Exclusive:10 साल से बेडिय़ों में जकड़ी है झुंझुनूं की जीवणी

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 03 जनवरी 2017, 08:20 AM (IST)

झुंझुनूं (सुजीत कुमार )। 13 साल पहले पति की मौत हो गई। तीन बेटियों का जिम्मा आ गया। इसी चिंता ने जीवणी को मानसिक रूप से बीमार कर दिया और तब से लेकर अब तक जीवणी की जिंदगी जकड़ी है जंजीरों में। जी, हां झुंझुनूं के चिड़ावा इलाके के क्यामसर गांव में अपनी बेटियों के ससुराल में 10 सालों से जीवणी जंजीरों से ही जकड़ी हुई है। वहीं पर उसका खाना-पीना होता है। दरअसल जीवणी मंडेला के पास रावतसर गांव की रहने वाली है। जिसकी शादी बुहाना इलाके के सागा गांव में हुई। उसकी तीन बेटियां थीं। तीनों छोटी ही थीं कि पिता का साया सिर से उठ गया और घर को संभालने वाला कोई नहीं था। पति की मौत के बाद जीवणी एक माह के समय के अंतराल में ही मानसिक रूप से बीमार हो गई और बेटियों की सार-संभाल की चिंता के चलते दो बार कुएं में कूदकर जान देने की कोशिश की लेकिन, भाग्य में कुछ और ही लिखा था। दो बार कुएं में कूदने के बाद भी जीवणी जिंदा बच निकली। जीवणी की इन हरकतों के बाद उसकी दो बेटियां उसे अपने ससुराल ले आईं और अपनी छोटी बहन का भी लालन पालन अपने ससुराल में करने लगीं। दवा-दुआ, दोनों से थकहारकर अब परिवार के लोगों ने जीवणी को जंजीरों में ही बांध दिया है। जीवणी जैसी कहानियों से सरकारी योजनाओं की सफलताओं की भी कड़वी हकीकत सामने आ रही हैं। उधर, इस कहानी की जानकारी मिलने पर सीएमएचओ ने महिला का इलाज कराने का आश्वासन दिया है। वहीं साइक्लोजिस्ट डॉ. लालचंद ढाका ने इसे अमानवीय कृत्य बताते हुए कानून रूप से इस महिला को बेडिय़ों से मुक्त करवाकर अच्छा इलाज देने की सरकार से मांग की है। जीवणी के तीन बेटियां हैं। जिनमें किरण और बुलकेश एक ही परिवार में क्यामसर में प्यारेलाल और मुरली के ब्याही है। वहीं उनकी तीसरी बहन सुमन भी उनके पास रहते हुए पढ़ाई कर रही है और साथ ही अपनी मां जीवणी की सेवा भी। जीवणी की बेटियों के ससुराल में भी पिछले कुछ समय से कमाने वाला एक ही शख्श है। पहले तो उसके दोनों दामाद प्यारेलाल और मुरली कमाते थे। लेकिन मुरली का हाथ पिछले दिनों काम करते वक्त एक मशीन में आ गया और उसके बाद वह काम करने में असमर्थ हो गया। वहीं मुरली का एक बेटा भी न बोल पाने के कारण इलाज ले रहा है। प्यारेलाल और मुरली, दोनों की बूढ़ी मां अब इधर-उधर थोड़ा बहुत करके घर चलाने का खर्चा ला रही है। वहीं परिवार में मुरली और और उसका बेटा, दोनों के इलाज में भी पैसा खर्च हो रहा है।

नहीं मिल रहा है सरकारी योजनाओं का लाभ

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गरीब को गणेश मानकर सेवा करने का दंभ भरने वाली सरकार की योजनाओं की पोल ऐसे मामलों को देखकर खुल जाती है। दलित परिवार, कमाने वाला केवल एक, इलाज के लिए मोहताज तीन-तीन लोग और सरकारी सहायता शून्य। ऐसी कड़वी हकीकत वाले उदाहरण ही सरकारी योजनाओं की क्रियान्विति के लिए होने वाली समीक्षा और सरकारी तंत्र पर सवाल खड़े कर देते हैं।

पहले खर्च किए पैसे, अब हार गए

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ऐसा नहीं है कि जीवणी के दामादों ने जीवणी के इलाज के लिए पैसे खर्च नहीं किए हों। जीवणी के इलाज के लिए उन्होंने स्थानीय स्तर के अलावा सीकर तक के चक्कर काटे। लोगों के कहने और बार-बार टोकने पर टोने-टोटके करने वालों के भी चक्कर काटे। लेकिन करीब तीन-चार साल तक लगातार चक्कर काटने और जीवणी के हालात में सुधार नहीं होने पर थक हार कर उसे जंजीरों में ही जकड़ कर रख दिया। जहां मकान के पास एक पोल के करीब जीवणी बैठी रहती है या फिर पास में पड़ी चारपाई पर लेट जाती है।

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