खास खबर EXCLUSIVE: समाजवादी पार्टी की टाइमलाइन, कब और कैसे हुआ विवाद ?

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 05 जनवरी 2017, 11:37 AM (IST)

अर्नव मिश्रा नई दिल्ली। एकता कपूर के किसी फ़िक्शन शो की तरह समाजवादी पार्टी का विवाद भी हर बार एक नया ट्विस्ट लेकर आता रहा है।लेकिन अब लम्बे शो के बाद जनता एक निष्कर्ष चाह रही है। 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद भी ऐसा कहा जाता था कि सरकार के सारे बड़े-छोटे फ़ैसले पार्टी के वरिष्ठ नेता, मुलायम सिंह, राम गोपाल यादव, शिवपाल यादव और आज़म खान ही ले रहे हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर कठपुतली होने के आरोप लगातार लगाए जाते थे। मुलायम सिंह यादव ने कई बार अपने मुख्यमंत्री बेटे को सार्वजनिक तौर पर जनता के सामने फटकार लगाई और उन्हें दबाव के अंदर रखा। लेकिन दिक़्क़त तब आयी जब धीरे-धीरे लग रहा यह बारूद एकाएकफटा।

दिसम्बर 2014 जब अखिलेश क़रीबी 2 युवा नेताओं, आनंद भदौरिया और सुनील सिंह को शिवपाल सिंह यादव के नेतृत्व में पार्टी के नियमों का उल्लंघन करने की वजह से, बर्खास्त कर दिया गया था। इस बात से नाराज़, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सैफई महोत्सव के उद्घाटन समारोह में भाग नहीं लिया। लेकिन मीडिया में चल रही अंदरूनी मतभेद की ख़बरों को देखते हुए 1 जनवरी को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सफ़ाई महोत्सव में शिरकत की और 2 जनवरी को बर्खास्त नेताओ को पार्टी में वापस ले लिया गया।

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चलते है विवाद की शुरुआत में, 2 जून को समाजवादी पार्टी और क़ौमी एकता दल का विलय हुआ। क़ौमी एकता दल के माफ़िया नेता मुख्तार अंसारी की आपराधिक छवि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की साफ़ छवि पर बड़े सवाल खड़े कर रही थी। अखिलेश यादव की अनुपस्थिति में लिए गए इस विलय के फ़ैसले का उन्होंने जमकर विरोध करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता बलराम यादव को पार्टी से बाहर निकाल दिया। अखिलेश यादव की माँगों के सामने झुकते हुए समाजवादी पार्टी ने 25 जून को क़ौमी एकता दल के साथ विलह तोड़ने कीघोषणा कर दी ।पार्टी के इस क़दम का विपक्ष ने जम कर विरोध किया और कहा की यह सब `फ़ैमिली ड्रामा` सिर्फ़ अखिलेश की छवि को अच्छा दिखने के लिए किया जा रहा है। ये सब देखते मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बलराम यादव को वापस कैबिनेट मंत्री का पद वापस दे दिया।

14 अगस्त को शिवपाल यादव ने बड़े पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार व समाजवादी नेताओ द्वारा ज़मीन हथियाने की घटनाओं की वजह से इस्तीफ़ा देने की धमकी दी। अगले दिन ही मुलायम सिंह ने इशारे इशारे में ही पुत्र को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर शिवपाल ने इस्तीफ़ा दे दिया तो पार्टी टूट जाएगी। 17 अगस्त को शिवपाल यादव ने कैबिनेट मीटिंग में शिरकत नहीं की। मीडिया मे ख़बर फैलने के बाद, 19 अगस्त को पार्टी में एकता तब दिखाई दी जब चाचा शिवपाल ने भतीजे अखिलेश की प्रशंसा करते हुए कहा की 2017 में अखिलेश ही मुख्यमंत्री होंगे। 12 सितम्बर को इलाहबाद हाईकोर्ट के निर्देशो के बाद अखिलेश यादव ने भ्रष्टाचार के आरोपो से लैज मंत्री गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया।
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13 सितम्बर को एक और कड़ा फ़ैसला लेते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वरिष्ठ आईएएस अफ़सर और शिवपाल के क़रीबी दीपक सिंघल को बिना किसी ठोस कारण, पद से हटा दिया। सूत्रों की माने तो दीपक सिंघल ने अमर सिंह द्वारा किए गए आयोजन में शिरकत की थी। उसी शाम अमर सिंह ने मुलायम सिंह से मुलाक़ात की जिसके बाद उन्होंने अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर उस पद को शिवपाल को सौंप दिया था।पहले, अखिलेश यादव को यह तर्क दिया गया था कि वह कैबिनेट में पद के साथ पार्टी का पद नहीं संभाल सकते। प्रतिशोध में, मुख्यमंत्री अखिलेश ने देर रात चाचा शिवपाल से सारे विभाग छीन लिए, सबसे बड़ा विभाग- अखिलेश ने ख़ुद रख लिया। 14 सितम्बर को मुख्यमंत्री अखिलेश ने अमर सिंह पर निशाना साधा और कहा की पार्टी में चल रही मतभेद के लिए कोई`बाहरी इंसान` ज़िम्मेदार है। लेकिन अमर सिंह ने इस बात से नकारते हुए कहा कि अखिलेश उनके बेटे जैसे है। 15 सितम्बर को अखिलेश ने शिवपाल द्वारा दिए गए प्रदेश अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफ़े के पत्रों को वापस कर दिया।
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समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव अखिलेश के समर्थन ने खड़े नज़र आए।स्थिति को क़ाबू से बाहर जाते देख कर मुलायम सिंह ने लखनऊ आकर पहले शिवपाल फिर अखिलेश से मीटिंग की। 16 सितम्बर को शिवपाल सिंह यादव को सारे मंत्रालय वापस कर दिए गए और गायत्री प्रजापति को वापस ले लिया गया।बढ़ती क़िले कलह की वजह के कारण रामगोपाल यादव को 23 अक्टूबर को पार्टी से 6 साल के लिए निकल दिया गया। 17नवम्बर को राम गोपाल की पार्टी में वापसी हुई। फिर आती है 29 दिसम्बर की तारीख़ जब मुलायम सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाव के 325 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। इस लिस्ट में कई ऐसे नाम थे जिनका मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विरोध किया थी।

फिर 1 जनवरी को अखिलेश यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उन्होंने ने अमर सिंह को पार्टी से बाहर निकला। शिवपालको भी पार्टी से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद उन्होंने नरेश उत्तम को सपा का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का ऐलान करदिया। तब से अखिलेश यादव, शिवपाल यादव और आज़म खान कई बार मुलायम सिंह यादव से मुलाक़ात करने जा चुके हैं।अखिलेश द्वारा विलह की हर सम्भव कोशिश की जा चुकी है, लेकिन सुलह की कोई गुंजाइश खुले तौर पर दिखाई नहीं दे रहीहै। देखना ये होगा की क्या इस विवादी कीचड़ में कमल उगेगा या मुलायम का पुत्र अखिलेश।
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