सामान्य लोगों को नहीं दी जा सकती वन में रहने की इजाजतः हाईकोर्ट

www.khaskhabar.com | Published : शनिवार, 24 दिसम्बर 2016, 2:54 PM (IST)

इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनजाति या वनवासियों को लेकर एक बड़ा फैसला दिया। न्यायालय ने कहा कि वन में आधिकारिक तौर पर किसी सामान्य नागरिक को रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती और न ही कुछ साल वनवासी होने पर ही किसी को वन में आवासीय व्यवस्था करने का आदेश जिया जा सकता है।
वन में तीन पुश्तों से रह रहे जनजाति या वनवासियों को ही वन में निवास करने की अनुमति दी जा सकती है। गौरतलब है कि हस्तिनापुर वन्य जीव अभ्यारण को 1968 में वन क्षेत्र घोषित किया गया। [@ 90 की उम्र फिर भी आंख से तिनका निकाल लेते भगत राम]

इस वन में रहने वाले लोग वनवासी की श्रेणी में नहीं आते। सरकार द्वारा इन्हे यहां से हटाये जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अनुसूचित जाति के इन्ही वन में रह रहे लोगों द्वारा एक याचिका दाखिल की गई। जिसमें अनुसूचित जाती के लोगों को वन में निवास करने वाले आदिवासी वनवासी की तरह ही रहने व उनकी तरह आधिकारिक दर्जा देने की मांग की गई है।
हालांकि कानूनन एसटी जाति को यह अधिकार मिलता है। न्यायालय में सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि याचीगण पांच दशक से वन में रह रहे हैं किन्तु उन्हें आधिकारिक तौर पर निवास की अनुमति नहीं दी जा रही है। सरकारी युनिट ने उन्हें वन खाली करने को कहा है।

[@ अदिति बनीं मिस कोहिनूर-ए-ताज, SEE PIC ]

मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि अनुसूचित जाति व अन्य वनवासी अधिनियम 2006 के नियम 6 के तहत 2005 से पहले तीन पुश्तों से वन में निवास कर रहे वनवासी व जनजाति के लोगों को ही स्थायी निवास की अनुमति दी जा सकती है। ऐसे में याचीगण को रहने की इजाजत देने का अवचित्य नहीं है। हालांकि वैकल्पिक व्यवस्था होने तक याचीगण कुछ समय के लिये रह सकते हैं। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने दिया है।

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