Exclusive- राजनीति के सैलाब में बह गई देश के दो कद्दावर परिवारों की दोस्ती

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 25 दिसम्बर 2016, 10:15 AM (IST)

नरेन्द्र शर्मा
अमृतसर।
राजनीति में निजी हितों के अतिरिक्त कुछ भी स्थायी नहीं होता है। इसके सैलाब में सब कुछ बह जाता है। बेशक फिर वो दोस्ती हो या कोई और रिश्ता ही क्यों न हो। जी हां ,यह सही भी है और इसका प्रमाण बादल व चौटाला परिवार है। एसवाईएल में पानी तो नहीं बहा पर इसके खुश्क राजनीतिक सैलाब में इन दोनों परिवारों की दोस्ती बह गई है। बादल द्धारा विधान सभा में नहर सम्बन्धी बिल पारित करने के बाद चौटाला ने दोनों परिवारों के मध्य पचास के दशक से चली आ रही दोस्ती पर विराम लगा दिया है। अभय ने इस बार बादल को देवी लाल की जयंती पर आयोजित रैली में भी आमन्त्रित नहीं किया। दोनों परिवारों में दोस्ती का इतिहास पचास वर्ष से भी कुछ ज्यादा पुराना है।
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इंडियन नेशनल लोक दल के अध्यक्ष चौधरी देवी लाल और बादल एक दूसरे के सुख-दु:ख के साथी तो थे ही इसके अतिरिक्त चुनावों के समय भी एक-दूसरे की सहायता करने के लिए एक-दूसरे के प्रदेश में जाते थे। वैसे तो इन दोनों की दोस्ती की गहरी नींव आपातकाल के दौरान ही पड़ गई थी। मगर इसका आगाज उस समय ही हो गया था जब अकाली पंजाबी सूबे के लिए मोर्चे लगा रहे थे। उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों थे। चूंकि बादल और देवीलाल दोनों विपक्ष में थे इसलिए कैरों की आंख की किरकरी बने हुए थे। वह इन दोनों नेताओं को काबू करने में लगे हुए थे। यह दोनों मिलकर कैरों के विरुद्ध अभियान छेड़े हुए थे। बाद में आपातकाल के दौरान यह दोस्ती और अधिक गहरी हो गई। गहरी भी इस कदर की जब आपातकाल के दौरान बादल जेल में थे तो देवी लाल ने एक बड़े की तरह बादल परिवार की पूरी देखभाल की थी।

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यही नहीं बादल की अनुपस्थिति में उनकी बेटी का कन्यादान भी देवी लाल ने ही किया था। दोनों परिवारों को जब भी जरूरत पड़ी यह एक-दूसरे के साथ खड़े नजर आए। पंजाबी सूबा बनवाने में भी चौधरी देवी लाल का काफी सहयोग था। वह अक्सर बादल को कहा करते थे बादल साहब जब तक हम अलग हरियाणा की मांग नहीं करेंगे तब तक पंजाबी सूबा नहीं बन सकता है। देवी लाल के बाद दोस्ती का यह सफर ओम प्रकाश चौटाला ने दिल से निभाया। दोनों परिवारों में रिश्ते और भी गहरे हो गए। चुनावों के दिनों में बादल अपने चुनाव क्षेत्र में काम ही रहते थे। उनके प्रचार अभियान की कमान चौटाला के हाथों में होती थी। इन दोनों परिवारों में कितनी अधिक घनिष्ठता थी इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की चुनावी दौर के दौरान चुनाव प्रचार से थके-हारे चौटाला खाना खाने जब बादल की कोठी पर पहुंचते थे तो उनके लिए बादल का विशेष निजी कमरा खोला जाता था। यही नहीं बल्कि चौटाला को डाइनिंग टेबल की उसी सीट पर बैठाया जाता था जिस पर बादल बैठते थे। चौधरी देवी लाल और बादल के परिवार लगभग प्रत्येक चुनाव में एक साथ नजर आते थे। हरियाणा के प्रत्येक चुनाव में बादल और उनके सहयोगी अकाली नेता इनेलो का प्रचार करते हुए नजर आते थे और पंजाब के चुनावों में चौटाला परिवार अपने लाव-लश्कर के साथ चुनाव प्रचार के लिए आता था। यही नहीं बल्कि इनेलो ने तो हरियाणा में अकाली दल के कोटे की दो सीटें कालांवाली और अम्बाला शहर भी छोड़ रखी थी। अकाली दल कालांवाली सीट दो बार जीतने में सफल भी रहा था। अब पचास के दशक के दोस्त यह दोनों परिवार शायद अब कभी एक राजनीतिक मंच पर कभी नजर नहीं आएंगें। क्योंकि दोनों परिवारों के बीच एसवाईएल एक गहरी खाई के रूप में रुकावट बनी हुई है। दरअसल मार्च में जब अकाली -भाजपा गठबंधन सरकार ने विधानसभा में एसवाईएल समझौता रदद् करते हुए नहर को बन्द करने का कार्य शुरू किया तो इनेलो और कांग्रेस ने इसका विरोध किया था। उस समय चौटाला ने घोषणा की थी की अब इनेलो अकाली बादल के साथ कोई राजनीतिक रिश्ता नहीं रखेगा। अभय ने बादल को देवी लाल की जयंती पर आयोजित रैली में भी नहीं बुलाया था। फिलहाल दोस्ती के इस अध्याय का अंत ही समझा जा रहा है। परन्तु इन दोनों परिवारों की दोस्ती आगे चलकर क्या स्वरूप लेती है यह तो भविष्य की कोख में छिपा है। क्योंकि दोनों ही परिवार राजनीतिक हैं और राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है।

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