मोदी डिग्री विवाद: IC से छिने HRD के केस

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 13 जनवरी 2017, 11:13 AM (IST)

नई दिल्ली। दिल्ली यूनिवर्सिटी से 1978 में बीए पास करने वालों के रेकॉर्ड सार्वजनिक करने का आदेश देने वाले सूचना आयुक्त एम श्रीधर आचार्युलु को मानव संसाधन मंत्रालय से जुड़े मामलों की सुनवाई करने से हटा दिया गया है। मुख्य सूचना आयुक्त आरके माथुर ने 10 जनवरी को एक आदेश जारी कर उनसे कहा है कि वह अब मानव संसाधन मंत्रालय से जुड़े मामलों की सुनवाई न करें। जिन मामलों में नोटिस जारी कर दिए गए हैं, उन्हें छोडक़र सभी लंबित मामले अन्य सूचना आयुक्त मंजुला पाराशर को ट्रांसफर कर दिए गए हैं। माना जाता है कि 1978 वही साल था, जब पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री ली थी।
बता दें कि आचार्युलु ने कई आदेश जारी करते हुए यूनिवर्सिटी प्रशासन को वे सूचनाएं न देने के लिए फटकार लगाई थी, जो उनके हिसाब से जनहित से जुड़ी थीं। भाजपा नेताओं ने पिछले साल दावा किया था कि मोदी ने 1978 में डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम के जरिए यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस की डिग्री ली थी। बाद में डीयू के रजिस्ट्रार तरुण दास ने भी इसकी पुष्टि की थी। आचार्युलु ने आवेदक नीरज की याचिका पर सुनवाई करते हुए बीते साल 21 दिसंबर को आदेश जारी किया था। नीरज ने जानना चाहा था कि 1978 में हुए बीए की परीक्षा में कुल कितने स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया। उन्होंने उन स्टूडेंट्स के नाम, पिता के नाम, रोल नंबर और पाए गए नंबर की जानकारी मांगी थी। डीयू के सेंट्रल पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर (पीआईओ) ने यह सूचना देने से इनकार करते हुए कहा था कि यह संबंधित स्टूडेंट्स की निजी जानकारी है, जिसके खुलासे से कोई जनहित नहीं जुड़ा है।

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आचार्युलु ने कहा था, ‘पीआईओ ने ऐसे कोई सबूत नहीं रखे या संभावनाएं नहीं जाहिर कीं कि डिग्री से जुड़ी सूचनाएं सार्वजनिक करने से किसी की प्राइवेसी कैसे भंग होती है।’ अमेरिका और दूसरे मुल्कों में दिए गए आदेशों का जिक्र करते हुए उन्होंने फैसला दिया कि मांगी गई जानकारी जनहित से जुड़ी हुई है। इससे पहले, आचार्युलु ने एक अन्य आरटीआई पर सुनवाई करते हुए डीयू के सीपीआईओ पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। यह कार्रवाई पीएम की ग्रेजुएशन डिग्री से जुड़ी जानकारी मांगने वाली आरटीआई को खारिज करने के लिए की गई थी। दिल्ली के एक वकील ने यह आरटीआई दाखिल की थी। आरटीआई को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि इंडियन पोस्टल ऑर्डर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार के नाम से नहीं बनवाया गया था।

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