नई दिल्ली। वाजपेयी सरकार ने आरआरएस से जुड़े संगठनों को जमीनें आवंटित की थी उन्हेें बाद में यूपीए के सत्ता में आने के बाद रद्द कर दिया गया था। अब मोदी सरकार ने उन जमीनों को वापस उन संगठनों को लौटाने का फैसला किया है। वाजपेयी सरकार ने दो दर्जन से ज्यादा धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक संस्थानों को जमीनें आवंटित की थीं। इनमें से अधिकतर आरएसएस से जुड़े संगठन थे। यूपीए सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इस आवंटन को रद्द कर दिया था।
कैबिनेट की ओर से दी गई मंजूरी की पुष्टि करते हुए शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने बताया कि इन सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों को 2001 में भूखंड आवंटित किए गए थे। यूपीए सरकार ने इन्हें रद्द कर दिया, जिसकी वजह से संगठनों को इस फैसले को अदालत में चुनौती देनी पड़ी। सरकार ने कैबिनेट के फैसले को अभी सार्वजनिक नहीं किया है। आम तौर पर कैबिनेट के हर फैसले की जानकारी प्रेस स्टेटमेंट जारी करके दी जाती है।
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नायडू ने कहा, ‘शासन में हमारे वापस लौटने के बाद इन संगठनों ने फैसले
को लेकर विरोध जताया। इसके बाद मेरे मंत्रालय ने इस मामले की जांच के लिए
दो रिटायर्ड सेक्रेटरी का पैनल बनाया। पाया गया कि यूपीए की सरकार में
भेदभाव हुआ। मैं इस मामले को कैबिनेट में ले गया। कुछ को छोडक़र बाकी सभी
आंवटित प्लॉट्स को दोबारा से देने के फैसले को मंजूरी दे दी गई।’
यूपीए
प्रथम सरकार ने ऐसे 29 संगठनों को प्लॉट आवंटन का फैसला रद्द कर दिया था।
यूपीए का कहना था कि आवंटन की प्रक्रिया में अनियमितता पाई गई। तत्कालीन
यूपीए सरकार ने रिटायर्ड अफसर योगेश चंद्र को नियुक्त किया था। योगेश ने
विभिन्न संगठनों को आवंटित जमीनों के करीब 100 मामलों की जांच की थी।
सूत्रों ने कहा कि जिन संगठनों को जमीनें अब वापस मिलेंगी, उनमें श्यामा
प्रसाद मुखर्जी स्मृति न्यास, विश्व संवाद केंद्र, धर्मयात्रा महासंघ, अखिल
भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम आदि प्रमुख हैं। जिन 29 संगठनों का अलॉटमेंट
रद्द किया, उनमें से 23 ने कोर्ट में फैसले को चुनौती दी थी। बाकी मामलों
में जमीन सरेंडर कर दिया गया।
सूत्रों के मुताबिक, अब कैबिनेट से मंजूरी
मिलने के बाद शहरी विकास मंत्रालय दिल्ली हाई कोर्ट का रुख कर सकता है।
यहां इस मामले पर एक केस लंबित है। सरकार आवंटन रद्द किए जाने के फैसले को
पलटने का आग्रह कर सकती है।
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