नई दिल्ली/लखनऊ। उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और
राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के बीच होने वाले महागठबंधन में सीटों को लेकर पेच
फंसता नजर आ रहा है। दो मुख्य किरदारों सपा व कांग्रेस में तो गठबंधन पर
सहमति बनती दिख रही है लेकिन रालोद से सीटों पर सहमति नहीं बन पा रही है।
ऐसे में महागठबंधन की डोर सपा ने अब कांग्रेस के अनुभवी हाथों में थमा दी
है। दिल्ली में कांग्रेस और रालोद के नेताओं के बीच अति महत्वपूर्ण बैठक चल
रही है। माना जा रहा है कि बैठक का विषय यूपी विधानसभा चुनावों में
महागठबंधन और सीटों का बंटवारा ही है।
इससे पहले गठबंधन पर सपा ने अपना
पक्ष साफ करते हुए कहा था कि हम केवल कांग्रेस के साथ गठबंधन करेंगे। ताजा
घटनाक्रम के बाद लग रहा है कि कांग्रेस बिहार की तरह ही यूपी में भी
महागठबंधन को लेकर चलने का प्रयास कर रही है। हालांकि समाजवादी पार्टी को
डर है कि अगर रालोद गठबंधन में आती है तो उसका मुस्लिम वोट छिटक सकता है।
रालोद
35 सीटें मांग रहा है, जबकि सपा उससे सीधे बात नहीं कर रही, मगर कांग्रेस
के जरिए हो रही बातचीत में उसे महज 20 से 25 सीटें देने का प्रस्ताव दिया
है। सपा की ओर से प्रस्तावित 85 सीटों के बजाए कांग्रेस भी 110 सीटें मांग
रही है। सपा व कांग्रेस की ओर से जल्द गठबंधन व सीट बंटवारे का ऐलान होगा।
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किरणमय नंदा ने की थी कांग्रेस से गठबंधन की बात
सपा
के वरिष्ठ नेता किरणमय नंदा ने एक चैनल से कहा था कि गठबंधन की खातिर
सिर्फ कांग्रेस से बात चल रही है। नंदा ने कहा था, ‘आरएलडी से कोई बात नहीं
हो रही है। राजद, ममता और जदयू केवल सपा को सपोर्ट करेंगे और चुनाव प्रचार
में भाग लेंगे। हम इनके साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे। हम सिर्फ 2017 को
ध्यान में रख चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, हमारी नजर 2019 के चुनावों पर भी है।
कांग्रेस साथ सीटों का बंटवारा 2012 के चुनाव परिणाम के आधार पर होगा।’
सपा
ने अभी तक रालोद से इस मुद्दे पर सीधे बात नहीं की है, पर कांग्रेस द्वारा
उसे गठबंधन में शामिल करने पर रालोद को भी कम से कम 20 तो देनी पड़ेगी।
वर्ष 2012 में कांग्रेस से गठबंधन पर अजित सिंह का रालोद 45 सीटों पर चुनाव
लड़ा, जिसमें नौ सीटों पर जीते और 12 पर दूसरे नंबर पर रहे। खास बात यह है
कि रालोद की निगाह सपा की तीन सिटिंग सीटों मेरठ की सिवालखास, मुजफ्फरनगर
की बुढ़ाना व हाथरस की सादाबाद पर भी है। सपा इन्हें छोडऩे को तैयार नहीं
है।
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चुनाव-दर-चुनाव कम होता गया रालोद का जादू
आपको बता दें कि रालोद
की पकड़़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिलवक्त निम्न स्तर पर है। 2002 के
विधानसभा चुनाव में रालोद ने 38 उतारे थे, जिसमें से 14 को जीत मिली थी
जबकि 12 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2007 के चुनावों में रालोद ने
254 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे सिर्फ 10 सीटों पर जीत हासिल
हुई थी। खास बात यह थी कि 222 सीटों पर रालोद के प्रत्याशी की जमानत जब्त
हो गई थी। इन चुनावों में रालोद का वोट प्रतिशत 3.70 प्रतिशत था। 2007 के
चुनावों में मिली करारी हार से सीख ले रालोद ने 2012 के चुनावों में महज 46
सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे। इस बार भी परिणाम रालोद के उम्मीदों के
मुताबिक नहीं रहा और उसे सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा। चुनावों में
उसके 20 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। इन चुनावों में रालोद का वोट
प्रतिशत घटकर 2.33 फीसदी रह गया।
सपा चाह रही है कि कांग्रेस व रालोद
दोनों को अधिकतम 110 सीटें दे दी जाएं। 4-6 सीटें तो दूसरे छोटे दलों को
देनी होंगी। सीएम अखिलेश ने महागठबंधन का स्वरूप तय करने का काम अपने हाथ
में ले रखा है। उन्होंने बुधवार को गठबंधन को लेकर अपनी तय सीटों पर
दावेदारों के नामों पर विचार किया। सबसे ज्यादा जोर प्रथम चरण वाली सीटों
पर है। कांग्रेस को राजी करने के लिए सपा को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
रालोद की मुश्किलें-
- मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट-मुसलमानों में बढ़ी दूरी
- सपा को आशंका,चुनाव के बाद रालोद मिल सकता है सरकार बनाने वालों से
- रालोद छोटे राज्यों के पक्ष में हैं और सपा इसके पक्ष में नहीं है।