यज्ञ, श्राप और क्षमा से जुड़ी है दुनिया के इस इकलौते मंदिर की कथा

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 13 जनवरी 2017, 09:35 AM (IST)

अजमेर। दुनिया का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर कई मायनों में भी खास है। बादशाह औरंगजेब भी इस मंदिर को छू नहीं पाया था। असल में पूरी दुनिया में पुष्कर में ही एकमात्र ब्रह्मा मंदिर मौजूद है। पुष्कर को ब्रह्माजी का घर भी कहा जाता है। मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल के दौरान अनेक हिंदू मंदिर ध्वस्त किए गए। ब्रह्माजी का यही एकमात्र मंदिर है, जिसे औरंगजेब छू तक नहीं पाया। इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था और मंदिर निर्माण से जुड़ी अनेक दन्त कथाएं हैं। इनके अनुसार भगवान ब्रह्मा ने जगत की भलाई के लिए यज्ञ करना चाहा। जिसके लिए उन्हें शुभ मुहूर्त का इंतजार था। जब वो शुभ मुहूर्त आया तो उनकी पत्नी मां सरस्वती ने उन्हें इंतजार करने को कहा। सनातन धर्म में कोई भी धार्मिक कार्य पत्नी के अभाव में पूर्ण नहीं हो सकता। अत: यज्ञ के कार्य में विलंब होने लगा। क्रोध में आ कर ब्रह्मा ने ग्वालिन गायत्री नाम की स्त्री से विवाह कर लिया और उन्हें अपने साथ यज्ञ में बैठाया ताकि, समय रहते शुभ मुहूर्त में यज्ञ का कार्य पूर्ण हो सके। सरस्वती ने जब अपने स्थान पर दूसरी स्त्री को बैठे देखा तो वे क्रोध से भर गई और ब्रह्मा को श्राप देते हुए कहा कि आपकी धरती पर कहीं भी और कभी भी पूजा नहीं होगी। जब उनका क्रोध थोड़ा शांत हुआ तो देवी-देवताओं ने मां सरस्वती को विनय की कि ब्रह्मा को इतना कठोर दण्ड नहीं दें। देवी-देवताओं की बात का मान रखते हुए मां सरस्वती ने कहा कि ब्रह्मा का केवल एक ही मंदिर होगा जो पुष्कर में स्थित होगा और वो केवल यहीं पर पूजे जाएंगे। उसी दिन से पुष्कर धाम ब्रह्मा का घर बन गया। ब्रह्मा जी का मंदिर संगमरमर से बना हुआ है। चांदी के सिक्कों द्वारा इसकी साज-सज्जा की गई है। बहुत से चांदी के सिक्के ऐसे हैं जिन पर दान देने वाले श्रद्धालुओं के नाम खुदे हुए हैं। मंदिर के साथ ही सुंदर और पवित्र झील प्रवाहित होती है। जिसे पुष्कर झील कहा जाता है। कार्तिक माह में बहुत से श्रद्घालु यहां स्नान के लिए आते हैं। इस झील में स्नान करने के लिए 52 घाट बने हैं। मान्यता है कि प्रत्येक हिंदू को अपने जीवनकाल में एक बार पुष्कर धाम की यात्रा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि यह बनारस एवं प्रयाग की तरह ही महत्वपूर्ण है। पुष्कर झील में स्नान करने के बाद ही बद्रीनारायण, जगन्नाथ, रामेश्वरम, द्वारका की यात्रा पूर्ण होती है।

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