संयुक्त राष्ट्र। शायद यह दुर्लभतम घटना है जब अमेरिका ने किसी मसले को लेकर इजरायल का साथ देने से मना कर दिया। दरअसल UN ने इस्रायल से मांग की है कि वह फलस्तीनी क्षेत्र से अवैध यहूदी बस्तियां हटा ले, अमेरिका ने इस प्रस्ताव पर पर वीटो करने से मना कर दिया है। यह दुलर्भतम क्षण था, जब अमेरिका ने अपने वीटो शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया और न ही मतदान में हिस्सा लिया। अमेरिका ने 1979 के बाद पहली बार अवैध यहूदी बस्तियों पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को मजबूत करते हुए इस्राइल की आलोचना की है। परिषद में उस समय तालियां बजने लगीं जब सुरक्षा परिषद के बाकी 15 सदस्यों का समर्थन इस प्रस्ताव को मिल गया। सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव का विरोध इजरायल के अलावा अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर रहे थे।
ट्रंप ने इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया करते हुए ट्विटर लिखा, ‘संयुक्त राष्ट्र के लिए 20 जनवरी के बाद स्थितियां बदल जाएंगी।’ संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत सामंथा पावर का कहना है कि अवैध यहूदी बस्तियां इस्राइल और फलस्तीन के बीच दो-राष्ट्र समाधान में बाधक बन रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने इन यहूदी बस्तियों को अवैध करार दिया है और कहा है कि पिछले महीनों में यहां अवैध यहूदी बस्तियों का निर्माण बढ़ा है। पश्चिमी किनारे की अवैध यहूदी बस्तियों में अभी 430,000 और पूर्वी यरूशलम में 200,000 यहूदी रह रहे हैं और फलीस्तीन पूर्वी यरूशलम को भविष्य की राजधानी के रूप में देखते हैं। प्रस्ताव में मांग की गई है कि इजरायल तत्काल और पूरी तरह से अधिकृत फलस्तीनी क्षेत्र सहित पूर्वी यरूशलम से अवैध यहूदी बस्तियां निर्माण की गतिविधियों पर रोक लगाए।
अमेरिकी सफाई
[@ 90 की उम्र फिर भी आंख से तिनका निकाल लेते भगत राम]
अमेरिका ने फलस्तीन में इस्राइली अवैध बस्तियों के निर्माण की
निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर वीटो का
इस्तेमाल करने से बचने से अपने निर्णय का बचाव किया है। उसने कहा है कि
द्वि-राष्ट्र समाधान निकालने के लिए वार्ता के सभी प्रयास विफल रहने के बाद
यह असामान्य कदम उठाया गया। मिस्र ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में
फलस्तीन क्षेत्र में इस्राइली अवैध बस्तियों को रोकने की मांग करने वाला
प्रस्ताव पेश किया था और अमेरिका ने इस प्रस्ताव के संबंध में वीटो
इस्तेमाल नहीं करने का फैसला किया। इस कदम को अमेरिका के निकटतम पश्चिम
एशियाई सहयोगी को राजनयिक फटकार के तौर पर देखा जा रहा है।
अमेरिका के
विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा कि अमेरिका ने दिमाग में एक प्राथमिक
उद्देश्य के तहत काम किया। द्वि राष्ट्र समाधान की संभावना को संरक्षित
करना। दशकों से हर अमेरिकी प्रशासन ने इस बात पर सहमति जताई है कि
इस्राइलियों और फलस्तीनियों के बीच न्यायसंगत और स्थायी शांति स्थापित करने
के लिए यही समाधान एकमात्र तरीका है। अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा
सलाहकार बेन रोड्स ने एक कांफ्रेंस कॉल के दौरान कहा कि हमारी सबसे गंभीर
चिंता है कि अवैध बस्तियों संबंधी गतिविधि की मौजूदा गति में साल 2011 से
बहुत तेजी आई है।
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हमने उस समय बस्तियों की निंदा करने वाले संयुक्त
राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल किया था। बस्तियों
में आई तेजी से इस द्वि राष्ट्र समाधान पर खतरा पैदा होता है। रोड्स ने
अपने निर्णय के बचाव में कहा कि इसलिए हमने इस संदर्भ में सोचा कि द्वि
राष्ट्र समाधान के आधार को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी प्रवृति के बारे
में चिंता व्यक्त करने वाले प्रस्ताव को लेकर वीटो इस्तेमाल करना सही नहीं
होता।
‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने इस कदम को इस्राइल को एक फटकार करार देते
हुए कहा कि वीटो इस्तेमाल नहीं करना अवैध यहूदी बस्तियों को लेकर ओबामा
प्रशासन की निराशा को दर्शाता है और इसने ट्रंप से पैदा होने वाले दबाव को
नकारा। इससे एक दिन पहले, ट्रंप ने एक ट्वीट में अमेरिका से वीटो का
इस्तेमाल करने को कहा था।
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