1. पंजाब के 18 सीपीएस को हाईकोर्ट ने किया बर्खास्त
चंडीगढ़। पंजाब के 18 मुख्य संसदीय सचिव को उच्च न्यायालय की ओर से पदमुक्त कर दिया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इन सभी सीपीएस की नियुक्ति रद्द कर दी। गौरतलब है की पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के दो वकीलों जगमोहन भट्टी और एच सी अरोड़ा की ओर से जनहित याचिका दायर कर सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी गई थी। उनका कहना था कि उक्त नियुक्तियां गैरकानूनी और असंवैधानिक हैं। इस याचिका पर फैसला सुनाते हुए 12 अगस्त को पंजाब में 2012 में नियुक्त 18 सीपीएस की नियुक्तियों को निरस्त कर दिया।
2. सुप्रीम कोर्ट से पंजाब सरकार को लगा झटका, बनेगी सतलुज-यमुना लिंक नहर
नई दिल्ली। सतलुज यमुना लिंक विवाद पर 10 नवंबर 2016 को पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। पांच जजों की बैंच ने अपने फैसले में कहा कि पंजाब सरकार का पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 असंवैधानिक है। सतलुज यमुना लिंक हर हाल में बनकर रहेगी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय राष्ट्रपति को भेज दी। अब सुप्रीम कोर्ट का 2002 और 2004 का फैसला प्रभावी हो गया। जिसमें केंद्र सरकार को नहर का कब्जा लेकर लिंक निर्माण पूरा करना था। इस मामले में राष्ट्रपति की ओर से सुप्रीम कोर्ट से चार सवालों के जवाब मांगे गए थे। पहला सवाल था कि क्या पंजाब का पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 संवैधानिक है। दूसरा सवाल था कि क्या ये एक्ट इंटरस्टेट वाटर डिस्प्यूट एक्ट 1956 और पंजाब रिओर्गनाइजेशन एक्ट 1966 के तहत सही है। तीसरा सवाल था कि क्या पंजाब ने रावी ब्यास बेसिन को लेकर 1981 के एग्रीमेंट को सही नियमों के तहत रद्द किया है। चैथे सवाल के तहत पूछा गया कि क्या पंजाब इस एक्ट के तहत 2002 और 2004 में सुप्रीम कोर्ट की डिक्री को मानने से मुक्त हो गया है। जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने सभी जवाब नकारात्मक दिए। बता दें कि पंजाब-हरियाणा के बीच रावी-ब्यास नदियों के अतिरिक्त पानी को साझा करने का समझौता करीब साठ साल पुराना है। हरियाणा राज्य बनने के बाद 1976 में केंद्र ने पंजाब और हरियाणा दोनों के बीच 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी साझा करने का आदेश दिया था। इस अतिरिक्त पानी को भेजने के लिए सतलज यमुना लिंक नहर पर काम शुरू हुआ। जो हरियाणा की तरफ से पूरा हो गया था। लेकिन पंजाब ने अपनी तरफ से काम रोक दिया। हरियाणा ही इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गया था। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया है। इस मामले में पंजाब सरकार का कहना था कि जल का घटता प्रवाह और अन्य बदली परिस्थितियों में इस जल बंटवारे के मामले में उसने 1981 के लोंगोवाल समझौते की समीक्षा के लिए 2003 में ही न्यायाधिकरण गठित करने का अनुरोध किया था। दूसरी ओर, हरियाणा की मांग पर पंजाब का कहना था कि 1966 में नए राज्य के सृजन के बाद उसकी स्थिति यमुना नदी के किनारे स्थित राज्य की हो गई थी।
3. अमरिंदर सिंह ने दिया सांसद पद से इस्तीफा
दूसरी ओर इस फैसले के विरोध में पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह ने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। अमरिंदर सिंह के साथ ही पंजाब कांग्रेस के सभी विधायकों ने भी इस्तीफा दिया है। उधर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अमरिंदर सिंह के इस्तीफे को ड्रामा बताया।
4. एसवाईएल मुद्दे पर इनेलो ने तोड़ा अकाली दल से गठबंधन
एसवाईएल मुद्दे को लेकर ही इनेलो ने अकाली दल से अपना गठबंधन तोड़ लिया था। इनेलो विधायकों ने पंजाब विधानसभा का घेराव करने की कोशिश भी की। उसी दिन पंजाब विधानसभा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मानने से इनकार कर दिया था।
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