ यही प्रचार किया जा रहा है कि इतना मान-सम्मान देने के बावजूद जब वे भाजपा के नहीं हुए तो कांग्रेस के प्रति भी वफादार नहीं रहेंगे, लेकिन सिद्धू और उनके समर्थकों पर इसका कोई असर नजर नहीं आ रहा है।
बठिंडा शहरी सीट पर बादल के छोटे भाई गुरदास सिंह बाइल के बेटे मनप्रीत सिंह बादल की प्रतिष्ठा दाव पर है। बादल सरकार में वित्त मंत्री रह चुके मनप्रीत बादल ने पिछले चुनावों में पंजाब पीपुल्स पार्टी का गठन कर चुनाव लड़ा था, लेकिन नवे गिदड़बाहा क्षेत्र से जीत पाये और न उनकी पार्टी कोई सीट निकाल पाई। मनप्रीत बादल ने हालात को सम­ाते हुए अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया और इस बार वे गिदड़बाहा की जगह बठिंडा शहरी से लड़ने का फैसला किया है।
अकाली दल के सरूप सिंह सिंगला और आप के दीपक बंसल से जू­ा रहे मनप्रीत बादल को उम्मीद है कि उन्हें विधानसभा में पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। मनप्रीत की पार्टी को पिछ ले चुनाव में छह फीसदी वोट मिले थे। अगर वे तब कांग्रेस के साथ होते तो अकाली-भाजपा गठबंधन के बजाये सत्ता कांग्रेस के हाथ में होती। यही वजह है कि इस बार अपनी पार्टी के कांग्रेस में विलय के बाद मैदान में उतरे मनप्रीत पंजाब में कांग्रेस सरकार बनने के प्रति आश्वस्त हैं।
प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में जीत के दावों के बावजूद लोग किसके सिर पर सेहरा बांधेंगे, यह 11 मार्च को ही साफ होगा, लेकिन एक-दूसरे को मात देने का यह खेल चार फरवरी तक बड़े जोर-शोर से जारी रहेगा।

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