जानिए, शादी से पहले क्यों करते हैं जन्मकुंडली का मिलान

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017, 12:44 PM (IST)

विवाह के लिए वर-वधू की जन्मपत्री का मेलन करते समय मंगल ग्रह,नाडी और षडाष्टक का विचार करना अपरिहार्य होता है। आजकल ज्योतिष शास्त्र विषयक पुस्तकों में मंगल का उल्लेख प्रकर्षता के साथ किया जाता है। यदि जन्मकुंडली के 1,4,7,8 तथा 12 वें स्थान में मंगल ग्रह हो तो जातक मंगली माना जाता है। यदि यह कहकर ज्योतिष शास्त्र चुप बैठ जाता तो इतनी समस्याएं नहीं बढती। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि उपर्युक्त एक नियम के लगभग 450 अपवाद बनाकर उस मंगल को दोष दिया जाता है।

इतना होने पर भी यदि कुंडली में मंगल दोष रह जाए तो "गोदावरी दक्षिणतीरवासिनां भौमस्य दोषो नहि विद्यते खलु" कहकर बाकी बची कुंडलियों का छुटकारा करा दिया जाता है।

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कुछ वधू-वरो की गृहस्थियां सुुचारू रूप से चल रही हैं। इसके विपरीत दोनों कुंडलियों में मंगल का यत्किंचित दोष न रहने पर भी विवाह के कुछ दिनों बाद अनेक महिलाओं को वैधव्य एवं पुरूषों को विधुरत्व प्राप्त होता दिखाई देता है।

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इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि वधू-वरों की जन्मपत्री का मिलान करते समय मंगल के अलावा अन्य बातों का मिलान भी ठीक तरह से करना चाहिए। यदि स्त्री की जन्मकुंडली में दोष हो तो उससे उमाशंकर पूजन विधि एवं वैधव्य परिहारक कुंभ विवाह विधि करवा लें। इसी तरह यदि पुरूष की जन्मकुंडली में विधुर योग हो तो अर्क विवाह करा लें। अगर विवाह के पूर्व दोनों पक्ष ग्रह यज्ञ करवा लें तो मन की चुभन काफी कम हो जाती है।

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मंगल ग्रह की तरह नाडी का भी व्यर्थ में हौआ खडा करने से कोई फायदा नहीं है। एक नाडी के कारण संतानोत्पत्ति क्षमता में कमी आती है या कन्या संतति अधिक होती है- ऎसा ज्योतिष शास्त्र का कहना है। ऎसे में दोनों की प्रजनन क्षमता की जांच करवा कर यह देखा जाए कि उनका ब्लड गु्रप एक दूसरे से मेल खाने वाला है अथवा नहीं। एक नाडी दोष के कारण जन्मपत्री का मेल न होने पर आधुनिक वैद्यक शास्त्री से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

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