नई दिल्ली/तिरूवनंतपुरम/सबरीमाला। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि धार्मिक आधार के अपवाद को छो़डकर मंदिर में किसी भी महिला श्रद्धालु को पूजा-अर्चना करने से नहीं रोका जा सकता। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति एन.वी.रमना की पीठ ने यह बात इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कही।
एसोसिएशन ने सबरीमाला अयप्पन मंदिर की उस प्रथा को चुनौती दी है, जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 साल तक की Rमश: बच्चियों, महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। अदालत ने कहा, मंदिर सिवाय धार्मिक आधार के किसी अन्य आधार पर प्रवेश वर्जित नहीं कर सकता। जब तक उसके पास इसका संवैधानिक अधिकार नहीं है, तब तक वह ऎसी रोक नहीं लगा सकता।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ फरवरी की तारीख दी है। सर्वोच्च अदालत के विचार ने श्रद्धालुओं को दो खेमों में बांटने में देर नहीं की। एक वे लोग हैं जो मौजूदा व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं। और, दूसरी तरफ वे लोग हैं जो चाहते हैं कि सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी जाए। केरल के एक तांत्रिक कालिदास नंबूदरीपाद ने आईएएनएस से कहा, सही है कि भगवान महिला और पुरूष में भेद नहीं करता। लेकिन, जहां तक सबरीमाला मंदिर की परंपराओं का प्रश्न है, तो यहां बहुत सोच समझकर एक व्यवस्था बनाई गई है। उन्होंने कहा कि सबरीमाला तीर्थ में देह दंड की 41 दिन की कठोर साधना होती है।
इसे महिलाएं नहीं कर सकतीं क्योंकि यह उनके लिए न तो संभव है और न ही व्यावहारिक। सबरीमाला मंदिर तिरूवनंतपुरम से 100 किलोमीटर दूर पथानमथिट्टा जिले में पंबा नदी के पास चार किलोमीटर की चढ़ाई पर एक पह़ाडी पर स्थित है। तरूणायी हासिल कर चुकी महिलाओं के लिए वर्जित इस मंदिर तक केवल पैदल ही जाया जा सकता है। हफ्ते में पांच दिन खुलने वाले मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं। पूर्व देवासम मंत्री और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक जी.सुधाकरण का कहना है कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि 2008 में वाम मोर्चा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में यही बात कही थी। लेकिन, सबरीमाला मंदिर से संबंद्ध कांतेरेरू राजीवेरू मंदिर में महिलाओं पर रोक को सही बताते हैं। उन्होंने कहा, आस्था से बढ़कर कुछ नहीं है। अदालत में क्या कहना है, इस बारे में फैसला सभी से सलाह मशविरा कर लिया जाएगा। केरल के देवासम मंत्री और कांग्रेस नेता वी.एस.शिवकुमार ने संवाददाताओं से कहा कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय में पक्ष रखने से पहले सभी पहलुओं पर गौर करेगी।
श्रद्धालुओं की राय भी इस पर बंटी दिखी। मंदिर की तरफ जा रहे एक पुरूष
श्रद्धालु ने कहा कि क्या गलत है अगर महिलाएं भी यहां आएं और प्रार्थना
करेंक् ये महिलाओं के लिए भी खुलना चाहिए। इससे परिवार तीर्थाटन को बढ़ावा
मिलेगा। लेकिन, एक 43 साल की महिला ने कहा कि वह भगवान अयप्पा की भक्त है
और महसूस करती है कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होना
चाहिए। उन्होंने कहा, परंपरा और प्रथा के मामले अदालत नहीं निपटा सकती।
चेन्नई
में पत्रकार शोभा वारियर ने आईएएनएस से कहा, अगर मंदिर प्रशासन नहीं चाहता
कि महिलाएं आएं तो यही सही। हमारे लिए और भी मंदिर हैं। वारियर ने कहा कि
इस तर्क में दम नहीं है कि भगवान अयप्पा ब्र±मचारी हैं, इसलिए युवा महिलाओं
को नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हनुमान जैसे ब्र±मचारी हिंदू देवताओं
की महिलाएं पूजा करती हैं। 2006 में उस वक्त हंगामा मच गया था जब कó़ाड
अभिनेत्री जयमाला ने खुलासा किया था कि उन्होंने 1987 में सबरीमाला देवता
की प्रतिमा को छुआ था।
(आईएएनएस)