कुल्लवी बोली पर रूस में हो रही है रिसर्च

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 16 जनवरी 2017, 5:07 PM (IST)

कुल्लू। अपनों ने तो कद्र नहीं की बल्कि शोध करने के बहाने बड़े-बड़े सम्मेलन और गोष्ठियां ही होती रही। जिसमें कुल्लवी बोली पर शोध करने के नाम पर प्रदेश से लेकर स्थानीय लेखकों ने कई प्रपत्र पढे और खा-पीकर चलते बने लेकिन शोध के नाम पर केवल प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार मौलूराम ठाकुर के अलावा किसी ने भी असल में कुछ भी नहीं किया। लेकिन कुल्लवी बोली की महता को सात समुंदर पार रूस के शोधार्थियों ने समझा और वह इस पर कुल्लू आकर शोध करने के बाद अब वह रूस में ही इस पर शोध कर रहे हैं। जिससे अब यह साफ हो गया है कि कुल्लवी बोली का परचम रूस के अलावा अन्य देशों में भी लहराएगा।
उल्लेखनीय है कि कुल्लवी बोली पर शोध करने के लिए रूस से शोधार्थियों का छः सदस्यीय दल लगातार कुल्लू आता रहा है और इस बोली पर शोध कर रहे हैं। यह जानकारी देते हुये कुल्लू की जिला भाषा अधिकारी प्रोमिला गुलेरिया ने बताया के शोधार्थियों का यह दल कुल्लू जनपद में कुल्लवी बोली के जानकारों, साहित्यकारों से चर्चा करने के साथ-साथ कुल्लूवी ग्रंथों, पुस्तकों और संदर्भों को खंगालकर कुल्लवी बोली पर शोध कर रहा हैं। अब तक यह शोधार्थी कुल्लू के अनेक साहित्कारों से मुलाकात कर कुल्लवी बोली पर कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटा चुके हैं। प्रदेश के वरिष्ठ साहित्कार एवं लेखक ठाकुर मौलूराम से भी कुल्लवी बोली पर जानकारियां जुटा कर अपने देश लौट गये हैं और वहीं कुल्लूवी बोली पर शोध कर रहे हैं।
माना जा रहा है कि विदेशी शोधार्थियों द्वारा इस पर शोध करने से कुल्लवी बोली का मान और ज्यादा बढ़ेगा। कुल्लवी बोली पर शोध कर रही शोधार्थी नास्ता, जैनिम, जुलिया और कसैनिम का कहना है कि उन्हें पोलेंड में हिमाचल प्रदेश के लेखक मौलूराम ठाकुर की एक पुस्तक मिली थी जिसमें कुल्लवी बोली की महता और उसको सहेजे जाने के प्रयास की गंभीर चर्चा की गई है। जिसके चलते उनमें इस बोली को जानने की जिज्ञासा पैदा हुई। चूंकि रूस में भी इसी तरह की मिलती जुलती बोली का प्रयोग लोग करते हैं। नास्ता व जैनिम ने बताया कि हालांकि हमारे लिये यह काफी कठिन काम है लेकिन उसके बावजूद भी हम कुल्लवी बोली पर शोध करने और उसे सहेजने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
रूस के इंस्टीच्यूट फॉर ओरियेंटल एंड क्लासिकल स्टडीज रशियन स्टेट युनिवर्सिटी फॉर द हयुमनाइटीज मास्को की छात्राओं का कहना है कि यही जज्बा लेकर हमने कुल्लवी बोली पर शोध करने की ठान ली और शोध करने कुल्लू पहुंचे। कुल्लू जिला में प्रदेश के कई नामी लेखक हैं लेकिन आज तक किसी ने भी अपनी कुल्लवी भाषा को सहेजने व उस पर शोध करने की जहमत नहीं उठाई। जबकि कुल्लू में साहित्य व पुरानी परंपराओं के साथ-साथ लोक संस्कृति को संजोये रखने का डंका पीटने वाली कुछ साहित्यक संस्थायें भी हैं जो गाहेबगाये अपनी डफली अपना राग के ताल पर बड़े-बड़े काम करने का मात्र ढोल पीटती रहती है।
यही वजह है कि कुल्लू की बोली के संरक्षण के लिये सात समुंदर पार के शोधार्थियों को आगे आना पड़ा। केवल मौलूराम ठाकुर, विद्या चंद ठाकुर, सूरत ठाकुर, सीता राम ठाकुर, दयानंद सरस्वती सहित कुछ गिने-चुने लेखक ही हैं जो इस क्षेत्र में सार्थक भूमिका निभा रहे हैं।

[@ 25 वर्ष पूर्व हुए अन्याय की लडाई लड़ रहे चमेरा-3 के विस्थापित]