क्यों चढाते हैं गणेशजी के सिंदूर का चोला!

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 10 जनवरी 2017, 1:25 PM (IST)

श्रीगणेश जी हिन्दुओं के मांगलिक कार्यो में प्रथम आराध्य देव हैं। प्रत्येक शुभ काम का प्रारंभ श्रीगणेशजी के निमंत्रण से होता है। प्रत्येक पूजा में सर्वप्रथम श्रीगणेशजी का ही स्मरण और पूजन किया जाता है। श्रीगणेश जी की प्रतिमा अनेक रूपों में और अनेक प्रकार से लौकिक रूप से स्वीकार की जाती है। सुपारी या साबुत हल्दी पर मौली का धागा लपेटकर और सिंदूर व वर्क से चोला चढाकर भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है।

इसके अतिरिक्त रवि-पुष्य योग या गुरू-पुष्य योग में, सफेद आकडे के पौधे की जड को शुद्ध करके और सिंदूर का लेप करके भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है। श्वेत आकडे की जड से निर्मित (शुद्ध मुहूर्त में) प्रतिमा व्यापार वृद्धि और आय वृद्धि में बहुत ही सहायक होती है।

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आदि गणेश व श्रीगणेश :
इसके अलावा चंदन काष्ठ, ताँबा, पीतल, सोना, चाँदी, पत्थर व पीली मिट्टी द्वारा भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है और उनकी नियमित पूजा करने से सुख-शांति मिलती है। इनमें सुपारी, हल्दी, पीली मिट्टी, सफेद आकडे की जड आदि से निर्मित प्रतिमा "आदि-गणेश" का स्वरूप होती है, जिनका वेदों में सर्वप्रथम उल्लेख है। शिवजी के विवाह में इन्हीं आदि गणेश का पूजन किया गया था। शिवजी के पुत्र गौरी-पुत्र जो गणेशजी हैं, वे इन्हीं आदि गणेश के सर्वप्रथम अवतार हैं और इन्हीं गजानन, लम्बोदर गणेश की प्रतिमा पत्थर, काष्ठ, सोना-पीतल आदि धातुओं से निर्मित की जाती है।

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एक अति महत्वपूर्ण बात यह है कि "आदि-गणेश" की पूजा-अर्चना प्रतिदिन घर व व्यापार स्थल पर स्थापित मंदिर में की जाती है। घर व अन्य किसी भी भवन के मुख्य द्वार पर गौरी-पुत्र गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है।

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श्रीगणेशजी के सिंदूर का चोला :
तंत्रशास्त्रों में ऎसी मान्यताएं भी हैं कि जो व्यक्ति श्रीगणेशजी की प्रतिमा पर अपने हाथों से घी में मिलाकर शुद्ध सिंदूर व शिंगरफ का चोला चढाते हैं उन्हें पारद (पारा) भक्षण के समान लाभ होता है। इसमें यह भी बताया गया है कि श्रीगणेशजी की प्रतिमा हेतु कुरून्दम पत्थर का अत्यंत प्रशस्त होता है।

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श्रीगणेशजी की प्रतिमा पर सिंदूर का लेप करके चोला चढाना अति आवश्यक माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार - एक "सिन्धु" नामक असुर का वध श्रीगणेश जी ने किया और उसके शरीर से निकले सिंदूर का लेप श्रीगणेशजी ने क्रोधित अवस्था में अपने शरीर पर लगा लिया। यह "सिन्धु" अधर्म का पुत्र था और लोगों के घरों में घुसकर परिवार में अशांति, हानि और कलह उत्पन्न करता था। श्रीगणेशजी के सिंदूर लिप्त स्वरूप से यह भयभीत होता है इसलिए मुख्य द्वार पर जो गणेशजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है, वह ऎसे ही असुरों से और बुरी नजरों से घर की रक्षा करती है।

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मुख्य द्वार पर श्रीगणेशजी के दाएं-बाएं दोनों तरफ सिंदूर के धोल से "स्वास्तिक" और "रिद्धि-सिद्धि" व "शुभ-लाभ" लिखने की परंपराएं हैं। इस तरह के मांगलिक चिह्नों व नामों का अंकन घर में सुख-शांति का संचार करता है। घर में रहने वाला हर सदस्य घर से बाहर निकलते समय और घर में प्रवेश करते समय मुख्य द्वार पर स्थित गणेशजी को प्रणाम अवश्य करता है और शुभ-लाभ का स्मरण करते हुए शुद्ध नैतिक व वांछित मार्गो से ही शुद्ध लाभ अर्जित करने का संकल्प लेकर निकलता है और यह मानसिक संकल्प जीवन में सच्चा सुख और ऎश्वर्य प्राप्त होने में सहायक है।

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सिंदूर मांगलिक पदार्थ है और बुरी आत्माओं व अदृश्य आसुरी शक्तियों से मनुष्य की अथवा घर की रक्षा करता है। इसकी तीव्र आभा से बुरी हवाओं का पलायन होता है और शुद्ध हवायें और तत्व मनुष्य के आसपास विद्यमान रहने लगते हैं।

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